सूर्यग्रहण का राशि अनुसार फल एवं उपाय… जानिए, आपकी राशि पर ग्रहण का कैसा प्रभाव रहेगा!..

मेष? ? मेष राशि के जातकों के लिये यह ग्रहण शुभ फल प्रदान करेगा, ग्रहण के प्रभाव से धन लाभ के साथ पराक्रम में वृद्धि होगी जन सम्पर्क बढेगा।

उपाय? कपिला गाय को लाल वस्त्र ओढाकर गुड़ में बनी रोटियां खिलाये।

मंत्र जप? ॐ क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाय नम: अथवा गुरु से मिले मंत्र का यथा सामर्थ्य अधिक से अधिक जप।

वृष? ? वृष राशि जातको के लिये यह ग्रहण हानिकारक रहेगा नौकरी व्यवसाय संबंधित समस्या खड़ी होगी। आंखों में समस्या हो सकती है। इन जातकों को ग्रहण दर्शन से बचना चाहिये।

उपाय? सूतक से पहले गूलर की जड़ बाजू में बांधकर रखें तथा सवा 5 या 11 किलो आटा सर से 11 बार उसार कर धर्म क्षेत्र पर दान करें।

मंत्र जप? ॐ क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाय नम:। अथवा गुरु से मिले मंत्र का यथा सामर्थ्य अधिक से अधिक जप।

मिथुन? राशि पर यह ग्रहण घटित होने के कारण इस राशि के जातकों को विशेष रूप से सतर्क रहने की आवश्यकता है। किसी न किसी रूप में गंभीर शारीरिक कष्ट के साथ मानसिक एवं आर्थिक समस्या का सामना करना पड़ेगा।

उपाय? श्रीफल (जटा वाला नारियल) सूतक काल से पहले सर से 11 बार उसार कर बहते जल में प्रवाहित करें। अपने मनपसंद की कोई भी खाद्य वस्तु विकलांगो में बांटना कल्याणकारक होगा। जयंती घास की जड़ को चारबार करके पहने।

मंत्र जप? ॐ द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नम:
अथवा गुरु से मिले मंत्र का यथा सामर्थ्य अधिक से अधिक जप।

कर्क?? कर्क राशि से यह ग्रह 12वां होने के कारण किसी न किसी रूप में हानि ही कराएगा इन जातको को धन के निवेश और वाहनादि से सतर्क रहना होगा।

उपाय? सूतक से पहले और बाद में शिवलिंग पर सवा-सवा किलो दूध अथवा कच्ची लस्सी से अभिषेक करें 11 किलो चावल सर से 11 बार उसार कर आश्रम आदि धर्म संस्थाओं में दान करना, चंदन का लेप, पीपल की जड़ दुहरी कर दायें हाथ में बांधे। और ॐ नमस्ते रुद्रमन्यव उतोत इषवे नमः। ते नमः । ॐ रुद्राय नमः। बाहुम्यामुत मंत्र का ग्रहण काल मे ज्यादा से ज्यादा जप करना हितकर रहेगा।

मंत्र जप? ॐ श्रां श्रीं श्रौं स: चन्द्राय नम:
अथवा गुरु से मिले मंत्र का यथा सामर्थ्य अधिक से अधिक जप।

सिंह?? सिंह राशि के लिये यह ग्रहण लाभप्रद रहेगा। सार्वजिनक क्षेत्र पर सम्मान के साथ मनोकामना पूर्ति होने के आसार बनेंगे। आकस्मिक लाभ होगा।

उपाय? ग्रहण के सूतक से पहले और बाद में अंडविद्यालय अथवा नेत्रहीनों को अपने पसंद के वस्त्र और भोजन कराना अत्यंत शुभ होगा।

मंत्र जप? ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नम:
अथवा गुरु से मिले मंत्र का यथा सामर्थ्य अधिक से अधिक जप।

कन्या?? कन्या राशि जातको के लिये यह ग्रहण सुखकारी रहेगा। किसी मनोकामना अथवा विशेष कार्य के सिद्ध होने की संभावना बनेगी। आर्थिक लाभ भी हो सकता है। सरकारी कार्यो में विजय मिल सकती है।

उपाय? सूतक से पहले और बाद में गणेश जी को 21 गांठे दूर्वा की अर्पण करें। गाय को 100 किलो अथवा यथा सामर्थ्य हरा चारा खिलाने से उपरोक्त फल अवश्य प्राप्त होंगे।

मंत्र जप? ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नम:
अथवा गुरु से मिले मंत्र का यथा सामर्थ्य अधिक से अधिक जप।

