सक्रिय मंच को मिली मान्यता.. लिपिकों में हर्ष का माहौल.

रायपुर. छत्तीसगढ़ शासन ने कर्मचारी संघों की मान्यता सूची जारी कर दी है। महानदी भवन से जारी आदेश के अनुसार मात्र आठ कर्मचारी सगंठनों को ही मान्यता मिली है। लिपिक संवर्ग के दो संगठनों में से मात्र एक संघ (दादा चंद्रिका सिंह द्वारा संस्थापित संघ) को मान्यता मिलने पर प्रदेश भर के लिपिकों में हर्ष का माहौल है।

  • IMG 20191030 WA0001 1राज्य शासन ने प्रदेश भर के मात्र आठ कर्मचारी संगठनों को ही मान्यता जारी किया है, जबकि पिछले वर्षो मे मान्यता प्राप्त संगठनों की कुल संख्या 28 थी।
  • इसी क्रम में लिपिक संवर्ग में एकमात्र मान्यता प्राप्त संगठन छत्तीसगढ़ प्रदेश लिपिक वर्गीय शासकीय कर्मचारी संघ के प्रांताध्यक्ष रोहित तिवारी ने राज्य सरकार को धन्यवाद ज्ञापित करते हुये समस्त लिपिक साथियो को बधाई दिया है।

अब और बुलंद होगी लिपिकों की आवाज़- रोहित तिवारी!..

लिपिक संघ के प्रदेशाध्यक्ष रोहित तिवारी ने बताया कि लिपिको के हित मे अब और बुलंदी से आवाज़ उठाया जायेगा। शासन ने संगठन को मान्यता देकर कर्मचारियों के संघर्ष और अधिकार को जायज बताया है। उन्होंने बताया कि किसी भी कर्मचारी संगठन को शासन से मान्यता मिलने का सीधा अर्थ कर्मचारियों के हितों के प्रति संवेदनशीलता को जाहिर करता है। मान्यता प्राप्त संघों का विशेष महत्व होता है। सरकार मान्यता प्राप्त कर्मचारी संघ के पत्रो का उत्तर देने के लिए बाध्य होती है, जबकि गैर मान्यता प्राप्त संघ पत्राचार या किसी प्रकार की कार्रवाई के लिए सरकार को बाध्य नहीं कर सकता है।

लिपिक संवर्ग शासन की रीढ़..हेमन्त बघेल.

प्रदेश महामंत्री हेमन्त बघेल ने बताया कि शासन ने मान्यता प्रदान करते समय लिपिक संवर्ग के महत्व को दृष्टिगत रखते हुये प्रदेश में लिपिकों के सबसे बड़े संगठन को मान्यता दिया है। गौरतलब है कि शासन की हर योजनाओ के क्रियान्वयन एवं मोनिटरिंग में लिपिकों का महत्वपूर्ण योगदान रहता है। किसी कार्य मे लिपिक संवर्ग की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। यही कारण है कि शासन की तरफ से जारी सूची मे लिपिक संवर्ग के एक मात्र संगठन छत्तीसगढ़ प्रदेश लिपिक वर्गीय शासकीय कर्मचारी संघ को मान्यता सूची में शामिल किया है।

निष्क्रिय संघों को मान्यता नहीं, पंजीयन भी हो रद्द – रमेश तिवारी !..

लिपिक नेता रमेश तिवारी ने बताया कि प्रदेश में कर्मचारी संघो की संख्या बहुतायत में है, जिससे समय समय पर मतभेद की स्थिति बनती रहती है। विगत वर्षों में कुल 28 संगठनों को सरकार के द्वारा पत्राचार की मान्यता दी गई थी, परंतु कई संगठन ऐसे हैं जो पूरे प्रदेश में संचालित ही नहीं है, उनकी कार्यकारिणी भी प्रत्येक जिलों में गठित नहीं है। ऐसे संघ मात्र कागजों में ही संचालित होते रहे है, इनके स्वयंभू पदाधिकारी निजी स्वार्थसिद्धि हेतु संघीय पदों का दुरुपयोग भी करते रहते हैं। यही वज़ह हो सकती है, कि कुछ नामचीन संघों को सरकार ने मान्यता से वंचित कर दिया है। जिन संघो का प्रदेश के हर जिलों में कार्यकारिणी गठित नहीं है, एवं विधिवत सदस्यता नही हुई, ऐसे संघों को चिन्हित कर उनका पंजीयन भी निरस्त कर देना चाहिये, ताकि कर्मचारी हितों के साथ कोई खिलवाड़ न हो सके।

लिपिक वर्गीय शासकीय कर्मचारी संघ जो कि मध्यप्रदेश के जमाने से चल रहा है, एवं स्वयं को मूल संघ के रूप में प्रचारित करते रहे हैं, वह वर्तमान में मान्यता से वंचित हो गया है।

इस संबंध में यही क़यास लगाये जा रहे हैं, कि विगत वर्षों मैं इस संघ के द्वारा लिपिक हितों में किसी भी प्रकार का कोई संघर्ष नहीं किया गया। इस कारण उनकी निष्क्रियता से व्यथित होकर प्रदेश के कई जिलों में लिपिकों ने इस संघ का बहिष्कार करते हुये लिपिकों के सक्रिय मंच “छत्तीसगढ़ प्रदेश लिपिक वर्गीय शासकीय कर्मचारी संघ” की सदस्यता ग्रहण कर लिया है। ऐसी स्थिति में मूल संघ के सदस्यों की संख्या में अप्रत्याशित कमी आई है, एवं यह संघ प्रदेश के कुछ जिलों में ही अस्तित्व में रह गया है।

इस संघ के प्रांताध्यक्ष के गृह जिले सरगुजा में भी इस संघ की स्थिति दयनीय हो गयी है, इसी प्रकार की स्थिति प्रदेश के राजधानी में भी है जहाँ इस संघ के कार्यकारी प्रदेशाध्यक्ष के साथ भी सदस्यों की संख्या भी अपेक्षाकृत बहुत कम ही है। इसके विपरीत मान्यता प्राप्त लिपिक संघ प्रदेशाध्यक्ष रोहित तिवारी के नेतृत्व में पूरे प्रदेश में अपने पूरे दमखम से लिपिक हित में संघर्षरत है। बताया जा रहा है कि विगत वर्ष वेतन विसंगति दूर करने की माँग को लेकर प्रदेश भर में 26 दिनों तक लिपिकों की हड़ताल हुई थी, जिसमें भी इस मूल संघ ने किसी भी प्रकार का कोई योगदान नहीं दिया था, जिससे पूरे प्रदेश के लिपिक इस संघ को लिपिक विरोधी मानते हुए इसके अस्तित्व को नकार चुके हैं। इस संघ को मान्यता न मिलने पर कुछ लिपिकों ने इसे आगाह करने वाला संकेत बताते हुये उम्मीद जताया है, कि शायद अब मूल संघ के पदाधिकारियों में लिपिकों की समस्याओं के प्रति चेतना जागेगी।