श्रीमद् भागवत गीता पाठ एवं मदन मोहन मालवीय जी के जीवन दर्शन पर व्याख्यान माला

अम्बिकापुर 

महामना मालवीय मिशन सरगुजा के तत्वाधान में विद्यालयों एवं महाविद्यालयों तथा गृह संपर्क के माध्यम से श्रीमद् भागवत गीता पाठ एवं मदन मोहन मालवीय जी के जीवन दर्शन से संबंधित व्याख्यान माला के द्वारा सामाजिक समरसता का संचार किया जा रहा है। दिनांक 24.08.2014 को यह सौभाग्य नगर के प्रतिष्ठित नागरीक देवेन्द्र दुबे (राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत शिक्षक) को प्राप्त हुआ जहां गीता के 9वां अध्याय का पाठ किया गया जिसमें गीता एवं मालवीय जी से संबंधित तथ्यों पर स्त्रोता एवं वक्ताओं द्वारा कई प्रश्न किया गया जिसका संवाद के माध्यम से पं. जयराम मिश्र ने बडे सरल एवं सहज ढंग से गीता के श्लोको के माध्यम से प्रस्तुत किया।

श्री दुर्गा प्रसाद तिवारी ने प्रश्न करते हुए पूछा कि गीता क्या है ? इस पर विद्यवतजनो ने अपना-अपना सैद्धान्ति मत रखा जिस पर श्री मिश्र ने कहा कि जिससे मानव का उद्धार हो, मोक्ष की प्राप्ति हो वहीं गीता है। जैसे-हंस क्षीर ओर नीर को अलग करता है वैसे ही गीता भी मनुष्य के जीवन में वहीं काम करता है। सम्पूर्ण शास्त्रो का सार गीता है जिसमें कर्म योग्य, ज्ञान योग्य एवं भक्ति योग्य का संगम है, जिसका वर्णन भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं श्रीमुख से किया है।
इस अवसर पर केन्द्रीय समिति के सदस्य हरिशंकर त्रिपाठी (अधिवक्ता उच्चतम न्यायालय) ने पंडित मदन मोहन मालवीय के चरित्र का उदाहरण देते हुए समाजिक समरसता की आवश्यकता वर्तमान परिपेक्ष्य के लिये आवश्यक बताया। unnamed (1)
श्री त्रिपाठी ने कहा कि हमारा भारत वर्ष जिस दिशा में अग्रसर हो रहा है वैसे परिस्थितियों के लिये गीता का पाठ युवाओं को राष्ट्र की मुख्य धारा मंे जोड़ने के लिये सहायक सिद्ध होगा। इसी उद्देश्य से मालवीय मिशन द्वारा स्कूल एवं काॅलेजो में भी व्याख्यान माला का आयोजन किया जा रहा है।
रणविजय सिंह तोमर ने कहा कि मनुष्य जो कार्य करे उसमें ईश्वर के प्रति सम्र्पण भाव से करे तो निश्चय ही सफलता मिलेगी। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उपदेश देते हुए कहा है कि संसार का सभी कार्य मेरे द्वारा सम्पादित होता है। ब्रम्हा शंकर सिंह ने कहा कि जो व्यक्ति निश्काम भाव से ईश्वर का आराधना करता है व्यक्ति की फल की इच्छा न रखते हुए ईश्वर का भजन करता है वहीं व्यक्ति सच्चा साधु है।

एच.डी. दुबे ने गीता के उपदेशो को व्यवहारिक जीवन में सामाहित करने पर बल दिया। सुरेन्द्र गुप्ता ने आस्था की पवित्रता को कर्म में परिपालन करने को कहा। हरिवंश दुबे ने जीवन का सच्चा आनंद सत्यता से जोड़ने एवं अनुभूति का अनुसरण करने का बात रखी।
डाॅ. बिनोद दुबे ने कहा कि आत्मा मे परमात्मा का निवास होता है। मनोज सतपथी ने कहा कि परम ब्रम्ह परमेश्वर के प्रति सम्र्पण का भाव ही पूजा है। आर.बी. गोस्वामी ने कहा कि गीता में मनुष्यों का हर प्रश्नो का उत्तर समाहित है। रामलखन सोनी निष्काम भाव एवं साकाम पर अपना मत व्यक्त किया। राजनारायण द्विवेदी ने कहा कि मन में संसय रखकर कोई कार्य न करे जब भी संसय की स्थिति हो तो भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया उपदेश को स्मरण करें इससे मनुष्य का सभी प्रकार का संसय दूर हो जाती है। अभी तक अर्जुन से ज्यादा किसी ने संसय नहीं किया है।
आभार प्रकट करते हुए देवेन्द्र दुबे ने कहा कि मालवीय मिशन के इस पुनीत कार्य के लिये अभारी हूं जो गीता पाठ के लिये मेरा निवास स्थान को सौभाग्य प्रदान किया। ऐसा कहा जाता है कि जहां गीता का पाठ किया जाता है वहां का वातावरण निर्मल, संसय रहित, संस्कार युक्त बन जाता है। कार्यक्रम में आलोक दुबे, अजय सिन्हा, सुदर्शन पाण्डेय, भीम तिवारी, रामपरिखा पाण्डेय, रामजतन सिन्हा, डी.पी. तिवारी. आर,एन. द्विवेेदी आदि ने भाग लिया।