रुपया बढा दिया पर सुविधा जस की तस : मरीज के परिजनो मे होता है रोजाना विवाद

  • पैसा बढ़ाया पर पर्ची काउंटर नहीं
  • भीड़ बढने से रोज हो रहा विवाद

अम्बिकापुर (दीपक सराठे)

जिला अस्पताल में लगातार बढ़ते मरीज और सीमित संसाधन होने के कारण मरीजों व कर्मचारियों दोनों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। अस्पताल के पर्ची काउंटर की बात करें तो जब मरीजों की ओपीडी संख्या 400 थी तब भी तीन पर्ची काउंटर थे, और जब वर्तमान में मरीजों की ओपीड़ी संख्या 8 सौ से अधिक है तब भी मात्र तीन ही काउंटर होने से परेशानी बढ़ चुकी है। खासतौर पर महिलाओं की संख्या ज्यादा आने से लम्बी लाईन लग रही है। पर्ची काउंटर स्थिति रहने से लाईन में खड़े मरीजों के बीच राजे विवाद की स्थिति निर्मित हो रही है। इस कारण से पर्ची काउंटर के कर्मचारी भी परेशान हैं। कर्मचारियों ने महिलाओं के लिये एक और काउंटर खोले जाने की मांग प्रबंधन से की है।

ज्ञात हो कि रघुनाथ जिला अस्पताल में मरीजों की सुविधा के लिये दो पुरूष व एक महिला पर्ची काउंटर खोले गये थे। इसके अलावा पेंशनर्स व गंभीर मरीजों के लिये तत्काल सुविधा व लाईन से बचने अलग-अलग काउंटर की व्यवस्था की गई, परंतु वह अभी तक अपने अस्तित्व में नहीं आ सका है। पर व्यवस्था उस वक्त की गई थी जब ओपीडी में मरीजों की प्रतिदिन संख्या लगभग 400 के लगभग थी। आज मरीजों की संख्या प्रतिदिन 8 सौ के लगभग हो गई है परंतु सुविधाओं में विस्तार नहीं किया गया। अस्पताल प्रबंधन ने ओपीड़ी सहित अन्य शुल्कों में वृद्धि जरूर कर दी, परंतु मरीजों की इस गंभीर समस्या पर विचार करना तक मुनासिव नहीं समझा है। आलम यह है कि ओपीड़ी मरीजों के पर्ची काउंटर में लम्बी लाईन पर्ची काउंटर के कर्मचारियों के लिये भी परेशानी का सबब बन चुकी है। पर्ची के इंतजार में घंटो खड़े मरीजों का जब समय आता है तो चिकित्सकों तक का ओपीडी में बैठने का समय खत्म हो जाता है। कभी-कभी जब नसबंदी वालों की लाईन लगती है तो और अन्य मरीजों के साथ भीड़ का आलम देखते ही बनता है। महिलाओं के लिये मात्र एक पर्ची काउंटर का होना कहां तक मुनासिव है। बढ़ती परेशानी को देखते हुये आज पर्ची काउंटर के कर्मचारियों से महिलाओं का एक और काउंटर बढ़ाये जाने की मांग प्रबंधन से की है।
लम्बी लाईन में विकलांग भी

जिला अस्पताल में पर्ची काउंटर की सीमित व्यवस्था के कारण विकलांग युवक-युवती भी अन्य मरीजों के साथ लम्बी लाईन में खड़े होने को विवश है। सारे शुल्कों में वृद्धि कर प्रबंधन सिर्फ जीवन दीप के आय बढ़़ाने की सोच रहा है परंतु मरीजों की इस समस्या की ओर उसका कोई ध्यान नहीं है।