तुला⚖️? तुला राशि जातको के लिये ग्रहण फल सामान्य फलदायक रहेगा फिर भी इस अवधि में व्यर्थ के प्रपंचो से बचना आवश्यक है अन्यथा अपमान हो सकता है।

उपाय? सूतक से पहले और ग्रहण के बाद दूध मिश्रित शर्बत अथवा ठंडाई ज्यादा से ज्यादा लोगो को पिलाने से शुभ फल प्राप्त होंगे।

मंत्र जप? ॐ द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नम:।
अथवा गुरु से मिले मंत्र का यथा सामर्थ्य अधिक से अधिक जप।

वृश्चिक? वृश्चिक राशि के जातकों के लोय यह ग्रहण महाकष्टदायक सिद्ध होगा। विशेष कर शरीर मे कोई कष्ट बन सकता है। धन का व्यर्थ व्यय होने के योग भी है।

उपाय? ग्रहण के सूतक से पहले 4 मुट्ठी लाल मसूर की दाल और श्रीफल सर से 11 बार उसार कर बहते जल में प्रवाहित करें। ग्रहण के बाद धर्म क्षेत्र पर गुड़ और गेंहू का यथा सामर्थ्य दान करना शुभ रहेगा। रक्त दान का अवसर मिले तो सूतक से पहले अवश्य करें।

मंत्र जप? ॐ क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाय नम:। अथवा गुरु से मिले मंत्र का यथा सामर्थ्य अधिक से अधिक जप।

धनु?? धनु राशि के जातकों के लिये यह ग्रहण दाम्पत्य जीवन को लेकर अशुभ फल देगा। स्त्री अथवा पति को किसी न किसी रूप में कष्ट होने की संभावना है। जिम्मेदारिया बढ़ने के बाद भी अपमानजनक स्थिति का सामना करना पड़ सकता है।

उपाय? गुरु अथवा गुरु तुल्य व्यक्ति को पीले वस्त्रो के साथ यथा सामर्थ्य दक्षिणा दें। कपिला गाय को गुड़ चने खिलाये। माता के मंदिर में सूतक से पहले रात्रि में 11 या 21 दीपक जलाएं।

मंत्र जप? ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नम:।
अथवा गुरु से मिले मंत्र का यथा सामर्थ्य अधिक से अधिक जप।

मकर?? मकर राशि जातको के लिये यह ग्रहण किसी न किसी रूप में सुख की प्राप्ति कराएगा। विशेषकर इस ग्रहण के प्रभाव से घर अथवा बाहर के जो लोग आपसे नाराज चल रहे थे उनसे संबंधों में सुधार आएगा। पुराना धन वापस मिल सकता है।

उपाय? ग्रहण के सूतक से पहले 9 मुट्ठी सबूत उडद की दाल और एक श्रीफल सर से 11 बार उसार के बहते जल में प्रवाहित करें। ग्रहण के बाद स्नान कर लोहे की वस्तु और एक झाड़ू धर्म क्षेत्र पर दान करना शुभ रहेगा।

मंत्र जप? ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनये नम:।
अथवा गुरु से मिले मंत्र का यथा सामर्थ्य अधिक से अधिक जप।

कुंभ?? कुम्भ राशि के जातको के लिये यह ग्रहण विविध चिंताएं बढ़ाएगा। आर्थिक एवं मानसिक रूप से कमजोर कर सकता है। स्वयं के साथ परिजनों के कारण कष्ट होने की सम्भवना है।

उपाय? ग्रहण के सूतक से पहले धर्म क्षेत्र पर 3 झाड़ू का एवं ग्रहण के बाद कम से कम 41 किलो काले तिल या काली दाल का दान करना आवश्यक है।

मंत्र जप? ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनये नम:।
अथवा गुरु से मिले मंत्र का यथा सामर्थ्य अधिक से अधिक जप।

मीन?? मीन राशि के जातको के लिये यह ग्रहण किसी ना किसी रूप में कष्टकारी सिद्धि होगा। साथ ही किसी अनुबंध अथवा आशा के टूटने से मानसिक तनाव हो सकता है।

उपाय? ग्रहण के सूतक से पहले 7 मुट्ठी काले तिल और एक श्रीफल सर से 11 बार उसार कर बहते जल में प्रवाहित करें। ग्रहण के बाद गुरुजनों की इच्छा अनुसार सेवा करने से कष्टो से मुक्ति मिलेगी।

