Video : दुर्गम पहाड़ी मे बसे 25 ग्राम पंचायत कल तक कलेक्टरों की पहुंच से दूर थे.. अब कुछ ऐसा हुआ कि हर सप्ताह लगती है अधिकारियों की चौपाल!

सूरजपुर. छत्तीसगढ के उत्तरी छोर में स्थित सरगुजा इलाक़े के सूरजपुर जिले की स्थापना जनवरी 2012 मे हुई थी. स्थापना से पहले ही अपने गर्भ मे बेशकीमती खनिज संपदा समेटे इस जिले का विकास सबसे बडीं चुनौती थी. कोयले की खदानों के बलबूते सूरजपुर जिला देश और प्रदेश को राजस्व देने वाला छत्तीसगढ का अग्रणी जिला था. लेकिन उसके बाद भी जिले के सूदूर पहाडी इलाको में बसे गांव और पहुंचविहीन बस्तियां.. विकास के लिए सबसे बडी चुनौती थी. जिसमे सूरजपुर का ओडगी ब्लॉक का चांदनी बिहारपुर इलाका विकास से कोसो दूर था. यही वजह थी कि इस इलाके के लोगो की पहुंचविहीनता के दर्द को समझते हुए. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 15 अगस्त 2021 के दिन चांदनी बिहारपुर को तहसील बनाने की घोषणा कर दी.. और उसके बाद सीएम के निर्देश पर जिले के कलेक्टर ने राहत और विकास का काम करना शुरु किया. जो अब प्रदेश के अन्य जिलो के लिए रोल मॉडल बन रहा है.

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के द्वारा तहसील का घोषणा के अगले दिन 16 अगस्त 2021 से चांदनी बिहारपुर मे तहसील कार्यालय संचालित होने लगा. उसके साथ ही जिले के कलेक्टर डॉ गौरव सिंह ने यहां ओडगी जनपद पंचायत का कैंप कार्यालय खोलकर लोगो की समस्याओ के निराकरण का प्रय़ास शुरु किया. जिसके लिए कभी कालापानी कहे जाने वाले चांदनी बिहारपुर इलाके में कलेक्टर ने मुख्यंमंत्री की मंशा अनुरूप हर गांव की समस्याएं सुनने के लिए जनसंवाद शिविर शुरु किया.. और दो महीने में तहसील मुख्यालय समेत दुर्गम माने जाने वाले इलाक़े के 25 पंचायतो में 39 जनसंवाद कैंप लगाया.. जिसमे आए करीब साढे तीन हजार मामलो में अब तक ढाई हजार मामलो का कैंप में ही निराकरण कर दिया गया है. केवल वे मामले पेडिंग बचे हैं जो किसी कारणवश न्यायालयो में विचाराधीन है.

तहसील और जनपद पंचायत के कैंप कार्यालय के साथ जन संवाद कक्ष बन जाने के साथ जन संवाद शिविर के लगातार संचालन औऱ उन शिविर में खुद कलेक्टर गौरव सिंह, जिला पंचायत सीईओ राहुल देव के साथ तमाम आला अधिकारियो के पहुंचने के कारण चांदनी बिहारपुर इलाक़े के 25 पंचायत के 100 से अधिक बस्तियो के लोगो को अब ना ही पहाडी और खराब रास्तो के बीच से 70 किलोमीटर दूर ब्लाक मुख्यालय ओडगी जाना पडता है.. और ना ही 120 किलोमीटर दूर जिला मुख्यालय सूरजपुर जाना पडता है. नतीजा ये हुआ है कि चांदनी बिहारपुर में संचालित नवीन कार्यालय और जन संवाद कैंप में अब तक आए 882 राजस्व के मामलो में 697 मामलो का मौके पर ही निराकरण कर दिया गया.

जिसमे नामांतरण, सीमांकन, खसरा नक्शा की नकल लेने जैसे मामले शामिल है. इसके अलावा इलाक़े में मनरेगा का पेमेंट, जाति प्रमाण पत्र, पहुंच मार्ग और पुल पुलिया की शिकायत.. अब लोगो की मांग- अब अपेक्षा में बदल चुकी थी.. लिहाजा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की मंशा अनुरुप कलेक्टर गौरव सिंह ने दो ही महीने में 50 से अधिक पण्डो बस्तियो में मिट्टी के पहुंच मार्ग, करीब 22 पुलिया.. कई महीनो से मनरेगा मजदूरो के लंबित भुगतान का कैंप में ही निराकरण कर चंद मिनटो में 110 मजदूरो का मजदूरी भुगतान के साथ 268 वृद्धा औऱ विधवा पेंशन की राशि उनके खातो में ट्रांसफर कर दी गई.. इतना ही नहीं 25 पंचायत वाले इस पहाडी इलाके के 300 छात्र-छात्राओ के जाति प्रमाण भी प्रशासन ने चंद घंटो में बनाकर सौंप दिए. इधर विकास की बाट जोह रहे चांदनी बिहारपुर इलाक़े में लगने वाले जनसंवाद कैंपो में आने वाले लोगो की मांग और जरूरत पर जिला प्रशासन ने 25 पंचायतो के अलग अलग स्थान पर 66 कुएं.. 6 ग्राम पंचायत भवन और गोठानो को आधुनिक बनाने के साथ ही गांव की जरूरत के हिसाब से 20 पशु शेड, 18 मुर्गी सेड, 18 मशरूम सेड की स्वीकृति देकर सभी निर्माण कार्य को मूर्त रूप देना भी शुरु कर दिया है..

विकास और निर्माण का चोली दामन का साथ है.. लेकिन विकास के लिए लाखो करोडो खर्च करके ही निर्माण कराया जाए.. इस अवधारणा को भी इस इलाके में नकार दिया गया.. और खंडहर में तब्दील हो गए.. सरकारी भूत बंगलो को जिला प्रशासन ने रंग रोगन और मरम्मत कर फिर से नया बना दिया.. और खास बात ये है कि तहसील बनने के साथ ही जिर्णोधार कराए गए भवनो में ही अधिकांश कार्यालय और सरकारी संस्थाए संचालित की जा रही है.. ऐसा नहीं कि इन भवनो में केवल शासकीय कार्यालय संचालित है.. बल्कि कुछ ऐसे भवन भी हैं जो अब इलाके के ज्यादातर गांव की महिलाओ की अजीविका का शसक्त माध्यम बन गए है.. इनमे महिलाओ के लिए सिलाई, बुनाई, कढाई प्रशिक्षण के साथ लाख प्रसंस्करण जैसे रोजगार मुहैया कराने वाले प्रशिक्षण भी चल रहे है.. जिसमे प्रशिक्षित होकर अब तक करीब 200 महिलाओ आत्म निर्भर भी बन गई है..

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छत्तीसगढ के सूरजपुर जिले का कभी कालापानी कहे जाने वाले चांदनी बिहारपुर इलाके के 25 गांव के 100 से अधिक बस्ती के लोगो के जीवन में शासन और प्रशासन की इच्छा शक्ति के बलबूते किस तरह का परिवर्तन आया.. किस तरह लोगो की परेशानी अब सहुलियत में बदल गई है.. तो इस प्रशासनिक महक वाली खबर को दिखाने के पीछे हमारा मकसद है कि अगर प्रदेश के मुखिया के साथ जिले का प्रशासनिक मुखिया अगर ठान ले.. तो तस्वीर भी बदल सकती है… और तकदीर भी बदल सकती है…