Kill Dil: पढ़ें फिल्म की 5 खूबियां और 5 खामियां

मुंबई
 शाद अली के निर्देशन में बनी यश राज प्रोडक्शन की फिल्म ‘किल दिल’ की कहानी 80 और 90 के दशक में आई ढेर सारी फिल्मों जैसी ही है, जिसमें नायक अपराध की दुनिया छोड़ नायिका का दामन थाम लेता है। फिल्म की शुरुआत नायक के अपराधी बनने के फ्लैशबैक से शुरु होती है, जिसमें दर्शकों को रोमांचित करने के लिए नायक के कम उम्र में ही बड़े-बड़े कारनामे लुभावने इश्तहार जैसे कुछ सुरीली धुनों के साथ आगे बढ़ते हैं।
अपराधी किस्म के नायक का एक हीरो टाइप दोस्त भी  है। दोनों बड़े हो रहे हैं। अब नायक की एंट्री का समय है। फिर एक दम से किसी बड़े कारनामे को अंजाम देने के बाद कंधे पर स्नाइपर रखे हुए हीरोज की एंट्री होती है। धीमे-धीमे अचानक म्यूजिक लाउड हो उठता है और नायक अपनी बाइक दौड़ाते हुए अपने रास्ते पर चल निकलता है। नायक की रफ्तार का पैमाना उसकी जुल्फों का लहराना है, उसका जाम छलकाना है और हर टास्क को चुटकियों में कर दिखाने के अंदाज में उसका हंसना है। फिर फिल्म में एक हीरोइन की एंट्री होती है। नायक हीरोइन पर लट्टू है, लेकिन उसका दोस्त समझदार है और काम के लिए गंभीर भी। यही तो 90 के दशक में आई कई फिल्मों में हम देख चुके हैं, फिर भला ‘किल दिल’ को क्यों देखा जाए।
‘किल दिल’ को महज कहानी के खांचे के हिसाब से ही ना देखें तो फिर फिल्म में गुजांइश ही गुंजाइश है। फिल्म में जिंदगी के उतार-चढ़ाव को खुशनुमा रंग देती गुलजार की शायरी है।रणवीर सिंह और अली जफर का नए सितारों में उम्मीद जगाता अभिनय है। गोविंदा के ‘किल दिल’ टाइप डांसिंग स्टेप्स हैं और इससे भी बढ़कर अविक मुखोपाध्याय की आंखों को सुकुन देने वाली सिनेमेटोग्राफी है। इस रिपोर्ट में हम ‘किल दिल’ को देखने की पांच खूबियां और ना देखने की पांच खामियां भी बता रहे हैं।