शक्ति की भक्ति में डूबा है अंचल, गूंज रहे मां के जयकारे.

मां रमदईया मंदिर धाम में लगा भक्तों का तांता,

कई मंडलियां देर रात तक जसगीत गायन कर रहीं 

कोरिया
नवरात्र के अवसर पर जिला मुख्यालय से महज 4 किलोमीटर दूर ग्राम चेर में स्थित मां रमदईया मंदिर में भक्तो का तांता लगा हुआ है। शक्ति उपासना का महापर्व नवरात्रि में देवी माता रमदईया धाम मंदिर में नौ दिनों तक भक्तो के द्वारा पुजा अर्चना कर मनोकमना मांगा जाता है और भक्तो की मनोकमना मां रमदईया पूरी करती है। कोरिया जिला ही नही दूसरे जिले व प्रदेश से भी मां रमदईया धाम पर भक्त पहुचे है।

 
कोरिया जिले के मुख्यालय बैकुण्ठपुर से कुछ दूरी में लोगो की आस्था का केन्द्र देवी माता रमदईया धाम में नवरात्री में भक्तो की भारी भीड़ उमरती है। इस देवी रमदईया माता के मंदिर की मान्यता है कि नवरात्रि में यहां जो कोई भी सच्चे मन से मां की पुजा उपसना करता है और माता के दरबार में मत्था टेकता है तो उसकी मनोकमना पूरी होती है। कुछ भक्त ऐसे भी है जिनके द्वारा मांगी गई मन्नत पूरी हो चुकी है। 
 
 
मंदिर में बैगा पुजारी 
काहा जाता है चार – पांच सौ साल पुरानी देवी धाम है यह, इस रमदईया धाम में किसी ब्राहम्ण द्वारा पुजा पाठ नही किया जाता है जो बैगा होते है उनके द्वारा ही पुजा किया जाता है। पिछले नौ पिड़ीयो से बैगा पुजा का सिलसिला चला आ रहा है।
मनोकमना

घने वृक्षो से आच्छादित उची पहाड़ियो के गर्भ में कब मां रमदईया प्रगट हुई, इसकी जानकारी आज तक किसी को नही है। शुरू में यहां केवल ग्रामीणो द्वारा ही पूजा अर्चना किया जाता था लेकिन अब धीरे –  धीरे मां रमदईया की महिमा पूरे श्रेत्र में फिर जिले और जिले के बहार फैलने लगी है। कहा जाता है की इस मंदिर में जो भी सच्चे मन से जो भी मनोकमना मागंता है उसकी मन्नत पूरी होती है और ऐसा हुआ भी है जिस कारण मां रमदईया की ख्याति चहुंओर फैलने लगी। मां रमदईया की महिमा की चर्चा सुनने के बाद कोरिया जिला ही नही और भी जिले व प्रदेश से भक्तो का आना जाना इस मंदिर में लगने लगा है मां रमदईया भक्ती में अटुट विस्वास भी बढ़ते जा रहा है।

हर शनिवार भोग वितरण
पिछले १७ सालो से प्रत्येक शनिवार यहां मां की पुजा अर्चना कर विशाल भण्डारे का आयोजन किया जाता है। भक्तो की भी भीड़ रोजाना शनिवार को यहां उमती है। जिस किसी भी भक्तो का मन्नत पुरी होती है उनके द्वारा बकरे या नारियल की बली भी चढ़ाया जाता है खिचडी का भोग भण्डारा भी कराया जाता है जिसकी जैसी श्रद्वा होती है उसके द्वारा किया जाता है।

कई देवी देवताओ की भी है मूर्ति 
मां रमदईया के दरबार में रमदईया धाम में शिव लिंग, श्री गणेषा, मां कली, शनिदेव व बजंरग वली की प्रतिमाय भी स्थापित की गई है। समिति के अध्यक्ष सुनील सिंह ने बताया की भक्तो श्रद्वा व सहयोग से मां रमदईया को निरंतर विकसित रूप दिया है।अनूठी कहानी
माँ रमदईया पत्थरो पे एक छाप की तरह दिखाई देती थी और धीरे धीरे अपने आप पत्थरो से माता का चेहरा प्रगट होता गया, इस  जगह घने वृक्षो से आच्छादित उची पहाड़ियो के गर्भ में कब मां रमदईया प्रगट हुई है कोई नही जानता है बताया जाता है की खुद मां रमदईया देवी चलकर आई है और विराजमान हुई है। तब से लेकर अब तक ये शक्ति पिठ के रूप में  जाना जाता है। ये मंदिर प्रचीन समय से है और धिरे धिरे मां के आशीर्वाद से मंदिर का स्वरूप बदलता गया है और आज इस मंदिर और मां रमदईया से लाखो की संख्या में भक्त जुड़ते जा रहे है। रामनवमी और नवरात्र के समय मंदिर में भक्तो के द्वारा हवन भी किया जाता है। पुजारी का कहना है की मां रमदईया की पुजा पहले गुफा में होती थी कुछ गलती होने के कारण से  मां नाराज हो गई थी और जिस गुफा में पुजा किया जाता था वो गुफा बंद हो गया। किसी बैगा को मां ने दर्शन देकर कहा की अब मेरी पुजा निचे करो तो तब से लेकर आज तक निचे ही मां रमदईया का पुजा पहार के निचे होने लगा। इस धाम में किस्मत वालो को जमीन के निचे से सिक्का मिलता है किस धातु का सिक्का है ये तो कोई भी नही बता पाया है कहा जाता है की मुगल समय से पहले की ये सिक्का है। जो की किस्मत वालो को मिलता हैं। आज भी भक्तो के द्वारा मिट्रटी खुदकर सिक्का खेते जाते है। धाम के प्रगान में एक गुफा भी है जाहां नवरात्री में एक अजगर सांप भी दिखई देता है जिसे लोग भगवान का ही रूप मानते है इसकी दर्शन करने के बाद अपने आप को धन्य मानते है।मंदिर में बने किल वाली झुले  

इस नवरात्र के समय मंदिर में पहुचे भक्त झुमने लगते है मंदिर में बने किल वाली झुले में भक्त बैठ कर झुला झुलते है और अपने शरीर में किल सलाखे तक चुभा देते है लेकिन मां की कृपा इन पर बनी रहती है जिस कारण इनको बिलकुल भी तकलिफ नही होती है। लोगो की माने तो इनके उपर देवी का छाया आ जाता है जिस वजह से ये झुमते रहते है और अपने उपर किल और सलाखे से धागते है लेकिन इनको जरा भी तकलिफ नही होती है। इसे हि कहते है मां की कृपा मां का चमत्कार।