हमारा डिजिटल होने का सपना कही अधूरा ना रह जाए…..विशेष रिपोर्ट

कई सालो स ई-गवर्नेस सेवाएं शुरु करने की तैयारी

कोरिया

चिरमिरी से रवि कुमार सावरे की रिपोर्ट

देश को डिजिटल इंडिया बनाने का रोड़ मैप तैयार हो चुका है। डिजिटल इंडिया यानी दफ्तरों का सारा काम कम्प्यूटराईज्ड। सभी शहर और गांव इंटरनेट पर। कम्प्यूटर पर एक क्लिक से अस्पाताल में आने वाले हरेक मरीज के मेडिकल रिकार्ड का ब्यौरा स्क्रीन पर। सड़क, पानी, बिजली सफाई समस्याओं का समरधान घर बैठे। सरकारी सुविधाएं आॅनलाईन ग्रीनसिटी में डिजिटल इंडिया की तर्ज पर कम्प्यूटराज्ड सुविधाएं देने की तैयारी कई सालो से चल रही है। ई-गवर्नेस के नाम पर ज्यादार सुविधाएं शुरु नहीं हुई। कई सुविधाएं बेहतर तरीके से शुरु हुई। वही अफसरों के दावों के बावजूद कई कम्प्यूटराईज्ड सेवाएं कागजो पर ज्यादा चल रही है।
ऑनलाइन जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र में रोड़ा!
ऑनलाइन जन्म और मृत्यु प्रमाणपत्र जारी करने की प्रक्रिया में सरकारी अस्पताल एवं नर्सिग होम सहयोग नहीं कर रहे हैं। नगर निगम स्वास्थ्य विभाग के अफसरों की मंशा भी इस योजना के प्रति बहुत अच्छी नहीं प्रतीत हो रही है। तीन साल पहले शुरू हुई योजना अब तक अधर में लटकी है।Birth-Banner-01
लोगों की सुविधा के लिए ऑनलाइन जन्म और मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने की योजना वर्ष 2011-12 में शुरू हुई, लेकिन इस सुविधा का लाभ जरूरतमंदों को अभी तक नहीं मिल सका। सूत्र बताते हैं कि प्रथम चरण में सभी सरकारी अस्पतालों और कुछ नर्सिग होमों को एकीकृत सॉफ्टवेयर से जोड़ा जाना है। इसके लिए अस्पतालों और नर्सिग होमों को (ई-नगर सेवा सीजी डॉट जीओवी डॉट इन) एवं फार्मेट भी उपलब्ध करा दिया गया है। आइटी अफसरो द्वारा यूजर नेम और पासवर्ड भी मुहैया कराया जा रहा है। फिर भी अस्पतालों और नर्सिग होमों से सहयोग नहीं मिल रहा है।

कहीं यह वजह तो नहीं
21 दिन के अंदर जन्म और मृत्यु प्रमाण पत्र निशुल्क बनता है। लेकिन इस अवधि के बाद प्रमाण पत्र बनवाने के लिए अमूमन डेढ़ से दो सौ रुपये तक लिए जाते हैं। अगर ऑनलाइन सुविधा लागू हो गई तो लोग अस्पताल अथवा घर से ही प्रमाण पत्र प्राप्त कर सकेंगे। तब उन्हें डेढ़-दो सौ रुपये नहीं देने होंगे।

डेटा फीडिंग, सत्यापन की जिम्मेदारी अस्पतालों की
डेटा फीडिंग के लिए आपरेटर रखने और प्रमाण पत्रों के सत्यापन की जिम्मेदारी अस्पतालों व नर्सिंग होमों की होगी। इसके बाद दस्तखत प्राधिकारी नगर स्वास्थ्य अधिकारी के पास प्रमाण पत्र आएगा। सब कुछ सही होने पर डिजिटली हस्ताक्षर युक्त जन्म और मृत्यु प्रमाण पत्र जारी हो जाएगा।

आरोग्य ऑनलाइन ही बीमार

चिकित्सालय में उपचारित आउटडोर व इनडोर मरीजों सहित सभी योजनाओं में लाभान्वितों की ऑनलाइन जानकारी को लेकर राज्य सरकार ने वर्ष 2012 में यह योजना प्रारम्भ की। इसके तहत अस्पताल में आने वाले सभी मरीजों इनडोर-आउटडोर, मुख्यमंत्री निःरूशुल्क योजना सहित अन्य जानकारी प्रतिदिन ऑनलाइन कर मुख्यालय तक भेजनी थी। यह योजना चल तो रही है, लेकिन लीज लाइन की कमी व कमजोर कनेक्टिविटी के कारण कई बार यह सुविधा ठप हो रही है।

