दिल्ली. Contract Employees Regularization: संविदा-अनियमित कर्मचारियों का नियमितीकरण अब राजनीतिक दलों के लिए चुनावी मुद्दा बन चुका हैं। जहां भी चुनाव हो राजनीतिक दल की ओर से नियमितीकरण का वादा सामान्य तौर पर रहता ही हैं। लेकिन, अब तक पूरी तरह से संविदा कर्मचारियों के नियमितीकरण को लेकर फैसला नहीं लिया गया हैं। हालांकि, कुछ राज्य ऐसे हैं जिन्होंने अपने अधिनस्त कर्मचारियों के नियमितीकरण की प्रक्रिया शुरू कर दी हैं। अब इस बीच देश की सर्वोच्च कोर्ट ने संविदा और अनियमित कर्मचारियों के नियमितीकरण को लेकर बड़ा फैसला लिया हैं।
दरसअल, संविदा कर्मचारियों की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा हैं कि, बारहमासी/स्थायी प्रकृति के काम करने के लिए नियोजित श्रमिकों को अनुबंध श्रम (विनियमन और उन्मूलन) अधिनियम, 1970 के तहत् उन्हें सिर्फ स्थायी नौकरी के लाभ से वंचित करने के लिए अनुबंध श्रमिक नहीं माना जा सकता हैं।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस नरसिम्हा ने अपने आदेश में हाई कोर्ट और इंडस्ट्रियल ट्रिब्यूनल के उस फैसले को बरकरार रखा हैं। जिसमें रेलवे लाइन के किनारे सफाई करने वाले मजदूरों को संविदा कर्मी से हटाकर स्थायी कर्मी का दर्जा और वेतन-भत्ते का लाभ देने का आदेश दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस तथ्य को रेखांकित किया कि, रेलवे लाइन के किनारे गंदगी हटाने का काम ना सिर्फ नियमित हैं। बल्कि, बारहमासी और स्थायी प्रकृति का हैं। कोर्ट ने कहा कि, इन कारणों से अनुबंध पर बहाल कर्मचारियों को स्थायी किया जाना चाहिए।
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आपको बता दें कि, महानदी कोलफील्ड्स ने इस तरह के 32 कॉन्ट्रक्ट कर्मचारियों में से 19 की नौकरी परमानेंट कर दी थी। जबकि, 13 को अनुबंध कर्मी के रूप में ही छोड़ दिया था। जबकि, सभी कर्मियों की ड्यूटी एक समान और एक ही प्रकृति की थी। इसके खिलाफ यूनियन ने केंद्र सरकार और महानदी कोलफील्ड्स को ज्ञापन सौंपा हैं। लेकिन, जब कार्रवाई नहीं हुई तो इंडस्ट्रियल ट्रबियूनल में मामला पहुंचा। तो ट्रिब्यूनल ने सभी 13 अनुबंध कर्मियों को नियमित करने का आदेश दिया हैं। बाद में उसी फैसले को हाई कोर्ट ने भी बरकरार रखा, जिसके खिलाफ महानदी कोलफील्ड्स ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। लेकिन, वहां से भी उसे निराशा हाथ लगी हैं।
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