मंत्र जप? ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नम:।
अथवा गुरु से मिले मंत्र का यथा सामर्थ्य अधिक से अधिक जप।

ग्रहणकाल मे करने योग्य पौराणिक विचार
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हमारे ऋषि-मुनियों ने सूर्य ग्रहण लगने के समय भोजन के लिए मना किया है, क्योंकि उनकी मान्यता थी कि ग्रहण के समय में कीटाणु बहुलता से फैल जाते हैं। खाद्य वस्तु, जल आदि में सूक्ष्म जीवाणु एकत्रित होकर उसे दूषित कर देते हैं। इसलिए ऋषियों ने पात्रों के कुश डालने को कहा है, ताकि सब कीटाणु कुश में एकत्रित हो जाएं और उन्हें ग्रहण के बाद फेंका जा सके। पात्रों में अग्नि डालकर उन्हें पवित्र बनाया जाता है ताकि कीटाणु मर जाएं। ग्रहण के बाद स्नान करने का विधान इसलिए बनाया गया ताकि स्नान के दौरान शरीर के अंदर ऊष्मा का प्रवाह बढ़े, भीतर-बाहर के कीटाणु नष्ट हो जाएं और धुल कर बह जाएं।

पुराणों की मान्यता के अनुसार राहु चंद्रमा को तथा केतु सूर्य को ग्रसता है। ये दोनों ही छाया की संतान हैं। चंद्रमा और सूर्य की छाया के साथ-साथ चलते हैं। चंद्र ग्रहण के समय कफ की प्रधानता बढ़ती है और मन की शक्ति क्षीण होती है, जबकि सूर्य ग्रहण के समय जठराग्नि, नेत्र तथा पित्त की शक्ति कमज़ोर पड़ती है। गर्भवती स्त्री को सूर्य-चंद्र ग्रहण नहीं देखने चाहिए, क्योंकि उसके दुष्प्रभाव से शिशु अंगहीन होकर विकलांग बन सकता है, गर्भपात की संभावना बढ़ जाती है। इसके लिए गर्भवती के उदर भाग में गोबर और तुलसी का लेप लगा दिया जाता है, जिससे कि राहु-केतु उसका स्पर्श न करें। ग्रहण के दौरान गर्भवती महिला को कुछ भी कैंची या चाकू से काटने को मना किया जाता है और किसी वस्त्रादि को सिलने से रोका जाता है। क्योंकि ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से शिशु के अंग या तो कट जाते हैं या फिर सिल (जुड़) जाते हैं।

ग्रहण लगने के पूर्व नदी या घर में उपलब्ध जल से स्नान करके भगवान का पूजन, यज्ञ, जप करना चाहिए। भजन-कीर्तन करके ग्रहण के समय का सदुपयोग करें। ग्रहण के दौरान कोई कार्य न करें। ग्रहण के समय में मंत्रों का जाप करने से सिद्धि प्राप्त होती है। ग्रहण की अवधि में तेल लगाना, भोजन करना, जल पीना, मल-मूत्र त्याग करना, केश विन्यास बनाना, रति-क्रीड़ा करना, मंजन करना वर्जित किए गए हैं। कुछ लोग ग्रहण के दौरान भी स्नान करते हैं। ग्रहण समाप्त हो जाने पर स्नान करके ब्राह्‌मण को दान देने का विधान कहीं-कहीं वस्त्र, बर्तन धोने का भी नियम है। पुराना पानी, अन्न नष्ट कर नया भोजन पकाया जाता है और ताजा भरकर पिया जाता है। ग्रहण के बाद डोम (शमशान में मृतिक क्रिया करने वाले व्यक्ति) को दान देने का अधिक महात्म्य बताया गया है, क्योंकि डोम को राहु-केतु का स्वरूप माना गया है।

सूर्यग्रहण में ग्रहण से चार प्रहर पूर्व और चंद्र ग्रहण में तीन प्रहर पूर्व भोजन नहीं करना चाहिये। बूढे बालक और रोगी एक प्रहर पूर्व तक खा सकते हैं ग्रहण पूरा होने पर सूर्य या चंद्र, जिसका ग्रहण हो, ग्रहण के दिन पत्ते, तिनके, लकड़ी और फूल नहीं तोडना चाहिए। बाल तथा वस्त्र नहीं निचोड़ने चाहिये व दंत धावन नहीं करना चाहिये ग्रहण के समय ताला खोलना, सोना, मल मूत्र का त्याग करना, मैथुन करना और भोजन करना – ये सब कार्य वर्जित हैं। ग्रहण के समय मन से सत्पात्र को उद्देश्य करके जल में जल डाल देना चाहिए। ऐसा करने से देनेवाले को उसका फल प्राप्त होता है और लेने वाले को उसका दोष भी नहीं लगता। ग्रहण के समय गायों को घास, पक्षियों को अन्न, जरुरतमंदों को वस्त्र दान से अनेक गुना पुण्य प्राप्त होता है। ‘देवी भागवत’ में आता है कि भूकंप एवं ग्रहण के अवसर पृथ्वी को खोदना नहीं चाहिये।