li-telemedicine-620कोमा में टेली-मेडिसिन
चिकित्सालय में उपचार करवाने वाले मरीज की सारी जांचें स्केनर के माध्यम से जोधपुर व जयपुर में बैठे विभाग के विशेषज्ञों को भेजने के बाद उसके ऑनलाइन इलाज को लेकर टेली-मेडिसिन योजना वर्ष 2008 में प्रारम्भ की गई। इसमें ऑनलाइन विशेषज्ञ को मरीज की जानकारी भेजने के बाद उसका उपचार प्रारंभ किया जाना था। इस योजना ने डेढ़ वर्ष में ही दम तोड़ दिया। यहां अस्पताल परिसर में बनाए गए टेली-मेडिसिन सर्वर रूम को भी हटा दिया गया है।
डाक्युमेंट शेयरिंग को लेकर सुस्त विभाग
पेपरलेस वार्किग, पत्राचार को त्वरित और किफायती बनााने के लिए स्वास्थ्य विभाग ई -डाकेट साफ्टटवेयर प्रणाली से कार्य करने की अभी त सिर्फ तैयारी ही हो रही हैं। वही महिला एंव बाल विकास विभाग ने इसे लागू कर एक साल मे लगभग 20 लाख रुपए बचा लिया है। सूचनाओं के आदान प्रदान के लिए डाक्युमेंट शेयरिंग भी सुस्त गति से आगे बढ़ रहा है। डिजिटल हेल्थ डिपाटंमेट का सपना कोसों दुर है

 

वीडियों काॅलिग फाइलों में कैद
टेली आॅप्थैल्मि पद्वति से उपचार में इंटरनेटर के अलावा वैब कैमरे की भी जरुरत है।वैब कैमरे के जारिए मरिजो को डाॅक्टरी परामर्ष दे पाएंगे। बजट के घोषण के बाद भी कंप्यूटर और सेटअप में उपयोग होने वाले समाग्री की खरीदी नहीं की गई है।
कई विभाग को कम्प्यूटर नहीं मिले, स्टाफ नहीं सीख पाया कम्प्यूटर आपरेट करना

राषन दुकानो का डाटा टैब पर
सरकारी राषन दुकानों से सस्ती दर पर अनाज देने की व्यवस्था का पूरा रिकाॅड कम्प्यूटराइज्य करने दुकान संवालको को टैब दिए गए है। कई बार प्रषिक्षण के बावजूद दुकान संचालक टैब नहीं चला पा रहे।टैब चलाने में असमर्थ दुकान संचालको के कारण व्यवस्था कम्प्यूटराइज्य करने में दिक्कतें हो रहीं है।

पटवारियों से बस्ते लिए, कम्प्यूटर गिने चुने को दिए
पटवारियों का कामकाज कम्प्यूटराइज्य करने अक्टूबर 2014 में लैड रिकाॅर्ड का बस्ता वापस ले लिया गया। 10 माह बाद हालत ये है कि ज्यादातर पटवारियों को कम्प्यूटर नही मिला है।कई पटवारीयों को खस्ताहाल कम्प्यूटर दिए गए।चुनाव के समय कई पटवारीयो से कम्प्यूटर वापस लेने के बाद आज तक वापस नहीं लौटाया गया।

निगम की ई-गवर्नेस सेवाओं का हाल बेहाल
नगर निगम चिरमिरी में ई सेवा से ना तो जन्म-मृत्यु प्रमाण प्राप्त होता है और ना ही कर के भुगतान के लिए कोई ऐसी ई सेवा ही नही बनाया गया है। निगम कि कई ई सेवा अभी कौसों दुर है।

ग्राम पंचायतों में कम्प्यूटर कोसो दुर
केंद्र सरकार ने डिजिटल इंडिया के तहत सूचना क्रांति का विस्तार कर सार्वजनिक सेवाओं को ऑनलाइन से जोड़ने की कवायद शुरू कर दी है। इसके विपरीत जिले में अब तक ग्राम पंचायतों के रिकार्ड ऑनलाइन नहीं हो पाए हैं। इसमें से सिर्फ 10 ग्राम पंचायतों में ही कम्प्यूटर की सुविधा है। बाकी ग्राम पंचायतें अब भी कंप्यूटर की पहुंच से दूर है। जिन पंचायतो में कम्प्यूटर है उसमें से कुछ मे ही कम्प्यूटर से ब्रॉडबैंड की सुविधा मिल पा रही है। शेष पंचायतों में कम्प्यूटर टू जी डोंगल से ही काम चल रहा है।

 

