सरगुजा की महिलाओं ने हाथों से बनाए इतने खूबसूरत दिये.. की इस दीवाली भूल जाएंगे चाइनीज दिये और कैंडल!.

अम्बिकापुर. प्रदेश सरकार की महत्वाकांक्षी योजना नरवा, गुरुवा, घुरूवा बाड़ी योजनान्तर्गत मवेशियों के लिए बने गौठान अब लोगों के रोजगार का एक माध्यम बन चुका है. जिसमें कार्य करके ग्रामीण क्षेत्र की महिलाए आत्मनिर्भर बन रही हैं. गौठान से निकले गोबर से प्रतिदिन लाखों दिए बनाये जा रहे हैं. जिसकी डिमांड प्रदेश सहित अन्य राज्यों में काफ़ी संख्यां में है. बता दें कि, राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की गलियां और घर इस दीवाली छत्तीसगढ़ के गौठान के गोबर से बने दिये से रौशन होंगे.

अक्सर देखा जाता है कि सोशल मीडिया में दीवाली और अन्य त्योहारों के आने से पहले चाइनीज सामानों के बहिष्कार की ख़बरें वायरल होने लगती है. लोगों द्वारा यह कहा जाता है कि स्वदेशी सामानों का इस्तेमाल करें. लेकिन ज़मीनी स्तर पर इसका कोई प्रभाव नही दिखता. लोग चाइनीज़ सामनो की तरफ ज्यादा आकर्षित होते हैं. लेकिन अब ऐसा नहीं है. छत्तीसगढ़ की महिलाओं की तकनीक से बनी ये चीज़ लोगों को खूब अपनी ओर आकर्षित कर रही है.

आपने देखा होगा कि ज़्यादातर मिट्टी के दिए कुम्हारों द्वारा उनके उपकरण (चाक) द्वारा बनाये जाते हैं. लेकिन सरगुजा जिले की महिलाओं ने बिना मशीन के कुम्हार की तरह दिए बना दिये हैं. जिसकी क्षेत्रीय स्तर पर काफ़ी सराहना की जा रही है. दरअसल, जिले के मैनपाट ब्लॉक के उडुमकेला व लुंड्रा ब्लॉक के लमगांव में स्वयं सहायता समूह की गोंड व नगेशिया जनजाति की 20 महिलाओं ने गौठान के गोबर व मिट्टी मिलाकर हाथ से लगभग 2000 दिये बनाये हैं. वहीं उडूमकेला में कंवर और यादव जाति की 25 महिलाएं गोबर से दिये बनाने का कार्य कर रही हैं. और इस दीवाली बाज़ारों में लोग अपनी परंपरागत मिट्टी के बने दिए कि ओर आकर्षित हो रहे हैं. वैसे भी पूजा में गाय के गोबर का बड़ा महत्व माना जाता है. ये गोबर आस्था से जुड़े होने के साथ ही अब महिलाओं के लिए रोजगार का एक जरिया भी बन गया है. गौठान में महिलाएं गोबर से खूबसूरत दीये बना रही हैं. जो चाइनीज दीये और कैंडल की तुलना में खूबसूरत के साथ ही पर्यावरण के लिए फायदेमंद हैं.

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