सरगुजिहा माटी के लाल और मिट्टी की कला दोनो की उपेक्षा : सरगुजा महोत्सव का मामला

अम्बिकापुर 

भित्तीकला और मिट्टी की कारीगरी के लिए राष्ट्रपति पुरुष्कार प्राप्त दिवंगत सोनाबाई के जिले मे मिट्टी की कला से जुडे कलाकारो को उपेक्षा का शिकार होना पड रहा है। मामला सरगुजा महोत्सव मे स्टाल की आस मे आए टेरोकोटा के कलाकारो से जुडा है। जिन्हे अपनी प्रतिभा की प्रदर्शनी लगाने के लिए प्रशासन स्थान तक मुहैया नही करा पाया।

अम्बिकापुर मे आयोजित राज्योत्सव और सरगुजा महोत्सव मे देशी प्रतिभाओ को बढावा देने के भले ही तमाम दावे क्यो ना किए गए हो । लेकिन जिले के बरगंवा से आए टेराकोटा यानी मिट्टी की समाग्री बनाने वाले कलाकारो की जो उपेक्षा की गई है ।  उसने महोत्सव की उपयोगिता पर सवाल खडा कर दिया है। दरअसल सरगुजा महोत्सव मे बरगंवा के सुखनराम अपने समूह के लोगो के साथ मिट्टी की कलाकृतियो की प्रदर्शनी के लिए स्टाल की मांग की ।  लेकिन प्रशासन की किसी नुमाईंदे ने उनको स्टाल तो मुहैया नही कराया। बल्कि जमीन मे ही मूर्तियां बेचने के लिए जगह दे दी।Shopping for Diwali

ऐसा नही है कि सरगुजा महोत्सव की ख्याति के कारण उसके सभी स्टाल बुक हो गए हो । बल्कि खाली पडे स्टालो के बाद भी जमीन से जुडे कलाकारो को महोत्सव की जमीन ही नसीब हुई है। और वो अपनी प्रतिभा को असुरक्षित ढंग से जमीन मे ही बिछाए बैठे है। इस सवाल के साथ जब हम कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सांसद कमलभान सिंह के पास पंहुचे । तो उन्होने उपेक्षा वाली बात का सिरे से नकार दिया। और कहा उसके विलंब से आने की वजह से ये परेशानी आई होगी।

आपको जानकर हैरानी होगी कि इसी सरगुजा की माटी मे पली बढी लखनपुर की सोनाबाई ने अपनी भित्तीकला और मिट्टी के द्वारा दीवारो मे की जाने वाली कारगारी के लिए खूब प्रसिद्दी पाई थी। और देश ही नही विदेशो मे भी उनकी प्रदर्शनी लग चुकी है। लेकिन दिवंगत सोनाबाई के गृहजिले मे मिट्टी से जुडे कलाकारो की इस उपेक्षा को देखकर तो यही कहा जा सकता है कि आधुनिकता की चकाचौंध देशी कलाकारो पर ही भारी ही नही पड रही है ।  बल्कि प्रशासनिक उदासनीता उनके असतित्व के लिए भी खतरा बन रही है।