कोरिया जैव समृद्धता के लिए काफी अनुकूल : लेकिन संरक्षण की जरुरत

कोरिया (चिरमिरी से रवि कुमार सावरे)

 

पर्यावरण संरक्षण की दरकार
कोरिया के नाम से चर्चित प्राकृतिक सौन्दर्य से आच्छादित जिले का वातावरण जैव समृद्धता के लिए काफी अनुकूल है। यहां के जंगल और भौगोलिक स्थितियां इसे पर्यावरण की अनुकूलता के क्षेत्र में अलग ही पहचान दिलाती हैं। पर्यटन व धार्मिक महत्व के अच्छे स्थल और कला एवं संस्कृति से ओतप्रोत इसकी विरासत है। इन सबके बावजूद पर्यावरण और पर्यटन के क्षेत्र में जिला अब तक उपेक्षित है।

जनप्रतिनिधियों व अधिकारियों की अरूचि इसकी वजह हैं। अनदेखी के चलते वनों की अवैध रूप से बढ़ती कटाई से पर्यावरण पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगा है ऐसे में पर्यावरण का संरक्षण किए जाने की भी महती आवश्यकता है। जिला बनने के बाद एक उम्मीद जगी थी कि कोई इस ओर गौर करेगा, लेकिन जनप्रतिनिधियों व अधिकारियों की इच्छाशक्ति के अभाव के चलते अब तक कुछ मिला नहीं। यहां तक कि कोई ठोस प्रस्ताव तक तैयार नहीं हो पाया।

जबकि इस क्षेत्र पर ध्यान दिया जाए पर्यावरण के संरक्षण के साथ ही ईको टयूरिज्म का प्रचार प्रसार किया जाए तो यह अच्छे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो सकता है। जिससे जिले के विकास में भी मदद के साथ आय के स्त्रोत भी बढेंगे।
बने पर्यटन सर्किट
जिले में गुरु घसीदास अभयारण्य, सोनहत में गंगे रानी का मंदीर साथ ही चिरमिरी स्थित श्री जगनार्थ मंदिर और खड़गावा स्थित शारदा माता मंदिर तथा रामगढ़ की बहुमांलिजा पहाड़ इसके अलावा देवगढ़ कि प्रचानी मंदीर पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान हैं। वहीं अम्बामाता शक्तिपीठ कैतकी झरीया प्रमुख आस्था के केन्द्र हैं। कोरिया रियासत का किला, बाबा महादेव मंदिर, नीलकंठ महादेव मंदिर, सोनहत का शिव मंदिर, जैसे कई ऐतिहासिक, धार्मिक व पुरातन दर्शनीय स्थल हैं। इन्हे मिलाकर पर्यटन सर्किट बन सकता है।

 

चारों ओर भरी पड़ी जैव विविधता गुरु घसीदास अभयारण्य, का वनाच्छादित स्थल यहां की विरासत है। उत्तर प्रदेष,एंव मध्यप्रदेष के पठार के बीच स्थित जंगल में जैव विविधता का संगम होता है। जो इसे अपने आप में अलग ही पहचान दिलाता है। करीब 140 वर्ग किलोमीटर के विशाल जंगल का सबसे अधिक क्षेत्र 70 किलोमीटर 100 जिले में आता है। जबकि मध्यप्रदेष जिले में करीब 40 किलोमीटर व उत्तर प्रदेष जिले में करीब 8 किलोमीटर क्षेत्र ही है। अभयारण्य में करीब 500 सौ प्रकार के पेड़-पौधों पाए जाते हैं। सैकड़ों प्रकार की जड़ी-बूटियां पाई जाती है। जिसमें बहुमूल्य बूटियां भी मौजूद हैं। यहां पर अब तक 2 सौ से अधिक औषधीय पादप की पहचान हो चुकी है। इसके साथ विभिन्न प्रकार के वन्यजीव और पक्षी पाए जाते हैं। इनमें उड़न गिलहरी और चैसिंगा अभयारण्य की शान है। उड़न गिलहरी तो सीतामाता की परी के रूप में जानी जाती है। अभयारण्य में उपयुक्त वातावरण के चलते यह पशु पक्षियों के लिए स्वर्ग माना जाता है।
पेड़-पौधों का हो संरक्षण पेड़-पौधों और वनों से आच्छादित जिले की हरियाली पर पिछले कुछ समय से अवैध कटाई भारी पड़ रही है। अवैध कटाई के चलते जहां शहरों में पेड़-पौधे कम हो रहे हैं वहीं जंगलों भी घट रहे हैं। ऐसे में अवैध कटाई पर रोक लगाकर पेड़-पौधों के संरक्षण की महती आवश्यकता है अन्यथा पर्यावरण पर भी इसका विपरित प्रभाव पड़ेगा।

क्या हो सकता है

जिले के आसपास सोनहत, चिरमिरी, व बैकुन्डपुर में बड़ी संख्या मे पर्यटक आते हैं। यदि ठीक प्रकार से योजना बने तो इन पर्यटकों को कोरिया जिले के पर्यटन स्थलों की ओर आकर्षित किया जा सकता है। इसके लिए जिला मुख्यालय पर पर्यटन सूचना केन्द्र बनाए जाने की जरूरत हैं। वहीं पर्यटकों के आने-जाने के लिए सड़क मार्गों को दुरूस्त करने और की आवश्यकता है।

इको टयूरिज्म जिले में इको ट्युरिज्म सेंटर के प्रति भी लोगों का रूझान भी कम है। इको पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए घनी वादियों, सघन पेड़ों, शहरों से दूर वनों में इको ट्यूरिज्म सेटर बनाए। बावजूद इसके पर्यटकों की आवाजाही काफी कम है। प्रचार-प्रसार के अभाव में लोग यहां नहीं आते हैं। जबकि यहां आकर प्रकृति का आनंद लिया जा सकता है।
एस0प्रकाश, जिला कलेक्टर, कोरिया जिला पर्यावरण की दृष्टि से काफी समद्ध है। सीतामाता जैसा अभयारण्य यहां मौजूद है। पर्यटन की काफी संभावनाएं हैं। इसके लिए पूरे प्रयास किए जाएंगे।