आत्मसमर्पण के बाद माओवादियों का पुर्नवास और सुरक्षा सरकारी जवाबदारी

भाजपा सरकार अपनी इस जवाबदारी को निभाने में विफल रही: कांग्रेस

रायपुर 19 सितंबर 2014

 आत्म समर्पित नक्सली मानकु उर्फ सतीष की बयानार राजबेड़ा में हत्या की घटना को सरकार की आत्मसमर्पण नीति की बड़ी विफलता करार देते हुये प्रदेष कांग्रेस के महामंत्री शैलेष नितिन त्रिवेदी ने कहा है कि माओवादियों के आत्मसमर्पण की विज्ञप्तियां जारी करके भाजपा सरकार उन्हें भूल जाती है। माओवादियों के आत्मसमर्पण के बाद उनका पुर्नवास और उनकी सुरक्षा भी सरकार की जवाबदारी है और मानकु की हत्या की घटना ने यह साबित कर दिया है कि भाजपा सरकार अपनी इस जवाबदारी को निभाने में विफल रही है। इस घटना ने पूरी भाजपा सरकार की माओवाद की नीति पर बड़े-बड़े सवालिया निषान खड़े कर दिये है। 2003 से 2014 तक 11 साल के भाजपा सरकार के कार्यकाल में बस्तर के सीमावर्ती इलाकों तक सीमित माओवाद ने पूरे बस्तर सहित कांकेर, गरियाबंद, बलौदाबाजार, बालोद, महासमुंद, रायगढ़ और राजनांदगांव को अपनी गिरफ्त में ले लिया है। माओवादियो के शहरी नेटवर्क की धमक राजधानी रायपुर भी अछूता नहीं है। मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने और झूठा श्रेय लेने के लिये आत्मसमर्पण जैसी अधकचरी नीतियों के कारण माओवाद दावानल की तरह फैल रहा है और सरकार के ऊंचे स्थानों में बैठे बहुत से लोग इस आंच में अपने हाथ सेंक रहे है और जेबे भी गरम करने में लगे है। भाजपा सरकार द्वारा माओवाद से निपटने के बेमन से किये जा रहे आधे अधूरे प्रयत्नों का दुष्परिणाम भुगतने के लिये मानकु सहित पूरा प्रदेष और खासकर बस्तर अभिषप्त है। फर्जी मुठभेड़े, फर्जी आत्मसमर्पण और माओवाद से लड़ने का फर्जी उपक्रम बस्तर के रिसते घावों का इलाज नहीं हे। आदिवासियों के अपने ही जल, जंगल और जमीन से विस्थापन के दर्द को समझ कर इन समस्याओं को संवेदनषीलता के साथ दूर करना होगा। आदिवासियों रोजी रोटी और खासकर वनोपज का वाजिब दाम सुनिष्चित करना होगा। दूरस्थ इलाको की स्वास्थ्य षिक्षा और पेयजल की जरूरतों को पूरा करना होगा। दुर्भाग्य से माओवाद के समाधान के नाम पर छत्तीसगढ़ और खासकर बस्तर फर्जीवाड़े और घपलों घोटालों की फसल की उपजाऊ भूमि मात्र बनाकर रख दिया गया है। छत्तीसगढ़ में आदिवासियों का शोषण तिरस्कार अपमान और हिंसा दिन प्रतिदिन का उपक्रम बन चुका है। चुनावी लाभ लेने के उद्देष्य से भाजपा ने कभी इस समस्या के निदान की दिषा में कोई प्रयास ही नहीं किया। लाषों की राजनीति ही भाजपा करती रही। माओवादियों से साठगांठ कर चुनाव में लाभ लेने के लिये निर्दोष आदिवासियों, ग्रामीणों की जान की परवाह तक भाजपा सरकार ने कभी नहीं की। पूरे छत्तीसगढ़ में और खासकर बस्तर में लोकतंत्र की पुर्नस्थापना के लिये कांग्रेस के नंदकुमार पटेल, विद्याचरण शुक्ल, महेन्द्र कर्मा, उदय मुदलियार, दिनेष पटेल, योगेन्द्र शर्मा, अभिषेक गोलछा, गोपी माधवानी सहित अनेक नेताओं ने अपने प्राण गंवाये। प्रदेष में हुयी बड़ी-बड़ी माओवादी घटनाओं पर भाजपा सरकार असंवेदनषीलता का परिचय दे चुकी है। सारकेगुड़ा फर्जी मुठभेड़ पुलिस अधीक्षक स्व. विनोद चौबे की नक्सली हमले में मौत और दंतेवाड़ा जेल ब्रेक मामले की सीबीआई जांच की कांग्रेस की मांग नहीं मानी गयी थी। सुकमा के कलेक्टर एलेक्स पाल मेनन के अपहरण के मामले में हुये समझौते को सार्वजनिक नहीं किया गया। जघन्य घटनाओं की भी राज्य की भाजपा सरकार द्वारा अनदेखी के परिणामस्वरूप ही इस तरह मानकु जैसों की हत्याओं का क्रम प्रदेष में जारी है।