बहरे हो गये पुलिस थानों के कान : साहब क्यों नही सुनतो हो शिकायत

फरियादी थानों से लाचार होकर पंहुच रहे पुलिस अधीक्षक कार्यालय

11 माह में एसपी तक पंहुची 2353 शिकायतें

अम्बिकापुर (दीपक सराठे )

देशभक्ति जनसेवा और अनुशासन का प्रतीक पुलिस थानों के कान बहरे हो चुके हैं ।यहां पर आम आदमी से ज्यादा राजनीतिक रसूखदारों की सुनी जाने लगी है । आकडों  के मुताबिक पिछले 11 महीनों में पुलिस अधीक्षक कार्यालय में 2353 शिकायतों का पहुंचना इस बात का जिंदा सुबूत है कि पुलिस थाने , पुलिस थाने नहीं रहे और आम जनता का पुलिस थानों पर से भरोसाा उठ चुका है । लोग अब सीधे पुलिस कप्तान के पास जाने लगे है। पुलिस की लगातार घटती साख इससे उजागर हो रही है। अकेले पुलिस अधीक्षक कार्यालय में 11 माह की अवधि मंें जनदर्शन में ही 355 से ज्यादा शिकायतें पहुंची है। सीधे एसपी के पास शिकायत करने वालोें का आकड़ा 1582 से अधिक पहंुच चुका है। जनवरी से अब तक आईजी कार्यालय के माध्यम से 416 शिकायतें एसपी कार्यालय तक पहंुची है। इन शिकायतों का निराकरण करने का तरीका भी निराला है। जिस थाने से उपेक्षित होकर पीडि़त यहां आता है बाद में शिकायत उसी थाने के हवाले कर दी जाती है। थाना प्रभारी को सख्त लहजे में चेतावनी दी गई तो ठीक वरना फिर वही ढ़ाक के तीन पात वाली कहावत चरितार्थ होती है। कुल मिलाकर जिले के थानों ने फरियादियों को निराश करके रखा है। कहा जा सकता है कि सभी अपनी रोटी सेंकने में व्यस्त है।

 

नहीं रहा कार्यवाई का भय
पुलिस थानों में देशभक्ति जन सेवा का डंका बजाने वालों पर अब कार्यवाई का भय नही रहा । लिहाजा फरियादी की स्थिति उल्टा चोर कोतवाल को डांटे जैसी हो जाती है। अपराध करने वालों को पूरा संरक्षण प्रदान किया जाता है और पीडि़त पक्ष को समझाईश और कम्प्रोमाईश की सलाह देते हुए कुछ पुलिसकर्मी  की बिचैलियों की भूमिका में सक्रिय हो जाते है । पहले जन उपेक्षा करने वालों पर विभागीय स्तर पर भी सख्त कार्यवाई हो जाती थी जो अब पिछले कई सालों से लगभग बंद हो चुकी है ।

 

बढ़ती जा रही है शिकायत
जिलें के विभिन्न थानों सहित शहरी क्षेत्र के थानों में फरियादियों की नहीं सुनने व अपराध दर्ज नहीं करने सहित अपराध दर्ज करने के बाद भी अपराधियों पर अपनी दयादृष्टि बनाये रखने की शिकायतोें की संख्या का दबाव पुलिस अधीक्षक कार्यालय पर बढ़ता जा रहा है। थाना प्रभारियों की लापरवाह कार्यशैली के कारण बढ़ते ’’वर्कलोड़ ’’ को कम करने के प्रयास भी नहीे किये जा रहे है।ऐसी रोज न्यूनतम 7से 8 शिकायते पुलिस कप्तान कार्यालय में पहुंचती है। मतलब महीने में लगभग ढाई सौ शिकायतें सामने आ रही है। जनदर्शन में भी शिकायतों का आकडा इन 11 महीनों में 355 से पार हो चुका है।

 

झूठा रसूखदार है तो समझो वही सच है
जांच के नाम पर थानों का स्टाॅफ भी अपने अधिकारियों की आंखों में धूल झोंकने से बाज नहीं आता । अधिकारियों के पास निष्पक्ष जांच की मांग के लिए जाने वाले पीडि़तों को अक्सर निराशा ही हाथ लगती है। रसूखदार अगर झूठा है तो भी उसे सच की तरह पेश किया जाता है और पीडि़त अगर सच भी है तो उसकी बात को अनुसना कर दिया जाता है । ऐसे कई मामले लंबित बताये जाते है जिनकी जांच पर सवालिया निशान लगे हुए है।

चलित थाना भी प्रायः बंद
पुलिस मित्र योजना व चलित थाना के माध्यम से लोगो तक पहंुचना और उनकी समस्याओं का मौके पर निपटारा करना एक अच्छी योजना थी । इसका पालन करने सभी पुलिस थानों को निर्देश जारी किये गये थे ।मगर थाना प्रभारियों की दिलचस्पी न होने के कारण यह पहल प्रायः बंद स्थिति में पंहुच चुकी है। अधिकारियों ने भी इस गंभीरता से नहीं लिया , आत्ममुग्ध होकर थाना अन्य स्तर पर चलने वाले इस चलित थाने का हश्र देखते रहे ।