घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग

Grishneshwar Jyotirling
Grishneshwar Jyotirling
  • एलोरा की गुफाओ के समीप स्थित घृष्णेश्वर मन्दिर
  • बारह ज्योतिर्लिगों में से एक

महाराष्ट्र का प्रसिद्ध घृष्णेश्वर या घुष्मेश्वर महादेव का मंदिर औरंगाबाद शहर के समीप दौलताबाद से 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। घृष्णेश्वर मन्दिर भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिगों में से एक है। इस मंदिर का अंतिम जीर्णोद्धार 18 वीं शताब्दी में इंदौर की महारानी पुण्यश्लोका देवी अहिल्याबाई होलकर के द्वारा करवाया गया था। शहर के शोर-शराबे से दूर स्थित यह मंदिर शांति एवं सादगी से परिपूर्ण माना जाता है। हर साल देश-विदेशों से लोग यहां दर्शन के लिए आते हैं तथा आत्मिक शांति प्राप्त करते हैं। मान्यता है कि मंदिर के दर्शन करने से सब प्रकार के अभीष्ट प्राप्त होते हैं, नि:संतानों को संतान की प्राप्ति होती है। घुष्मेश्वर ज्योतिर्लिग का दर्शन व पूजन करने से सब प्रकार के सुखों की वृद्धि होती है।

भगवान शिव कैसे हुए यहां स्थापित

इस ज्योतिर्लिग के बारे मे कई तरह की कथाएं प्रचलित हैं। पौराणिक कथा के अनुसार दक्षिण दिशा में स्थिति देवपर्वत पर सुधर्मा नामक एक विद्वान ब्राह्मण अपनी धर्मपरायण सुंदर पत्नी सुदेहा के साथ रहता था। दोनों ही भगवान शिव के परम भक्त थे। कई वर्षो के बाद भी उनके कोई संतान नहीं हुई। लोगों के उलाहने सुन-सुनकर सुदेहा दु:खी रहती थी। अंत में सुदेहा ने अपने पति को मनाकर उसका विवाह अपनी बहन घुष्मा से करा दिया। घुष्मा भी शिव भगवान की अनन्य भक्त थी और भगवान शिव की कृपा से उसे एक पुत्र की प्राप्ति हुई। यद्यपि सुदेहा ने अपनी बहन से किसी प्रकार की ईष्र्या न करने का वचन दिया था परंतु ऐसा हो न सका। कुछ वर्ष बाद सुदेहा ने घुष्मा के सोते हुए पुत्र का वध करके शव को समीप के एक तालाब में फेंक दिया। सुबह हुई तो घर में कोहराम मच गया परंतु व्याकुल होते हुए भी धर्मपरायण घुष्मा ने शिव भक्ति नहीं छोड़ी। नित्य की भांति वह उसी तालाब पर गई। उसने सौ शिवलिंग बना कर उनकी पूजा की और फिर उनका विसर्जन किया।

धुष्मा की भक्ति से शिव अत्यंत प्रसन्न हुए। जैसे ही वह पूजा करके घर की ओर मुड़ी त्यों ही उसे अपना पुत्र खड़ा मिला। वह शिव-लीला से बेबाक रह गई क्योंकि शिव उसके समक्ष प्रकट हो चुके थे। अब वह त्रिशूल से सुदेहा का वध करने चले तो घुष्मा ने शिवजी से हाथ जोड़कर विनती करते हुए अपनी बहन सुदेहा का अपराध क्षमा करने को कहा। घुष्मा ने भगवान शंकर से पुन: विनती की कि यदि वह उस पर प्रसन्न हैं तो वहीं पर निवास करें। भगवान शिव ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और घुष्मेश नाम से ज्योतिर्लिग के रूप में वहीं स्थापित हो गए।

मंदिर की संरचना

समय-समय पर घृष्णेश्वर महादेव मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ है। इसकी दीवारों पर देवी-देवताओं की मूर्तियां खुदी हुई हैं। पत्थर के 24 खम्भों पर सुंदर नक्काशी तराश कर सभामण्डप बनाया गया है। मंदिर का गर्भगृह 17 गुणा 17 फुट का है जिसमें एक बड़े आकार का शिवलिंग रखा गया है जो पूर्वाभिमुख है। भव्य नंदीकेश्वर सभामण्डप में स्थापित हैं। सभामण्डप की तुलना में गर्भगृह का स्तर थोड़ा नीचे है। गर्भगृह की चौखट पर और मंदिर में अन्य जगहों पर फूल पत्ते, पशु पक्षी और मनुष्यों की अनेक भाव मुद्राओं का शिल्पांकन किया गया है।

