रायपुर : हर व्यक्ति में बुद्धि के साथ करूणा का विकास जरूरी : श्री दलाईलामा

नोबल शांति पुरस्कार से सम्मानित बौद्ध धर्मगुरू का व्याख्यान
नागार्जुन दर्शन पर तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन

रायपुर, 15 जनवरी 2013

विश्व शांति के लिए नोबल पुरस्कार से सम्मानित बौद्ध धर्मगुरू और तिब्बत की निर्वासित सरकार के प्रमुख श्री दलाईलामा ने मानव जीवन की बेहतरी के लिए प्रत्येक व्यक्ति ने बुद्धि के साथ-साथ करूणा के विकास पर भी बल दिया है। श्री दलाईलामा आज अपरान्ह यहां पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के सभागृह में नागार्जुन दर्शन पर आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन सत्र को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने इस मौके पर ‘बुद्धि और करूणा’ विषय को लेकर सार्वजनिक व्याख्यान दिया। श्री दलाईलामा ने कहा कि लगभग सात अरब की जनसंख्या वाली इस दुनिया में अच्छे और बुरे दोनों तरह के विचारों के लोग रहते हैं। हमें अपने भीतर बुरे विचारों को अच्छे विचारों में बदलने की क्षमता विकसित करने का प्रयास करना चाहिए।

श्री दलाईलामा ने कहा कि जिस प्रकार हम अपनी शारीरिक स्वच्छता का ध्यान रखते हैं, उसी तरह हमें अपनी भावनाओं की स्वच्छता का भी ध्यान रखना चाहिए। बच्चों के किडरगार्डन स्कूलों से विश्वविद्यालयों तक हमारी शिक्षा पद्धति भी ऐसी होनी चाहिए, जिसमें बुद्धि के साथ मानवीय करूणा और संवेदनशीलता भी शामिल रहे। कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ सरकार के पर्यटन और संस्कृति मंत्री श्री अजय चन्द्राकर तथा नगर निगम रायपुर की महापौर डॉ. (श्रीमती) किरणमयी नायक सहित पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एस.के. पाण्डेय, सारनाथ स्थित केन्द्रीय विश्वविद्यालय के तिब्बत अध्ययन केन्द्र के कुलपति प्रो. नवांग समतेन और अन्य अनेक प्रबुद्ध नागरिक उपस्थित थे। पर्यटन और संस्कृति मंत्री श्री अजय चन्द्राकर ने अपने उदबोधन में कहा कि श्री दलाईलामा के छत्तीसगढ़ प्रवास के दौरान सिरपुर की उनकी यात्रा से राज्य के इस अत्यन्त प्राचीन ऐतिहासिक स्थल को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर एक नयी पहचान मिली है। राज्य सरकार सिरपुर को और भी बेहतर ढंग से विकसित और संरक्षित करने का हरसंभव प्रयास कर रही है।  3390 Bcccc
मुख्य अतिथि की आसंदी से ‘बुद्धि और करूणा’  विषय पर अपने व्याख्यान में श्री दलाईलामा ने भारतीय संस्कृति, भारतीय दर्शन और भारतीय परम्पराओं की हजारों वर्ष पुरानी विरासतों का उल्लेख करते हुए कहा कि हम तिब्बत के लोग भारत को अपना गुरू मानते हैं। भारतीय लोग मेरे गुरू हैं और मैं आप लोगों का चेला। श्री दलाईलामा ने सामाजिक बुराईयों और विसंगतियों को दूर करने के लिए शिक्षा में नैतिकता और करूणा की जरूरत पर भी विशेष रूप से बल दिया। उन्होंने कहा कि मनुष्य सामाजिक प्राणी हैं। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति में सामाजिक करूणा का उत्पन्न होना भी जरूरी है। प्रेम और करूणा के अन्तर को स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि प्रेम मनुष्यों में परिवार और संबंधियों तक सीमित रहता है। किसी प्रकार का विवाद होने पर प्रेम कम हो जाता है, लेकिन करूणा सम्पूर्ण विश्व के लिए होती है। अपने दुश्मन के लिए भी हममें करूणा का भाव होना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि हमें सभी धर्मो का आदर करते हुए धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को अपनी प्रज्ञा के द्वारा दुनिया भर में फैलाने का प्रयास करना होगा। सभी मनुष्यों में करूणा का भाव जगाना होगा।
शिक्षा पद्धति का उल्लेख करते हुए श्री दलाईलामा ने कहा कि मनुष्य अपनी भौतिक उन्नति के लिए आधुनिक शिक्षा जरूर प्राप्त करे, लेकिन हमें भारत के अपने हजारों वर्ष पुराने दर्शन, अपनी प्राचीन संस्कृति और अपने नैतिक मूल्यों से हमेशा जुड़कर रहना चाहिए। श्री दलाईलामा ने कहा कि मानसिक शांति के लिए व्यक्ति का लखपति और करोड़पति होना जरूरी नहीं है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि बड़ी-बड़ी अट्टालिकाओं में रहने वाले सम्पन्न लोगों को मानसिक अशांति की वजह से रातों में नींद नहीं आती, जबकि गरीब परिवारों के सदस्य पैसा कम होने के बावजूद एक दूसरे के साथ प्रेम और सुख-शांति से रहते हैं। श्री दलाईलामा ने पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास, पुरातत्व और संस्कृति विभाग द्वारा ‘नागार्जुन दर्शन’ पर आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी की प्रशंसा करते हुए यह भी सुझाव दिया कि विश्वविद्यालय आगामी संगोष्ठी ‘चित्त की शांति’ विषय पर आयोजित करे। उन्होंने कहा कि भारतीय दर्शन के अन्तर्गत बौद्ध दर्शन भी वास्तव में चित्त का विज्ञान है। इस विषय पर बड़ी संख्या में तिब्बती ग्रंथों का हिन्दी, चीनी और अंग्रेजी भाषा में अनुवाद किया गया है।