Martyrs’ Day 2024: छत्तीसगढ़ पहुँच कर महात्मा गाँधी ने दलितों के साथ क्या किया, बापू का छत्तीसगढ़ कनेक्शन.!

Chhattisgarh News: राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी (Mahatma Gandhi) का छत्तीसगढ़ से पुराना रिश्ता रहा है. वो आज़ादी की लड़ाई के दौरान कई बार छत्तीसगढ़ के अलग-अलग इलाक़े में आए. आज 30 जनवरी को महात्मा गांधी की पुण्यतिथि (Mahatma Gandhi Death Anniversary 2024) है. ऐसे में ये जानना बड़ा ही दिलचस्प हो जाता है कि श्री गांधी का छत्तीसगढ़ से क्या कनेक्शन रहा है और वो कब-कब छत्तीसगढ़ आए हैं.

भारत मे आज़ादी के लिए हो रहे संघर्ष के बाद महात्मा गाँधी दो बार छत्तीसगढ़ आए थे. 20 दिसंबर 1920 को आज से 104 साल पहले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी सबसे पहली बार रायपुर रेलवे स्टेशन पहुँचे थे. बापू धमतरी के कंडेल गाँव मे आयोजित सत्याग्रह संघर्ष में शामिल होने पहुँचे थे. जो 21 दिसंबर को कंडे के सत्याग्रह में शामिल हुए थे. महात्मा गाँधी को छत्तीसगढ़ के गांधी के नाम से विख्यात पंडित सुंदर लाल शर्मा कलकत्ता से रायपुर लेकर आए थे.

जहां सभा की वो आज गांधी चौक

जानकारी के मुताबिक़ महात्मा गांधी के छत्तीसगढ़ के रायपुर आगमन पर पंडित रविशंकर शुक्ल, सखाराम दुबे, ठाकुर प्यारे लाल सिंह और पंडित वामनराव लाखे समेत आज़ादी की लड़ाई से जुड़े दर्जनों लोगों ने भव्य स्वागत किया था. इस स्वागत कार्यक्रम के बाद रायपुर में ही महात्मा गांधी ने जनसभा को संबोधित किया था. और जिस चौराहे पर उन्होंने सभा को संबोधित किया था. वो आज रायपुर का गांधी चौक है.

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महिलाओं की सभा में शामिल

इस सभा के बाद गांधी जी ने महिलाओं की एक सभा को संबोधित किया था. इस सभा में महिलाओं ने तिलक स्वराज फंड के लिए 2 हजार रूपए के गहनों का दान किया था. इस सभा का आयोजन रायपुर के ब्राह्मण पारा स्थित आनंद समाज वाचनालय प्रांगण में किया गया था.

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रायपुर से नागपुर रवाना

जानकार सूत्रों और कुछ किताबी साक्ष्य के मुताबिक इस सभा के बाद गांधी जी 20 दिसंबर 1920 की रात रायपुर में ही रूके थे. उसके बाद अगले दिन धमतरी के कंडेल और कुरूद गाँव गए. यहाँ वो कंडेल के सत्याग्रह में शामिल हुए और फिर वहाँ से रायपुर आकर 26 दिसंबर 1920 को नागपुर में आयोजित कांग्रेस के अधिवेशन के लिए रवाना हो गए.

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दोबारा 13 साल बाद छत्तीसगढ़ प्रवास

1920 के 13 साल बाद एक बार फिर महात्मा गांधी का छत्तीसगढ़ प्रवास हुआ. तब अविभाजित छत्तीसगढ़ के इस हिस्से में दलित वर्ग के लोगों को दूसरी निगाह से देखा जाता था. और रूढ़िवादी सोच के कारण उनके हाथ से लोग पानी भी नहीं पीते थे. लिहाज़ा अपने दौरे के दौरान महात्मा गांधी ने इस समाजिक दूरी को मिटाने का प्रयास किया. और बालौदा बाज़ार के जिस मंडी कैंपस में उन्होंने सभा को संबोधित किया. वहां पहले उन्होंने एक कुँए से पानी निकलवाया और फिर उसके हाथ से पानी पीकर सामाजिक सद्भावना का उदाहरण पेश किया था.

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दलितों का मंदिर प्रवेश

एक दौर था जब दलित वर्ग का छुआ खाना, पानी लोग इस्तेमाल नहीं करते थे. तो वहीं दलितों का मंदिर में आना सख़्त मना था. लेकिन आज से 94 साल पहले जब महात्मा गांधी बालौदा बाज़ार पहुँचे थे. तब वहाँ के गोपाल (जगन्नाथ) मंदिर गए. और अपने साथ दलितों को भी मंदिर के अंदर ले गए. और भगवान को रेशमी वस्त्र की जगह मंदिर के पुजारी को खादी का वस्त्र मंगा कर दिया और पहनाने के लिए कहा.