क्या बदलेंगे मुख्यमंत्री? अटकलें तेज

बेंगलुरु। कर्नाटक की राजनीति में एक बार फिर से अफवाहों का बाजार गर्म है। अमित शाह के दौरे को लेकर यह अफवाह है कि राज्य में बीजेपी की तरफ से नेतृत्व परिवर्तन की जा सकती है। बताते चलें कि बसवराज बोम्मई को 9 महीना पहले ही राज्य की कमान दी गयी थी। हालांकि चर्चा इस बात को लेकर भी है कि बोम्मई मंत्रिमंडल का जल्द ही विस्तार हो सकता है।

पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव बीएल संतोष ने इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए कहा था कि दिल्ली और गुजरात की तरह पार्टी नेतृत्व बड़े पैमाने पर परिवर्तन करने की क्षमता रखता है। हालांकि साथ ही उन्होंने कहा था कि मैं यह नहीं कह रहा कि यह हर जगह होगा, लेकिन भाजपा ऐसे निर्णय लेने में सक्षम है जिसकी कल्पना अन्य राजनीतिक दलों द्वारा नहीं की जा सकती है।

उन्होंने कहा था कि पार्टी में विश्वास और इच्छाशक्ति की वजह से ये फैसले संभव हो पाते हैं और गुजरात में जब मुख्यमंत्री बदले तो पूरा मंत्रिमंडल भी बदल गया था. यह ताजगी देने के इरादे से किया गया था, न कि किसी शिकायत के कारण। बीजेपी नेता ने कहा था कि राजनीति में बदलाव संभव है। उन्होंने कहा था कि दूसरी बार सत्ता में आना कोई आसान काम नहीं है। जो यहां मौजूद हैं, वे दूसरी बार चुनाव जीतने की चुनौती को जानते हैं। सत्ता विरोधी लहर बहुत मजबूत हो जाती है।

पार्टी महासचिव के बयान के बाद ऐसी खबरें आई कि बोम्मई द्वारा बीएस येदियुरप्पा की जगह लेने के एक साल से भी कम समय में कर्नाटक में एक और बदलाव की संभावना है। हालांकि पूरे मामले पर बोम्मई की तरफ से कोई बयान सामने नहीं आया है. जानकारी के अनुसार वो अपने मंत्रिमंडल में बदलाव की तैयारी कर रहे हैं।

इधर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री बी एस येदियुरप्पा ने किसी भी तरह के नेतृत्व परिवर्तन से इनकार किया है। राज्य भाजपा के मजबूत नेता बी एस येदियुरप्पा ने सोमवार को इसे खारिज करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई “अच्छा काम” कर रहे हैं। राज्य में नेतृत्व परिवर्तन की अटकलों पर एक सवाल के जवाब में, उन्होंने कहा कि”मौजूदा मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई अच्छा काम कर रहे हैं, इसलिए मेरे हिसाब से नेतृत्व में कोई बदलाव नहीं होगा।”

राजनीतिक विश्लेषक संदीप शास्त्री के अनुसार “गुजरात मॉडल” के सुझावों के बावजूद, पार्टी समझती है कि कर्नाटक गुजरात नहीं है। “यहां पार्टी का ढांचा अलग है। कर्नाटक में भाजपा विधायकों का एक बड़ा हिस्सा जनता दल (सेक्युलर) या कांग्रेस के उम्मीदवारों के रूप में चुनाव जीता था।