दावे तो है बड़े बड़े पर पेट की भूख के आगे नहीं रुक रहा पलायन..!

कोतवाली पुलिस ने रोका 17 मजदूरों का पलायन… श्रमिको को दो दिनों से पुलिस खिला रही है खाना 
 
 
श्रम विभाग कार्यवाही में कर रहा लेटलतीफी 

 
अम्बिकापुर देश दीपक “सचिन”
गरीबी का दंश झेल रहे छत्तीसगढ़ के लोग पेट की आग बुझाने इस कदर मजबूर है की उन्हें अपना जन्म स्थान घर द्वार सब कुछ छोड़ अन्य प्रदेशो में पलायन करना पड रहा है..ये गरीब और करे भी क्या क्योकि भूखे पेट तो भजन भी नही किया जा सकता ऐसे में प्रदेश में पलायन को रोकने सरकार ने तमाम प्रयास किये और स्किल डेव्हलपमेंट के प्रयास अब भी जारी है, लेकिन रोजगार की तलाश और पेट की भूख पलायन को रोक पाने में नाकाम रही है। मौजूदा मामला उस वक्त सामने आया जब अम्बिकापुर की कोतवाली पुलिस ने ईंट भट्ठे में काम करने के लिए ले जाए जा रहे सत्रह श्रमिको को उनके परिवार के साथ बस से उतरवाया, दरअसल ये लोग किसी ठेकेदार के द्वारा बिलासपुर के चिरदा से उत्तरप्रदेश की आजमगढ़ ले जाए जा रहे थी गौरतलब है की मंगलवार और बुधवार की दरमियानी रात से ये श्रमिक कोतवाली थाने में बिठाए गए है लेकिन 48 घंटे से भी ज्यादा वक्त बीत जाने के बाद श्रम विभाग ने कोई कार्यवाही नहीं की जिसके कारण अंबिकापुर का कोतवाली थाना ही इन श्रमिको का आशियाना बना हुआ है और श्रम विभाग की इस लेट लतीफ़ लापरवाही के कारण थाना प्रभारी एवं प्रशिक्षु डीएस मणिशंकर चंद्रा के द्वारा पिछले दो दिनों इन श्रमिको के भोजन पानी की व्यवस्था की जा रही है।
पुलिस सूत्रों के मुताबिक़ मंगलवार और बुधवार की दरमियानी रात सवारी बस से उतारे गए सत्रह श्रमिको में महिला बच्चे और पुरुष शामिल है जिन्हें बिलासपुर के किसी ठेकेदार के द्वारा उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ में संचालित ईंट भट्ठे में मजदूरी करने के लिये भेजा जा रहा था। जानकारी के मुताबिक़ इन श्रमिको को पांच सौ रुपया प्रति हजार ईंट बानाने की मजदूरी देने के नाम पर आजमगढ़ ले जाया जा रहा था।
अनिल कुजूर श्रम अधिकारी 
इस सम्बन्ध में जब हमने श्रम अधिकारी अनिल कुजूर से बात की तो उन्होंने बताया की ठेकेदार को बुलाया गया है लेकिन वो अब तक नहीं आया है जिस पर ठेकेदार को नोटिस भेज कर ऋपोर्ट तैयार कर चार्ज सीट लेबर कोर्ट में पेश की जाएगी और कोर्ट उक्त ठेकेदार पर कार्यवाही करेगा। श्री कुजूर ने यह भी बताया की इस मामले में तो ठेकेदार का पता चल सका है और मजदूरों ने बताया की उन्हें मजदूरी के लिए ले जाया जा रहा था जबकि अमूमन ऐसे मामलो में कई बार विभाग चाह कर भी कुछ नहीं कर पाता है क्योकि ना ठेकदार का पता चलता है और ना ही मजदूर सच्चाई बताते है ज्यादातर मजदूर गंगा नहाने जाने की बात कह कर पुलिस और प्रशासन को टाल देते है।