सूर्य ग्रहण की पौराणिक कथा
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सूर्यग्रहण के दौरान घट चुकी है ये घटनाएं

मत्स्य पुराण के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान, निकले अमृत को राहू- केतु ने छीन लिया था, तब से ग्रहण की कथा, इतिहास चला आ रहा है।

द्रौपदी के अपमान का दिन सूर्य ग्रहण का था।

महाभारत का 14वां दिन, सूर्य ग्रहण का था और पूर्ण ग्रहण पर अंधेरा होने पर जयद्रथ का वध किया गया।

जिस दिन श्री कृष्ण की द्वारिका डूबी वह भी सूर्य ग्रहण का दिन था।

सूर्य ग्रहण की पौराणिक कथा
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मत्स्यपुराण की कथानुसार, समुद्र मंथन और सूर्य ग्रहण का पौराणिक संबंध है। शास्त्रों के अनुसार सूर्य ग्रहण के पीछे राहु-केतु जिम्मेदार होते हैं। इन दो ग्रहों की सूर्य और चंद्र से दुश्मनी बताई जाती है। यही वजह है कि ग्रहण काल में कोई भी कार्य करने की सलाह नहीं दी जाती है। इस दौरान राहु-केतु का प्रभाव बहुत ज्यादा होता है। इन दो ग्रहों के बुरे प्रकोप से बचने के लिए ही सूतक लगते हैं। ग्रहण के दौरान मंदिरों तक में प्रवेश निषेध होता है। मान्यता है कि ग्रहण में इन ग्रहों की छाया मनुष्य के बनते कार्य बिगाड़ देती है। शास्त्रों में ग्रहण काल में कोई शुभ कार्य तो दूर सामान्य क्रिया के लिए भी मनाही है। इस ग्रहण के लगने के पीछे एक पौराणिक कथा है।

जब दैत्यों ने तीनों लोक पर अपना अधिकार जमा लिया था तब देवताओं ने भगवान विष्णु से मदद मांगी थी। तीनों लोक को असुरों से बचाने के लिए भगवान विष्णु का आह्वान किया गया था। तब भगवान विष्णु ने देवताओं को क्षीर सागर का मंथन करने के लिए कहा और इस मंथन से निकले अमृत का पान करने के लिए कहा। भगवान विष्णु ने देवताओं को चेताया था कि ध्यान रहे अमृत असुर न पीने पाएं क्योंकि तब इन्हें युद्ध में कभी हराया नहीं जा सकेगा।

भगवान के कहे अनुसार देवताओं ने क्षीर सागर में समुद्र मंथन किया। समुद्र मंथन से निकले अमृत को लेकर देवता और असुरों में लड़ाई हुई। तब भगवान विष्णु ने मोहनी रूप धारण कर एक तरफ देवता और एक तरफ असुरों को बिठा दिया और कहा कि बारी-बारी सबको अमृत मिलेगा। यह सुनकर एक असुर देवताओं के बीच वेश बदल कर बैठ गया, लेकिन चंद्र और सूर्य उसे पहचान गए और भगवान विष्णु को इसकी जानकारी दी, लेकिन तब तक भगवान उसे अमृत दे चुके थे। अमृत गले तक पहुंचा था कि भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से असुर के धड़ को सिर से अलग कर दिया, लेकिन तब तक उसने अमृतपान कर लिया था। हालांकि, अमृत गले से नीच नहीं उतरा था, लेकिन उसका सिर अमर हो गया। सिर राहु बना और धड़ केतु के रूप में अमर हो गया। भेद खोलने के कारण ही राहु और केतु की चंद्र और सूर्य से दुश्मनी हो गई। कालांतर में राहु और केतु को चन्द्रमा और पृथ्वी की छाया के नीचे स्थान प्राप्त हुआ है। उस समय से राहु, सूर्य और चंद्र से द्वेष की भावना रखते हैं, जिससे ग्रहण पड़ता है।

ज्योतिर्विद पं०शशिकान्त पाण्डेय
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