प्रियंका गांधी के सियासी आगाज से कांग्रेस को नफ़ा या नुकसान…?

दिल्ली 

कांग्रेस को पहले भी शिकस्त भी मिली थी, लेकिन उस हार के बाद कांग्रेस और मजबूत होकर उभरी. हार ने पार्टी को सोचने के लिए मजबूर किया और फिर नई रणनीति रंग लाई, जिसके बाद सत्ता में दोगुनी ताकत के साथ वापसी हुई. लेकिन मौजूदा वक्त में कांग्रेस अपने सबस बुरे दौर से गुजर रही है. तमाम राजनीतिक दांव-पेच काम नहीं आ रहे हैं. बड़े-से-बड़े रणनीतिकार के पसीने छूट रहे हैं. केंद्र से सत्ता की डोर छूटने के बाद एक के बाद एक राज्य भी कांग्रेस गंवाती जा रही है. ऐसे में बड़े परिवर्तन की आवाज कांग्रेस के अंदर से ही बुलंद हो रही है. वहीं अगले साल यूपी का विधानसभा चुनाव पार्टी के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है. जमीनी स्तर पर कांग्रेसियों में बैचेनी है. ब्लॉक स्तर से लेकर गांधी परिवार के करीबी यूपी में प्रियंका गांधी को कमान सौंपने की मांग कर रहे हैं. लेकिन पार्टी पशोपेश में है, क्योंकि इसके फायदे के साथ-साथ नुकसान का डर भी कांग्रेस नेतृत्व को सता रहा है.

 

प्रियंका के पार्टी में आने से 3 फायदे

1. यूपी में प्रियंका फैक्टर सफल होने की संभावना
पिछले विधानसभा चुनाव और 2014 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी फ्रंट पर थे, चुनाव में करारी शिकस्त हुई, लोकसभा चुनाव में तो पार्टी अमेठी-रायबरेली तक सीमित होकर रह गई. ऐसे में पार्टी अगर इस बार यूपी में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाती है तो फिर इसका सीधा असर 2019 के लोकसभा चुनाव में पड़ेगा. और यही वजह है कि कांग्रेस के रणनीतिकार प्रशांत किशोर के साथ-साथ तमाम दिग्गज प्रियंका गांधी को यूपी की कमान सौंपने की मांग एक सुर में कर रहे हैं. दिग्विजय सिंह, कमलनाथ, गुलाम नबी आजाद सरीखे कांग्रेसी नेता अब पार्टी आलाकमान से बड़े फैसले की मांग कर रहे हैं. कांग्रेसियों को प्रियंका के अगुवाई में बदलाव की लहर दिख रही है. वैसे प्रियंका भी अमेठी-रायबरेली की जमीनी हकीकत से पूरी तरह से वाकिफ हैं. सालों से प्रियंका इन दोनों जगहों पर पार्टी के लिए वोट मांगती आई हैं. प्रियंका की मांग यूपी कांग्रेस के नेताओं में ज्यादा हो रही है. क्योंकि मुकाबला कड़ा है और उन्हें विरोधी का पलड़ा भारी लग रहा है. ऐसे में उनकी ये आवाज अंदर की छटपटाहट है, उन्हें लगता है कि प्रियंका गांधी के मैदान में उतरने से मुकाबले में कांग्रेस की जोरदार वापसी होगी.

2. प्रियंका में इंदिरा की छवि देखते हैं कांग्रेसी
प्रियंका गांधी जिस अंदाज में अपनी बातों को रखती हैं उससे जनता उनसे सीधे जुड़ जाती है. साथ ही प्रियंका गांधी में कांग्रेसियों को उनकी दादी इंदिरा गांधी की झलक दिखती है. जनता कांग्रेस से क्या चाहती है ये प्रियंका भी खूब जानती हैं. हंसते-हंसते विरोधियों पर भी प्रियंका का वार करने का अंदाज भी बिल्कुल अलग है. विरोधियों को भी लगता है कि अगर कांग्रेस ने यूपी में प्रियंका को दांव पर लगाया तो फिर मुकाबले में कांग्रेस की जोरदार वापसी हो जाएगी. इसमें दो राय नहीं है कि प्रियंका के आने से कांग्रेस को फायदा होगा. प्रियंका को कमान सौंपने से गांधी परिवार का परंपरागत वोटर्स एक बार फिर कांग्रेस में लौटने के बारे जरूर विचार करेंगे.

