यहां शिक्षा का पाठ नही.. बच्चों को मजदूरी का पाठ पढाया जाता है..

कांकेर..छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य इलाकों मे अक्सर आदिवासी, वर्ग के बच्चो से श्रम कराने का मामला सामने आता रहता है. बाल श्रम कानून के कड़े नियमों के बावजूद इसकी अनदेखी की जाती है.. जिम्मेदार अधिकारी आंख मे पट्टी लगाए कुंभकरणीय नींद मे सोए रहते हैं. तभी तो बाल श्रम का एक नया मामला फिर प्रकाश मे आया है.. जिसमे बच्चों को अच्छी तालीम देने के लिए तैनात एक शिक्षक अपने स्कूल के बच्चो से. अपने निजी खेत मे धान का रोपा लगवा रहा था.

दरअसल पूरा मामला उत्तर बस्तर जिले के दुरकोंदुल ब्लाक का है. जहां के भण्डारडीग्गी में एक छात्रावास अधीक्षक के द्वारा स्कूली बच्चों से खेत मे काम कराए जाने का मामला सामने आया है.. बाल श्रम के इस मामले मे छात्रावास अधीक्षक द्वारा बच्चो से धान की रोपाई कराई जा रही है. लेकिन बाल श्रम के इस बडे मामले मे छात्रावास अधीक्षक की अलग ही दलील है.. उनके मुताबिक उन्हे खेत मे काम कराने के लिए मजदूर नही मिले . लिहाजा उन्होंने स्कूली बच्चों को ही मजदूरी पर रखा है.. और वे उन्हें मेहनताने के तौर पर 150 रुपये प्रति छात्र के हिसाब देंगे.. हालांकि इस मामले में स्कूल शिक्षा विभाग के द्वारा इन पंक्तियों के लिखे जाने तक किसी प्रकार की प्रतिक्रिया नही मिल पाई है..और ना ही छात्रावास अधीक्षक पर कार्यवाही हुई है..

वैसे तो प्रदेश के सरकारी स्कूलों मे शिक्षा व्यवस्था कैसी है. ये किसी से छिपा नहीं है. और अब इन सब के बीच एक नया नमूना सामने आया है..जो बच्चे स्कूल में अपना भविष्य गढ़ने जाते है..उन्हें अब मजदूरी का पाठ पढ़ाया जा रहा है..