घृष्णेश्वर शिव मंदिर में एक और विशेष बात यह है कि 21 गणेश पीठों में से एक पीठ ‘लक्षविनायक’ नाम से यहां प्रसिद्ध है। पुरातत्व और वास्तुकला की दृष्टि से यह मंदिर बहुत महत्वपूर्ण है। मंदिर में अभिषेक और महाभिषेक किया जाता है। सोमवार, प्रदोष, शिव रात्रि और अन्य पर्वो पर यहां बहुत बड़ा मेला लगता है। शिवभक्तों और पर्यटकों का विशाल समुदाय यहां उमड़ता है।

ज्योतिर्लिग के दर्शन का समय

मान्यता के अनुसार यहां आने वाले पुरुष भक्त अपने शरीर से कमीज एवं बनियान तथा बेल्ट उतारकर ज्योतिर्लिग के दर्शन करते हैं। मंदिर रोज सुबह 5:30 से रात 9:30 बजे तक खुला रहता है। श्रावण के पावन महीने में मंदिर सुबह 3 बजे से रात 11 बजे तक भक्तों के लिए खोल दिया जाता है। मुख्य त्रिकाल पूजा तथा आरती सुबह 6 बजे तथा रात 8 बजे होती है। महाशिवरात्रि के अवसर पर भगवान शिव की पालकी को समीपस्थ शिवालय तीर्थ कुंड तक ले जाया जाता है। श्री घृष्णेश्वर मंदिर का प्रबंधन श्री घृष्णेश्वर मंदिर देवस्थान ट्रस्ट के द्वारा किया जाता है।

कुछ ही दूरी पर हैं एलोरा की गुफाएं

यहां से कुछ ही दूरी पर बौद्ध भिक्षुओं द्वारा निर्मित एलोरा की प्रसिद्ध गुफाएं स्थित हैं। विश्व विरासत स्थल का दर्जा प्राप्त ये गुफा कई मंदिरों का समूह है जिसमें हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्मो के मंदिर तथा मूर्तियां हैं। यहीं पर श्री एकनाथ जी के गुरु श्री जनार्दन महाराज जी की समाधि भी है।

कहां ठहरें

यदि आप घृष्णेश्वर पहुंचकर वहां कुछ रुकना चाहते हैं तो आप घृष्णेश्वर मंदिर ट्रस्ट के द्वारा संचालित यात्री निवास में ठहर सकते हैं। यहां एक कमरे का किराया 200 रु से 250 रु तक है। घृष्णेश्वर मंदिर से कुछ ही दूरी पर एलोरा गुफाओं के समीप कुछ होटल भी हैं जिनका किराया एक दिन के लिए 800 से 2000 के बीच है। आप यदि औरंगाबाद में ठहरना चाहते हैं तो यहां एक दिन के लिए 300 रु. से लेकर 2500 रु. की रेंज में काफी संख्या में होटल उपलब्ध हैं।

कैसे पहुंचे

घृष्णेश्वर मंदिर औरंगाबाद से 35 किमी जबकि मुंबई से 422 किमी की दूरी पर है जबकि पुणे से यह जगह 250 किमी की दूरी पर स्थित है। औरंगाबाद से घृष्णेश्वर का 45 मिनट का सफर यादगार होता है क्योंकि घने पेड़ों से भरा यह रास्ता नयनाभिराम सह्याद्री पर्वत के सामानांतर दौलताबाद, खुलताबाद और एलोरा गुफाओं से होकर जाता है जहां पर पर्यटकों के लिए बहुत कुछ है। आप घृष्णेश्वर तक पहुंचने के लिए औरंगाबाद और दौलताबाद जैसे यातायात केंद्रों से बस या टैक्सी की सुविधा ले सकते हैं। अगर आप ट्रेन के जरिए यात्रा करना चाहते हैं तो आपके लिए औरंगाबाद नजदीकी रेलवे स्टेशन है। यहां उतरकर आप यातायात के दूसरे साधन को लेकर घृष्णेश्वर मंदिर पहुंच सकते हैं।