3. यूपी की सियासत प्रियंका के लिए माकूल
उत्तर प्रदेश में फिलहाल चार बड़ी पार्टियां चुनावी मैदान में हैं. चुनाव से पूर्व इनमें किसी तरह के तालमेल के कम आसार हैं. ऐसे में मुकाबला कांटे की होगी इसमें कोई दो राय नहीं है. कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती ये है कि वो यूपी में बीजेपी को किसी तरह से रोके. क्योंकि बीजेपी ने अभी से अपनी पूरी ताकत यूपी चुनाव की तैयारियों में झोंक दी है, खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह मोर्चा संभाले हुए हैं. लेकिन अगर कांग्रेस ने प्रियंका को यूपी चुनाव में पेश कर दिया तो बीजेपी अपनी रणनीति में बदलाव के लिए मजबूर हो जाएगी, क्योंकि प्रियंका गांधी की फिलहाल ऐसी छवि है जिसपर विरोधियों को हमले से पहले एक बार जरूर सोचना पड़ेगा. यही नहीं, अगर यूपी में प्रियंका कॉर्ड सफल रहा तो पूरे देश में कांग्रेस के लिए नई राह खुल जाएगी.

प्रियंका के पार्टी में आने से दो नुकसान

1. राहुल के राजनीतिक सफ़र पर सवाल

कांग्रेस में प्रियंका गांधी के मजबूत होने से राहुल गांधी के मिशन को झटका लगेगा. भले ही यूपी की सियासत में प्रियंका की एंट्री होगी लेकिन इसका साइडइफेक्ट पूरे देश में पड़ेगा. यूपी की तरह दूसरे राज्यों में भी प्रियंका की मांग बढ़ेगी. ऐसे में बड़ा सवाल ये होगा कि फिर राहुल गांधी का क्या होगा? पार्टी इस बात से ज्यादा घबराई है कि गांधी परिवार के सियासी वारिस के तौर पर कहीं प्रियंका की पकड़ मजबूत हुई तो इससे राष्ट्रीय राजनीति में राहुल गांधी की पकड़ और ढीली पड़ जाएगी. इसी बात को लेकर कांग्रेस में महामंथन जारी है. हर पहलु पर गौर से विचार किया जा रहा है कि आखिर कैसे बीच का रास्ता निकाला जाए, जिससे पार्टी भी मजबूत हो और देश में गांधी परिवार का एक बार फिर वर्चस्व कायम हो.

2. प्रियंका का सियासी अनुभव
राहुल गांधी पिछले एक दशक से राजनीति में पूरी तरह से सक्रिय हैं, संगठन के कामों को वो अब बारिकी से समझने लगे हैं. साथ ही देश भर के कांग्रेस नेताओं के साथ छात्र संगठनों से भी सीधे संपर्क में हैं. ऐसे में प्रियंका के पूरी तरह से राजनीति में सक्रिय नहीं होने से दांव उलटा पड़ सकता है. इसलिए कुछ लोग चाहते हैं कि प्रियंका कुछ वक्त पार्टी के तौर-तरीकों को जानने में लगाएं. साथ ही विरोधी भी इस फिराक में हैं कि अगर कांग्रेस में राहुल साइडलाइन किए जाते हैं तो उन्हें कांग्रेस पर हमले का मौका मिल जाएगा, वैसे में इस हमले का प्रियंका कैसे जवाब देंगी ये बड़ा सवाल है. फिलहाल सबकुछ गांधी परिवार के फैसलों पर टिका है. साथ ही कई रणनीतिकार इस पर मंथन कर रहे हैं, तमाम नफा-नुकसान के आंकलन के बाद ही कांग्रेस किसी बड़े बदलाव के बारे में विचार करेगी.