जर्जर स्कूल में पढ़ने की है मजबूरी , कभी भी हो सकता है बड़ा हादसा

  • 40 बच्चे हैं विद्यालय में अध्यनरत..
  • फर्श भी टूट कर हो चुके हैं क्षतिग्रस्त..

बिश्रामपुर (पारसनाथ सिंह) सरकार शिक्षा पर हर वर्ष लाखों-करोड़ों रुपये खर्च कर रही है। लेकिन प्राथमिक विद्यालयों की अपेक्षा निजी विद्यालयों में बच्चों की संख्या दिन पर दिन बढ़ रही है। कई स्थानों पर भवन जर्जर होने के कारण छात्रों को दूसरे विद्यालयों में जाकर शिक्षा ग्रहण करनी पड़ती है। और ऐसी ही स्थिति सुरजपुर जिले के बीरपुर गाँव के प्राथमिक विद्यालय की है। गाँव में बने प्राथमिक स्कूल भवन जर्जर हैं। इसके कारण हमेशा दुर्घटना का भय सताता रहता है। बीरपुर गाँव में फटाफट न्यूज़ की टीम ने पहुंचकर हाल देखा तो विद्यालय में बने तीन कमरे और एक बरामदा की छतों की प्लास्टर कहीं – कहीं निकल कर गिर गये हैं। और छत में लगे रॉड साफ-साफ नज़र आ रहे हैं। जो पुराने होने के कारण कमजोर हो चुके हैं। और हमेशा बड़े हादसे न्यौता दे रहें हैं। और इस विद्यालय के सभी कमरों की छते बरसात के दिनों में टपकते हैं। और सभी बच्चे बरसात के दिनों में बरामदे में जहाँ-जहाँ पानी नही टपकता है। वहां-वहां जगह देखकर बैठकर शिक्षण कार्य करते हैं। स्कूलों के भवन काफी जर्जर हो गए हैं। इसके चलते शिक्षकों और बच्चों को हमेशा दुर्घटना होने का भय सताता रहता है।

विद्यालय के प्रधानाचार्य श्री सुमेर सिंह ने बताया की स्कूल भवन जर्जर हो चुका है। जो हमेशा हादसा होने का डर सता रहा है! और इस विषय पर विभाग को कई बार सुचना दिया गया है। लेकिन इस पर कोई कार्रवाई नहीं होती।

लापरवाह विभाग

कई बार उच्च अधिकारियों को अवगत कराने के बाद भी समस्या का समाधान नहीं हो सका जिस कारण बच्चे डर के साए में बैठकर पढ़ने को मजबूर है।
शिक्षा व्यवस्था की पोल खोलता हुआ यह विद्यालय या यहाँ पढ़ने वाले बच्चों की जान विभाग के लिए कोई अहमियत नहीं रखते।
विभाग की सुस्ती का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है।

विधालय में बच्चे जर्जर भवन में भयभीत होकर पढ़ने को विवश हैं. भवन की हालत इतनी दयनीय है कि कभी भी ध्वस्त हो सकता है और किसी अनहोनी की घटना घट सकती है।

इन्हीं टूटे छतों के कमरों में बच्चों की पढ़ाई की जा रही है. भवन की जर्जर स्थिति से बच्चे के अविभावक भी किसी अनहोनी से भयभीत रहते हैं. वहीं शिक्षक भी भयभीत होकर बच्चों की पढ़ाई प्रतिदिन करते हैं.! वही कार्यरत शिक्षकों को भी परेशानी उठानी पड़ रही है। और बच्चों को विधालय के क्षतिग्रस्त बरामदे में बिठाया जा रहा है। मासूम बच्चे जान हथेली पर रखकर स्कूलों के भवन में प्रवेश करते है। और बरसात के दिनों में स्कूलो की छत से पानी ऐसे टपकता है जैसे कमरे में ही बारिश हो रही हो