फर्जी दस्तावेज से IAS अधिकारी ने लिया प्रमोशन, कोर्ट की दखल के बाद गिरफ्त में संतोष वर्मा

मध्यप्रदेश के इंदौर पुलिस ने फर्जी तरीके से पदोन्नति पाने वाले संतोष वर्मा को कोर्ट से 14 जुलाई तक के लिए रिमांड में लिया है। मामले में कोर्ट कर्मचारियों की भूमिका संदिग्ध बताई जा रही है। दरअसल जिस दिन का आदेश जारी किया गया उस दिन जज छुट्‌टी पर थे।

पुलिस अधिकारियों के मुताबिक कुछ कोर्ट कर्मियों के बीच की वाट्सऐप चैटिंग भी सामने आई है। मामले में कोर्ट कर्मचारी कुश हार्डिया, महेश भाटी और नीतू चौहान के बयान भी लिए गए हैं। तीनों से कोई खास जानकारी नहीं मिली है, लेकिन प्रधान लिपिक पुरोहित ने स्पष्ट कर दिया है कि संतोष वर्मा ने ही नकल आवेदन पेश किया था। उसने कंप्यूटर में एंट्री दर्ज की और न्यायाधीश विजेंद्र सिंह रावत की ओर से डायरी प्राप्त कर वर्मा को नकल दी। इसे साफ हो गया है कि फर्जी आदेश बनने में कोर्ट कर्मचारियों की भूमिका हो सकती है।

सूत्रों से मिली जानकारी की माने तो 6 अक्टूबर को जज विजेंद्र सिंह रावत के द्वारा यह जजमेंट दिया जाना बताया गया है, जबकि उस दिन जज अवकाश पर थे। आदेश की सर्टिफिकेट कॉपी 7 अक्टूबर को कोर्ट से निकलना बताया गया है।वहीं संतोष वर्मा ने 8 अक्टूबर को यह कॉपी भोपाल में पेश कर दी थी

दो अलग-अलग मामले में बनाया फर्जी आदेश- लसुडिया थाने में युवती ने शिकायत की थी। शिकायत में उसने कहा था कि उज्जैन के अपर कलेक्टर संतोष वर्मा ने शादी का झांसा देकर उन्हें साथ रखा और ज्यादती की। उसने संतोष के साथ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी की थी। इसी दौरान दोस्ती हुई, जो प्रेम में बदल गई। संतोष वर्मा ने इस मामले में केस खत्म होने का फर्जी आदेश तैयार करवाया था। वहीं हर्षिता अग्रवाल ने एमजी रोड पुलिस और आईजी को भी एक आवेदन दिया है। इसमें आरोप है कि उज्जैन में अपर कलेक्टर रहने के दौरान वर्मा ने एक्सिडेंट करवाकर उसे मारने की कोशिश की थी। शिकायत उज्जैन के एक थाने में दर्ज करवाई थी, लेकिन वहां भी उन्होंने अपने केस में फर्जीवाड़ा कर खुद को निर्दोष बता रखा है। यह शिकायत और थाने की चरित्र सत्यापन की रिपोर्ट भी उन्होंने आईएएस काडर लेने में छिपाई है।

राज्य प्रशासनिक सेवा से भारतीय प्रशासनिक सेवा में प्रमोशन के लिए अधिकारी की जांच की जाती है। मामूली अपराध होने पर आईएएस अवॉर्ड रुक जाता है। ऐसे में वर्मा के खिलाफ दो केस लंबित होने की जानकारी डीपीसी को मिलती तो उन्हें अपने सेवाकाल में कभी आईएएस अवॉर्ड होता ही नहीं। इसलिए उन्होंने फर्जी आदेश बनाकर डीपीसी के समक्ष लगा दिया।