लिंग-भेद परिक्षण करने वाले डाक्टर का लायसेंस निरस्त हो

भोपाल : शनिवार, सितम्बर 13

अभिभावक को भी सख्त सजा मिले
महिला-बाल विकास मंत्री श्रीमती माया सिंह का “कन्या भ्रूण हत्या एक अभिशाप” परिचर्चा में सुझाव

महिला-बाल विकास मंत्री श्रीमती माया सिंह ने कहा है कि लिंग भेद परीक्षण करने वाले डॉक्टर का लायसेंस निरस्त करने और अभिभावकों के खिलाफ सख्त कार्यवाही करने का सुझाव दिया है। श्रीमती सिंह आज मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग के 21 वें स्थापना दिवस पर ‘कन्या भ्रूण हत्या एक अभिशाप” विषय पर परिचर्चा में बोल रही थीं।

श्रीमती सिंह ने कहा कि कन्या भ्रूण हत्या जैसे सामाजिक अपराध पर गंभीरता से मंथन करने की जरूरत है। चिंताजनक यह है कि इस अपराध में समाज का शिक्षित वर्ग जुड़ा है। उन्होंने कहा कि बच्चियों को जन्म लेने का हक है। उनके इस मानव अधिकार को छीना नहीं जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि आज जिस युग में हम है उसमें लिंग भेद मानसिकता का कोई स्थान नहीं है। इस सोच में बदलाव लाने के लिए समाज को आगे आना चाहिये। श्रीमती सिंह ने मुख्य सचिव श्री अंटोनी डिसा से कहा कि वे प्रदेश के सभी जिले में पी.सी.सी. एंड डी.टी. एक्ट का सख्ती से पालन करवाएँ और दर्ज प्रकरण पर कार्यवाही हो ताकि वह मिसाल बने।

श्रीमती सिंह ने कहा कि लिंग भेद की मानसिकता को जड़ से समाप्त करने का संकल्प मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने लिया है। उन्होंने इस सोच पर सबसे बड़ा आघात लाड़ली लक्ष्मी योजना बनाकर किया। बेटी बचाओ अभियान और स्वागतम लक्ष्मी योजनाएँ इसी की अगली कड़ी है। बच्चियों की जन्म से लेकर वृद्धावस्था तक परवरिश करने की सरकार की पहल से समाज को भी जोड़ा गया है। जाहिर है इसके परिणाम बेहतर आएँगे। आज प्रदेश में शिशु-मातृ मृत्यु दर के साथ ही, सेक्स रेश्यो में भी उल्लेखनीय कमी आई हैं और यह मात्र कुछ वर्ष के प्रयास से। आने वाले समय में स्थिति बेहतर होगी। उन्होंने कहा कि महिलाओं को सुरक्षा, सम्मान और समर्थ बनाने का जो प्रयास मुख्यमंत्री ने किया है उसके लिए वे बधाई के पात्र हैं।

महिला-बाल विकास मंत्री ने आयोग को धन्यवाद दिया जिसने इस संवेदनशील और ज्वलंत विषय पर परिचर्चा रखी और जिम्मेदार लोगों को भागीदारी के लिए आमंत्रित किया। उन्होंने अपेक्षा की कि इसमें होने वाले विमर्श और इसके निष्कर्ष सरकार और समाज का मार्गदर्शन करेंगे।

आयोग के कार्यवाहक अध्यक्ष डॉ. वीरेन्द्र मोहन कँवर ने कहा कि लिंग प्रतिषेघ अधिनियम की मुख्य धाराओं का प्रदेश में कड़ाई से पालन होना चाहिये। कन्या भ्रूण का पता लगाने के लिये पकड़ी गयी बहुत सारी सोनोग्राफी मशीन सील की जाना चाहिये। प्रकरण में अभियोजन की कार्यवाही को भी तेज करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि यदि हर जिले में कड़ाई से निगरानी रखी जाये तो प्रकरण की संख्या बढ़ेगी। डाक्टर शपथ लेते हैं कि वे गर्भधारण होते ही मानव जीवन का आदर करेंगे। यदि वे इसके अनुरूप आचरण करें तो शिशु मृत्यु दर कम हो सकती है।

मुख्य सचिव श्री अंटोनी डिसा ने कहा कि इस विषय पर लगातार जागरूकता की आवश्यकता है मानव सभ्यता हमें अन्य प्रजातियों से अलग पहचान दिलाती है। कन्या भ्रूण हत्या विषय पर चर्चा करना समय की माँग है। इससे माता की मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। भ्रूण हत्या सबसे निकृष्ट अपराध है। मानव अधिकार आयोग द्वारा की गयी महत्वपूर्ण अनुशंसाओं से शासन को मदद मिली है।

आयोग के सचिव विनोद कुमार ने कहा कि आयोग में पिछले तीन वर्ष में 37 हजार प्रकरण आये जिनमें से 35 हजार का निराकरण किया गया। आयोग अधिकारों की रक्षा के लिये जिलों में जागरूकता कार्यक्रम भी आयोजित करता है। अभी ‘स्कूल का बस्ता आवश्यकता या बोझ”, मानव अधिकार और चुनौतियाँ, बाल अधिकार, बेटियों के अधिकार आदि विषयों पर हर जिले में आयोजन हो चुके हैं।

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष के प्रतिनिधि तेजराम जाट ने स्लाइड के माध्यम से अपनी प्रस्तुति दी। उन्होंने कहा कि कन्या भ्रूण हत्या एक विकृति है। शिशु लिंगानुपात पिछले तीन दशक में सबसे तीव्र गति से गिरा है, सोनोग्राफी मशीनें इसका सबसे बड़ा कारण हैं।

पुलिस महानिदेशक श्री नंदन दुबे ने कहा कि हमें कन्याओं को आगे बढ़ने के पूरे अवसर देना होंगे। कन्या भ्रूण हत्या सोचा-समझा कृत्य है जो हमारी आपराधिक मानसिकता की पहचान है। इसे रोकने में शासन की योजनाओं का असर तो होता है लेकिन इस मानसिकता को जड़ से समाप्त करने के लिये एक सशक्त सामाजिक आंदोलन की जरूरत है। परिचर्चा में इंदौर कलेक्टर श्री आकाश त्रिपाठी ने कन्या भ्रूण हत्या पर नियंत्रण करने पर प्रस्तुतीकरण दिया। आयोग की पुलिस अधीक्षक अनीता मालवीय ने आभार व्यक्त किया। डॉक्टर वीणा सिन्हा ने संचालन किया।