ये कैसा शहर यंहा शवदाह के लिए नही मिलती है लकडियां

  •  जिले के सबसे बड़े शहर में शवदाह लकड़ी का आभाव
  • चिता की लकड़ी को भटकते परिजन
  • 90 हजार जनसंख्या के लिये मुक्तिधाम तो पर लकड़ी नही

कोरिया (चिरमिरी से रवि सावरे की रिपोर्ट)

कोयले पर आधारित सुप्रसिद्ध शहर आज अपने रहनिवासियों के परिजनों के अंत्येष्ठि के लिये शवदाह लकड़ी के लिये दर दर भटकने को मजबूर है . जिले के सबसे बड़े शहर और नगर पालिक निगम का दर्जा प्राप्त यह कोलांचल क्षेत्र में शवदाह के साथ जलावन लकड़ी को तरस रहा है . परिजन की मृत्यु के पश्चात शोक संतप्त परिवार चिता की लकड़ी को प्राप्त करने एड़ी चोटी का जोर लगाने को मजबूर हो गये है . किसी की मृत्यु की सूचना मिलते ही परिजन और मित्र केवल लकड़ी प्राप्त करने की जद्दोजहद में लग जाते है ।

चिरमिरी भुरकुंडी वन क्षेत्र में आने वाले वन विभाग के लकड़ी डिपो में जलावन लकड़ी तो क्या शवदाह की लकड़ी का बड़ा अभाव बना हुआ है । पूर्व में यहां पर आवश्यक कार्यों के लिए लकड़ियाँ आसानी से उपलब्ध् हो जाती थी . एसईसीएल की चिरमिरी कालरी की मेगा ओपनकास्ट परियोजना के विस्तार के लिये अनुमति प्राप्त बड़े वृक्षो को काटकर वन विभाग के डिपो में रखा गया था और इतनी तादाद में लकडिया उपलब्ध् थी कि अन्य जगहों से शवदाह तथा जलावन की लकड़ी के लिये भटकना नही पड़ता था किन्तु समय के साथ लकड़ियाँ समाप्त होती गई और स्थानीय लोगो के आवश्यकता की पूर्ति के लिये के लकड़ियों की आपूर्ति या अन्य व्यकल्पिक व्यवस्था की ओर न तो किसी का ध्यान गया और न ही चिंता की गई . इन्ही परिस्थितियों को देखते हुये पूर्व महापौर की अगुवाई में महापौर परिषद में निर्णय पारित किया गया था कि वन विभाग से शवदाह के लिये लकड़ी क्रय कर हितग्रहियों को क्रय मूल्य पर ही लकड़ी उपलब्ध् कराया जाएगा और उसका सफल कियान्वयन भी हुआ । जरूरतमंद शवदाह के लिये लकड़ियाँ निगम के फायर स्टेशन से प्राप्त किया करते थे ।

वर्तमान परिस्थियों में निगम की माने तो उनके अनुसार पूर्व में संचालित व्यवस्था को सुचारू रूप से संचालित करने के उद्देश्य से लकड़ी क्रय करने हेतु निगम के वाहन को दो बार मनेन्द्रगढ़ स्थित वन विभाग डिपो भेजा गया किन्तु लकड़ी की अनुपलब्धता की बात कह कर वापिस कर दिया गया और बैकुण्ठपुर डिपो से पत्राचार किया गया किन्तु आज दिवस तक वहाँ से किसी प्रकार की सुचना नही दी गई है .
चिरमिरी शहर कोयला उत्खनन के लिये प्रसिद्ध रहा है और कालरी के खुद के आरा मशीन से व खदानों के अंदर प्रयुक्त होने वाली सिल्लियों से स्थानीय जनो की आवश्यकता पूरी हो जाती रही है . ये तो कालान्तर की बात बनकर रह गई . बंद होती खदानों के साथ न तो इन खदानों में इतनी तादात में लकड़ियों का जुगाड़ हो सकता है और न ही कोयला प्रबंधन का जनहित सहयोग की भावना ही शेष बची है . परिस्थितियां कुछ भी हो किन्तु अतिआवश्यक सेवाओं के मद्देनजर कम से कम  शवदाह के लिये आवश्यक व्यवस्था कराने के जिम्मेदारी से कार्यरत संस्थाओ और जन प्रतिनिधियों को अपने कर्तब्य का बोध तो जरूर करना चाहिए ताकि आमजनों को मजबूर होने से बचाया जा सके.
श्यामबिहारी जायसवाल विधायक मनेन्द्रगढ़
निश्चित रूप से बड़ी कमी की जानकारी पहली बार मेरे संज्ञान में आया है मैं तत्काल वन विभाग के उच्चाधिकारियों से चर्चा कर शवदाह लकड़ी की व्यवस्था करने का प्रयास करूँगा .जिले का किसी भी वन विभाग के डिपो  से लकड़ियाँ उपलब्ध कराया जायेगा इस व्यवस्था हो .

के डोमरु रेड्डी महापौर
निगम इस विषय में बेहद संवेदनशील है हमारे द्वारा पूर्व में लिये गए निर्णय को सतत गतिशीलता प्रदान करने का प्रयास जारी है किन्तु वन विभाग द्वारा हमें लकड़ियाँ उपलब्ध  नही कराई गई जिसके चलते अभी ये परिस्थितियां निर्मित हुई है इसे शीघ्र दूर कर लिया जायेगा .