आज अधिक प्रासंगिक हैं स्वामी विवेकानंद …… डाँ. रक्षित

जशपुर से तरुण प्रकाश शर्मा की रिपोर्ट…

 

 

उक्त विचार राष्ट्रीय सेवा योजना के स्वंयसेवकों को संबोधित करते हुये जिला संगठक राष्ट्रीय सेवा योजना के डाँ. विजय रक्षित ने  व्यक्त किये। स्वामी विवेकानन्द जयंती के उपलक्ष्य में शासकीय विजय भूषण सिंहदेव कन्या महाविद्यालय,जशपुर में कार्यक्रम का आयोजन किया गया। सर्वप्रथम डाँ. विजय रक्षित ने स्वामी विवेकानन्द के छाया चित्र पर माल्र्यापण कर दीप प्रज्वलित किया। ज्ञात हो कि राष्ट्रीय सेवा योजना के आदर्श पुरुष स्वामी विवेकानन्द है। स्वामी विवेकानन्द जयंती के अवसर पर कु. हेमन्ती यादव, कु. सरिता कु.गंगोत्री कु. रजनी बेक एंव कु.यशोदा ने स्वामी विवेकानन्द के विभिन्न विचारों को बताया।

 

कार्यक्रम अधिकारी श्रीमती एम. कुजूर ने बताया कि भारत जब गुलाम था उस समय स्वामी विवेकानन्द ने अमेरिका के शिकागों शहर में 1892 आयोजित विश्व घर्म सम्मेलन में भारतीय सभ्यता एंव संस्कृति के बारे में बताकर विश्व के लोगो को भारत के बारे में सोचने को मजबूर कर दिये। उन्होने इस बात पर बल दिया कि भविष्य में आध्यात्मिक रुप से विश्व का नेतृत्व करेगा। कार्यक्रम में जिला संगठक डाँ जिय रक्षित ने बताया कि यह गर्व की बात है कि हम आज स्वामी विवेकानन्द की 150 वी वर्षगाठ मना रहे है। आज के समय में स्वामी जी के विचार और अधिक प्रांसगिक है। यह जयंती मात्र एक औपचारिक आयोजन ही नही वरन आज इस आयोजन का अपना अलग महत्व है। इसका कारण यह है कि स्वामी जी का जीवन और दर्शन उन सभी सवालों पर प्रकाश डालता है, जो आज हमारे सामने मॅुह बाए खडे है। हम उन्हें जितना पढते जाते हैं उतना ही इस बात को समझते जाते है कि वे दिन-ब-दिन कितने प्रासंगिक होते जा रहें है।
यकीन नही होता है कि महज 39 वर्षो का जीवन जिया था। इतनी कम अवधि में ही उन्हांेने भारतीय जीवन से लेकर वैश्विक मनुष्य से संबंधित अनेक आयामों को इतनी गम्भीरतापूर्वक स्पर्श किया था कि उन्हें भारत ही नही बल्कि पूरे विश्व का गुरु कहने का जी चाहता है। सन्यासी होने के नाते हिंदु परम्परा की धार्मिक परम्पराओं में उनकी जडें गहरी थी। जब वे हिंदत्व में निहित वैश्विक और शाश्वत मूल्यों का उल्लेख करते,तो मानो सिंह के समान दहाडतें थे। उन्होने एक ऐसे समय हिन्दू मानस की अस्मिता को पुनः प्रतिष्ठित किया था, जब विदेशी आक्रांताओं और औपनिवेशिक ताकतों के निरंतर हो रहे आक्रमणों के चलते उसे गहरी ठेस पहॅुच चुकी थी। लेकिन स्वामी जी इतनी द्वढता के साथ अपने समाज में व्याप्त बुराईयो को भी उजागर करते थे। चाहे स्त्रियों,शूद्रों और अस्पृश्यों के साथ होने वाले अन्याय हो चाहे वंचितों और शोषितों के प्रति धनाढयों द्वारा किये जाने वाला अन्याय हो,चाहे नैतिक मूल्यों और चरित्र निर्माण की अनिर्वायताओं से वंचित शिक्षा प्रणाली हो,चाहे पश्चिम के सम्मुख भारतीय जनमानस में पैठा कमतरी का बोध हो, स्वामी जी अदम्य क्रांति-द्वष्टि का परिचय देते हुये हिंदू समाज में इन सामाजिक दोषों को मनसा-वाचा-कर्मणा रेखांकित किया। स्वामी जी घर्मो की कमियों, राष्ट्रीयता, हिन्हु मुस्लिम एकता को रेखांकित किया।
महाविद्यालय में कार्यक्रम आयोजित करने के बाद कार्यक्रम अधिकारी एम. कुजूर एंव कु.भूमिका बाधव के मार्गदर्शन में गोद ग्राम बाधरकोना रैली के रुप में पहुचे। मार्ग में स्वंयसेवकों ने सामाजिक बुराईयों एंव स्वामी जी से संबंधित नारे लगा रहें थे। गोद ग्राम में इन्होने ग्राम की साफ सफाई कर पंचायत भवन में संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें छात्राओं के मध्य भाषण प्रतियोगिता का आयोजन किया गया जिसका विषय था स्वामी विवेकानन्द के विचार आज के परिप्रेक्ष्य में । अनेक स्वंयसेवकों ने भाग लिया जिसमें प्रथम स्थान कु. कामाख्या सिंहदेव द्वितीय कु. रोशनी कुजूर  एंव तृतीय स्थान कु. अंशु ने  प्राप्त किया। कार्यक्रम में महारानी लक्ष्मी बाई कन्या उ. मा. विद्यालय की स्वंयसेवक एंव कार्यक्रम अधिकारी कु.भूमिका बाधव उपस्थित थी।