यह कैसी आराधना, भगवान को नीचे रख सांसद और विधायक खुद बैठे कुर्सी पर

कोरिया  सत्ता का नशा इस कदर सर चढ़ कर नाच रहा है कि विपक्ष का नामोनिशान तक मिट चला है। वहीं सरकार के संवैधानिक पदों पर बैठे लोग भी इतने मदमस्त हो चले हैं कि भगवान तक अब इनसे ओहदे में छोटे जान पड़ते हैं। कम से कम कोरिया जिले के मनेन्द्रगढ़ में तो कुछ ऐसा ही दिखने को मिला। इसे जिसने भी देखा हैरान ही हुवा वहीं चेले चपाटियों को तो कुछ नज़र ही नही आया दरअसल उनके भगवान तो कुर्सी पर विराजे थे, तो भला उन्हें किसी और भगवान की क्या चिंता।
हनुमान चालीसा की जगह किसी व्यक्ति विशेष की चालीसा का पाठ तो पहले ही शुरू हो चुका था अब ऐसे में भगवान की औकात धीरे-धीरे विलुप्तता की ओर अग्रसर हो गई है। किसी ने सही कहा था काल का युग है और इस युग मे रिश्तों की मर्यादायें नही रहेंगी, दैवीय शक्तियों का प्रभाव समाप्त होगा। खैर कही सुनी बातों का क्या है,अब जरा यथार्थ पर उतरते हैं। यथार्थ के पटल पर मनेन्द्रगढ़ की यह तस्वीर यह साफ कर देती है कि संवैधानिक पद भगवान के सर्वोत्कृष्ट स्थान से भी कहीं ऊपर चला गया है। अब पूरे मामले के बारे में भी जान लीजिए दरअसल शनिवार को कोरबा लोकसभा क्षेत्र के सांसद बंसीलाल महतो अपने एक दिवसीय कोरिया जिले के प्रवास पर आए हुवे थे। जहां सांसद महोदय मनेंद्रगढ़ में 18 वीं बटालियन के नव निर्मित भवन का लोकार्पण करने पहुंचे थे। सांसद बंसीलाल के साथ भरतपुर-सोनहत की विधायक एवं संसदीय सचिव श्रीमती चम्पा देवी पावले के साथ मनेन्द्रगढ़ विधायक श्याम बिहारी जायसवाल भी मौजूद थे। तय कार्यक्रम के तहत पूरे विधि विधान के साथ लोकार्पण कार्यक्रम के लिए पूजा पाठ का इंतजाम किया गया था।
लेकिन चौकाने वाली बात यह रही कि जिस भगवान का स्थान सर्वोच्च माना जाता है और नतमस्तक हो कर उसकी आराधना की जाती है उसी भगवान को ज़मीन पर स्थान दिया गया। चलिए पूजा पाठ का मामला था तो कही भी स्थान देकर पूजा की जा सकती है। परंतु हद तो तब हो गई जब भगवान के स्थान के समीप ही चार कुर्सियां लगाई गई जिस पर आज के भगवान सांसद, संसदीय सचिव और विधायक सहित कोरिया कलेक्टर भी गर्व से विराजे इतना ही नही पूजा करने वाला ब्राम्हण का आसन भी ज़मीन पर ही था। बस इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि क्या सही है और क्या गलत। अब यहां यह मान भी लें कि सांसद महोदय को किसी शारीरिक परेशानी की वजह से ज़मीन पर बैठने में दिक्कत होती है लेकिन बाकी के दोनो संवैधानिक पदों के ओहदेदारों को भला किस तरह की दिक्कत या समस्या थी। खैर पूजा भी हो गई भवन का लोकार्पण भी हो गया परंतु इस बात से यह जरूर पता चल गया कि ताकत हो और वो भी असीमित हो तो भले बुरे का ज्ञान ही समाप्त ही जाता है।