यहां तोते की मजार में करते है सजदा…

 

[highlight color=”black”]अम्बिकापुर[/highlight]

[highlight color=”red”]देश दीपक “सचिन”[/highlight]

  • समाजिक भाईचारे की ऐताहासिक पृष्ठभूमि वाला सद्भावना ग्राम है तकिया
  • विश्व की एकलौती तोते की मजार है मुख्य आकर्षण का केन्द्र   

सरगुजा संभाग मुख्यालय अम्बिकापुर के तकिया गांव मे स्थित दरगाह जिले के धार्मिक आस्था के साथ कौमी एकता का सबसे बडा केन्द्र है। इस दरगाह में बनी तीन मजार मे से एक मजार एक तोते की है । माना ये जाता है कि अम्बिकापुर के तकिया की ये मजार विश्व की एकलौती ऐसी दरगाह है जंहा तोते की फातिया की जाती है। इतना ही नही इस मजार के पास एक देवी स्थान होने के कारण तकिया गांव सामाजिक समन्वय का जीवंत उदाहरण है।

आज तक आपने सिर्फ यही देखा या सुना होगा की ईश्वर, अल्लाह या इनके पीर पैगम्बर के सामने लोगो का सर से आस्था झुकता है। जिसमे धर्म गुरुओ के हजारो शिष्य भी अपने गुरु के सामने शीश झुकाते है। लेकिन छतीसगढ़ के सरगुजा में लोग एक तोते की मज़ार के सामने सर झुका कर उसकी फातिया करते है।  सुनने मे अचरज जरुर होगा लेकिन इस दरगाह में मौजूद तोते की मजार में हजारो भक्त श्रद्धा और आस्था से सजदा करते है जब लोगो की मुराद पूरी होती है वह इन मजारो पर फातिया के रूप में प्रसाद चढ़ाता है ।

वही इस दरगाह में इस तोते की मजार के साथ मुस्लिम धर्म के पीर शैयद हजरत मुराद शाह और हजरत मोहब्बत शाह की भी मजारे बनी हुई है और इन तीन मजारो में दूर दूर से प्रतिदिन हजारो लोग यहाँ आते है। मान्यता है कि यहाँ पर मांगी गई हर दुआ जरूर क़ुबूल होती है । यही कारण की यहाँ पर सालना उर्स के साथ ही वर्ष भर लोगो का आना जाना लगा रहता है और वही दूसरी और यह दरगाह अपनी सर्व धर्म सद्भाव के लिए भी प्रसिद्द है । हिन्दुस्तान की गंगा जमुनी तहजीब को संजोय हुए इस दरगाह से हिन्दू मुश्लिम सिख इसाई सभी जाती और धर्म के लोगो की आस्था जुडी है । यह दरगाह जरूर मुस्लिम धर्म का पर्याय है पर यहाँ इन हजरतो के सामने सजदा करने वालो के धर्म भिन्न भिन्न है,, सभी धर्म के लोग बड़ी आस्था से यहाँ आते है सजदा करते है मुरादे मांगते है,, और सभी मुरादे यहाँ पूरी होती है ।

 

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[highlight color=”red”]तोते की मजार का सच[/highlight]

अपनी अलग अलग विशेषताओ के कारण प्रसिद्द तकिया की दरगाह में तोते की मजार मुख्य आकर्षण का केंद्र है । दरसल इतिहास के पन्नो को खोलते हुए इस दरगाह के मौलाना मोइनुद्दीन बताते है की यह तोता हजरत मोहब्बत शाह जी का चहेता था । इस तोते को कुरआँन की कई आयते याद थी जिन्हें वो पढ़ा करता था,  साथ ही जब हजरत मोहब्बत शाह और मुराद शाह जी अलग होते थे तब ये तोता उनके बीच संवाद का सरल साधन होता था। यह तोता,, एक डाकिये के रूप में दोनों के संदेश का आदान प्रदान करता था। इंतकाल से पहले हजरत मोहब्बत शाह जी ने ही अपने शागिर्दों को यह हुक्म दिया था की इंतकाल के बाद उनके तोते की मजार भी उनके बगल में ही बनवाई जाए,, यही कारण है की आज इस दरगाह में इस तोते की मज़ार भी बनी हुई है ।

 

 

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[highlight color=”red”]धार्मिक सद्भाव का जीवंत उदाहरण तकिया[/highlight]

अम्बिकापुर शहर से झारखंड की ओर जाने वाले मुख्य मार्ग से 2 किलोमीटर दूर उत्तर पूर्व  कोने पर तकिया गांव सद्भभावना गांव के रुप मे ख्यातिलब्ध है।  इसी ग्राम में बाबा मुराद शाह, बाबा मुहम्मद शाह और उन्ही के पैर की ओर एक छोटी मजार उनके तोते की है यहां पर सभी धर्म के एवं सम्प्रदाय के लोग एक जुट होते हैं मजार पर चादर चढाते हैं और मन्नते मांगते है बाबा मुरादशाह अपने “मुराद” शाह नाम के अनुसार सबकी मुरादे पूरी करते हैं। इसी मजार के पास ही एक देवी का भी स्थान है इस प्रकार इस स्थान पर हिन्दू देवी देवता और मजार का एक ही स्थान पर होना धार्मिक एवं सामाजिक समन्वय का जीवंत उदाहरण है।

 

[highlight color=”red”]उर्स का होता है आयोजन[/highlight]

रियासत काल मे तकिया दरगाह मे सरगुजा राजपरिवार ने अपने तरीके से उर्स का आयोजन कराना शुरु किया था। जिसमे सरगुजा रियासत के राजा दरगाह मे पूरे शानो शौकत के साथ आते थे और गरीबो को भोजन के साथ उपहार देते थे। उस दौर मे उर्स के आय़ोजन मे राज सूर्योदय से सूर्यास्त तक मजार के पास बैठते थे। लेकिन घनघोर जंगल होने के कारण रात वंहा कोई नही रुकता था , बताया जाता है कि मजार परिसर मे शाम होते ही शेर अपना डेरा डाल देते थे। इधर रियासत काल के बाद धीरे धीरे तकिया मे उर्स का स्वरुप बदलता गया और अब यंहा पर सलाना उर्स का आयोजन तीनो दिनो का होता है। जिसमे देश के नामी गिरामी कव्वाल द्वारा कव्वाली और मुशायरा का आयोजन किया जाता है साथ ही उर्स मे यंहा लगने वाले मेले मे प्रदेश के विभिन्न जिलो के अलावा उत्तप्रदेश , बिहार , झारखंड के श्रर्दालु का तांता लगने लगा है।

 

किसी ने ठीक कहा है, कि जैसी सगंत वैसी रंगत,, और यही वजह है कि महान आलिमो की सगंत में रह कर एक तोता आज मर कर भी लोगो में आस्था का केंद्र बना हुआ है । हजारो लोग आज इस तोते की मजार पर सजदा करते है और दुआएं पूरी भी होती है।