यह है ई-पंचायत योजना
ई-पंचायत योजना का उद्देश्य हटकर था। प्लान बनाया गया था कि योजना के अन्तर्गत जिले की समस्त 286 ग्राम पंचायतों को प्रदेश एवं देश के नेटवर्क से सीधा जोड़ा जाएगा। गांव में बैठे ही पंच-सरपंच सहित अन्य लोग देश भर में चल रही भारत सरकार की योजनाओं से परिचित हो सकेंगे। दावा था कि ग्रामीण क्षेत्र के हर व्यक्ति को ग्राम पंचायतों में स्थापित किये जा रहे कम्प्यूटर हार्डवेयर एवं नेटवर्किंग के national-E-governance-award-LMIमाध्यम से प्रत्येक ग्राम पंचायत अपने ग्रामीण जनों के लिए कॉमन सर्विस के रूप में कार्य में सक्षम हो सकेगी। उपरोक्त सामग्री को क्रय करने हेतु आवश्यक राशि जिला पंचायतों को लाखो की राशि उपलब्ध भी कराई गई थी, लेकिन नतीजा शून्य ही रहा है। इसकी जो योजना बनाई गई थी उसके अनुसार सभी ग्राम पंचायत के पदाधिकारी विशेषकर सचिव एवं ग्राम रोजगार सहायक को कार्य हेतु वर्ष 2014 के माह जुलाई एवं अगस्त में मुख्यालय पर प्रशिक्षण दिया जाना था, लेकिन एक भी ब्लाक मुख्यालय पर जनपदों में बैठे मुख्य कार्यपालन अधिकारी ने प्रशिक्षण आयोजित नहीं किया गया है। इस प्रशिक्षण में पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग की सभी योजनाओं की मूलभूत जानकारियों के संकलन प्रेषण में एवं ग्राम पंचायत की स्वयं की वेबसाइट बन जाने के बाद ई-मेल के माध्यम से जनपद, जिला एवं प्रदेश स्तर पर सीधे जानकारियों के आदान- प्रदान की जानकारी दी जानी थी। विभाग ने दावा किया था कि ई-पंचायत नेटवार्किग के माध्यम से ग्राम पंचायतें अपने क्षेत्र के व्यक्तियों को रेलवे के ई-टिकिट एवं ऐसी अन्य सुविधाएं जो कम्प्यूटर एवं नेट सुविधा के माध्यम से सीधे प्राप्त होती हो उसका लाभ स्वयं एवं अपनी जनता को दे सकेगी। केन्द्र शासन का यह महत्वाकांक्षी प्लान कमीशन एवं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया है।

जिले के स्कूल डिजिटल ही नही
देशभर में इन दिनों डिजिटल इंडिया को लेकर सरकारें सतर्क सी हो गई हैं। कम्प्यूटर, इंटरनेट, वाई-फाई आदि के लिए करोडों रुपए की घोषणाएं हो रही हैं। वहीं राज्य स्कूल शिक्षा विभाग स्कूली बच्चों को अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाने और कम्प्यूटर सिखाने में फेल साबित हुआ है।आलम यह है स्कूलों में सूचना प्रौद्योगिकी का ज्ञान फैलाने शुरू की गई तीन साल पहले की कम्प्यूटर शिक्षा योजना दम तोड़ रही है।

 

यह थी कम्प्यूटर पढ़ाने की योजना
सूचना एवं संचार तकनीकी योजना (आईसीटी) के तहत बच्चों को कम्प्यूटर शिक्षा देने के लिए महत्वाकांक्षी योजना अधिकारियों की उदासीनता की भेंट चढ़ गई है। 5 अगस्त, 2013 को प्रदेष के 1900 स्कूलों में कम्प्यूटर शिक्षा देने के लिए 16 करोड़ रुपए दिए गए थे। शिक्षा विभाग ने पहले चरण में 653 स्कूलों में कम्प्यूटर शिक्षा के लिए कम्प्यूटर खरीदारी तो की, लेकिन बाद में यहां शिक्षक नियुक्त तक करना भूल गए। कुछ स्कूलों में आज तक बिजली नहीं पहुंची तो कम्प्यूटर भी कबाड़ हो गए। कम्प्यूटर शिक्षा के नाम पर 5 से 10 करोड़ रुपए भी फूंक दिए गए। ज्यादातर स्कूलों में सप्लाई किए गए कम्प्यूटर सिस्टम धूल खा रहे हैं।

कम्प्यूटर है, शिक्षक नहींdigital koria 2
आईटीसी योजना के तहत वर्ष 1998 में राजकीय उच्च माध्यमिक व माध्यमिक विद्यालयों में लगे कम्प्यूटर अनुदेशकों को वर्ष 2014 में हटा दिया गया। इससे विद्यालयों की कम्प्यूटर लैब शिक्षकविहीन हो गई, जिसका खामियाजा विद्यार्थी भुगत रहे हैं। सरकार के इस निर्णय में डिजिटल इंडिया की दिशा में आगे बढ़ रहे देश के कदमों के विपरीत चाल चल दी, जबकि पंजाब सरकार ने आईटीसी योजना में लगे कम्प्यूटर अनुदेशकों को स्थायी तौर पर कम्प्यूटर शिक्षक का दर्जा दिया है।

20 केन्द्रों पर ही ब्रॉडबैंड
ऑनलाइन सुविधा ई-मित्र के माध्यम से मिलनी थी। जिले में अटल सेवा केन्द्रों के हाल बुरे हैं। 286 ग्रामीण सेवा केन्द्रों में से 50 पर ही ब्रॉडबैंड सुविधा उपलब्ध है।
केन्द्रों को फाइबर केबल बिछाकर इंटरनेट से जोड़ना था, लेकिन यह काम अभी रफ्ता-रफ्ता चल रहा है। अधिकांश केन्द्र डाटा केबल कनेक्शन से चल रहे हैं, जिससे कभी इंटरनेट चलता है तो कभी सर्वर डाउन हो जाता है।