शहर के अधिकांष कोचिंग सेन्टरों के पास पंजीयन नहीं

अम्बिकापुर

दिपक सराठे , की रिपोर्ट

बच्चों की कैरियर में पिस रहे अभिभावक
षिक्षा के नाम पर चल रहा सालाना करोड़ों का कारोबार

हर माता पिता के जेहन में यह भर दिया गया है उनका बच्चा अगर कोचिंग नहीं  जायेगा तो अच्छे नम्बरों से पास नहीं होगा। नम्बर अच्छे नही आयेंगे तो डाक्टर, इंजिनियर और वकील कैसे बन पायेगा? सबसे बढि़या षिक्षा देने का दावा ठोकने वाले निजी स्कूलों के क्लास रूम में स्कूल की मैडम से ज्यादा चर्चा कोचिंग के सर की होती है। शहर में सैकड़ों कोचिंग संस्थान है। जिला षिक्षा अधिकारी के अनुसार इन कोचिंग संस्थानों का पंजीयन होना चाहिए परंतु किसी के पास कोई पंजीयन नहीं है। एक अनुमान के मुताबिक शहर के 50 हजार से ज्यादा विद्यार्थी विभिन्न विषयों के लिए कोचिंग संस्थानों की शरण लिये हुये है। स्कूलों और कोचिंग संस्थानों की सांठ-गांठ अभिभावकों पर भारी पड़ रही है। आप को जानकार आष्चर्य होगा कि बच्चों का भविष्य बेहतर बनाने का झांसा देकर मोटी फीस वसूलने वाले स्कूलों के 99 फीसदी छात्र कोचिंग संस्थानों की वैषाखी के सहारे कठिन विषयों की तैयारी करते है। स्कूलों व कोचिंग संस्थानों के बीच बकायदा एक रैकेट काम कर रहा है। जो बच्चो को क्लास रूम से निकालकर कोचिंग क्लासों की सीढि़यां चढ़ने के लिए मजबूर कर देता है। उन्हे तरह-तरह के सपने दिखाये जाते है, कुछ भ्रामक उदाहरण भी दिये जाते है और छात्र उनके झासे में आकर माता पिता पर इतना दबाव डालने लगता है कि वे न चाहते हुये भी बच्चे को कोचिंग के हवाले मजबूर हो जाते है।

गाजर घास की तर्ज पर पनप रही कोचिंग्स
जिले में गाजर घास की तरह गली कुचों में पनप रहे प्रायवेट स्कूल और इन्ही की तर्ज पर संचालित होने वाली कोचिंग संस्थाये सारे नियमों को ताक पर रख चुकी है। हालात यह है कि इनके संचालक न तो कभी स्कूल षिक्षा विभाग के पास अपना पंजीयन कराने आते है और न ही षिक्षा विभाग के अधिकारियों को यह अधिकार है कि वे किसी प्रकार की जांच पड़ताल इन कोचिंग संस्थान की करवा सकें।

चाहे जितना वसूल लो
कोचिंग संस्थानों में मंथली फीस का कोई काम नहीं होता है, रषीद सिर्फ सालाना फीस की ही कटती है, वे भी हजारों में। कुछ कोचिंग वाले तो एक विषय का एक छात्र से स्कूल के फीस का तीन गुना वसूल लेते है। स्कूल वाले साल भर पढ़ाने के बाद अधिकतम 25 हजार वसूलते है। मगर कोचिंग क्लासेस के विद्धान संचालक इतने में सन्तुष्ट नहीं होते। ये चन्द घंटे पढ़ाकर एक विषय का 25 हजार से ज्यादा वसूल कर ही दम लेते है।

झांसा, तुम्हारा बेटा टाॅप करेगा
कोचिंग संस्थानों के संचालक विभिन्न स्कूली व प्रतियोगी परीक्षाओं में टाॅप कराने का दावा करते है। चैराहो पर टाॅप किये विद्यार्थियों के फोटो वाले पोस्टर बेनर लटकाकर पीट थपथपाते है। इसे देेखकर लगता है कि सरकारी षिक्षा नीति इनके आगे कुछ भी नहीं है। अगर ऐसा है तो सरकार को इनकी षिक्षा नीति अपनाना चाहिए जिससे कम से कम गरीब छात्रों का भला हो। या इनकी षिक्षा प्रणाली की जांच हो कि ये कौन से फंड़ा अपनाते है। जिससे उनके संस्थानों में पढ़ने वाले ही विद्यार्थी ही टाॅप करते है।

कितने बच्चे पढ़ते है नहीं मालूम
देषबन्धु ने कोचिंग संचालकों से उनके संस्थान पढ़ने वाले विद्यार्थी संख्या की जानकारी ली तो वे बताने में कतरा रहे थे। उनके कर्मचारी कुछ तो उनके संचालक कुछ और संख्या बता रहे थे। यही हाल छात्रों से वसूली जाने वाली फीस का है। किसी ने भी इसकी सही जानकारी नहीं दी। यही नहीं शहर में संचालित लगभग कोचिंग संस्थानों में पढ़ने आने वाले बच्चों को न तो बैठाने का कोई व्यवस्थित स्थान है और न ही उनकी सुरक्षा का। सड़क पर ही पार्किग की व्यवस्था बनाई गई है।

जांच के नियम नहीं-डीईओ
जिला षिक्षा अधिकारी आरपी आदित्य ने कहा कि शासन द्वारा कोचिंग संस्थान की जांच करने के लिए कोई नियम नहीं बनाया गया है। इसलिए हम इनकी कोई पड़ताल नहीं कर सकते। नियमानुसार इन कोचिंग संस्थाओं का पंजीयन होना चाहिए इसके साथ ही छात्रों को बैठाने के लिए उचित भवन, पार्किग एवं प्रकाष की व्यवस्था है या नहीं इसकी जानकारी नगर निगम को लेनी चाहिए। इसके अलावा यहां पढ़ने वाले विद्यार्थियों को प्रयाप्त सुरक्षा मिल रही है या नहीं इसका पता पुलिस प्रषासन को लगाना चाहिए।