एक महिला का जूनून ऐसा..कि घर को बना दिया वाटिका…!

[highlight color=”green”]अम्बिकापुर [/highlight] [highlight color=”blue”]”दीपक सराठे”[/highlight]

 

[highlight color=”green”]केंद्रीय जेल कल्याण अधिकारी बनी हरियाली के लिये प्रेरणा…[/highlight]

हरियाली बढ़ाने, हरियाली बचाने जैसे नारे तो व्यक्तिगत स्तर से लेकर सरकारी स्तर पर खूब लगाये जाते हैं, परंतु यह सिर्फ नारा बनकर या तो अखबार के पन्नों में कार्यक्रमों की तस्वीरों में। अर्थात धरातल पर इसे उतारने का प्रयास कम ही जगहों पर देखा जाता है। सच बात तो यह है कि हरियाली को तस्वीरो से, किताबो के पन्नो या नारो से निकालने का जजबा कम ही लोगो में होता है। स्थानीय केंद्रीय जेल में कार्यरत महिला कल्याण अधिकारी श्रीमती बानी मुखर्जी ऐसे ही जज्बे एंव जज्बात से परिपूर्ण वह महिला है। जो अपने तमाम सरकारी काम काज की व्यस्तता के बावजूद बचा हुआ एक पल भी व्यर्थ गंवाने की बजाये हरियाली को संजोने में व्यतीत करती है। आज इनका पूरा घर रहवास की जगह फूल  पौधों एवं हरी-भरी पत्तियों से लबरेज एक वाटिका सा नजर आता है। जो अनायास ही आंखो को थाम लेता है। हालत यह है कि घर की खड़ी दीवारे भी लताओं एवं फूलों से ढकी नजर आती है।
श्रीमती मुखर्जी वर्ष 1996 से घर को हरा-भरा करने के काम में लगी है। वर्तमान में उन्होंने अपने मकान को एक उद्यान का रूप दे दिया है। वर्तमान समय में पर्यावरण की रक्षा के लिये अपने आसपास के वातावरण को हरा-भरा रखने की निंतात आवश्यकता है। हालांकि इसके लिये नेताओ, जनप्रतिनिधि, समाज सेवी संस्थाओं व अधिकारियों द्वारा प्रयास तो किये जा रहे हैं, परंतु चाहकर भी अपने उस प्रयास को मूर्तरूप नहीं दे पा रहे हैं। दूसरी तरफ सेंट्रल जेल में कल्याण अधिकारी पद की व्यस्तता के बावजूद श्रीमती मुखर्जी का यह शौक अपने क्षेत्र को हरा-भरा रखने वालों के लिय निश्चित रूप से प्रेरणादायी है।
अपने बच्चो की तरह फूल, पौधों की सेवा करने वाली बानी मुखर्जी ने पहले पहल तो गुलाब की कई किस्म लगाकर इसकी शुरूआत की थी। इसके बाद सैकड़ो गमलो में तरह-तरह के फूल लगाना शुरू किया। वर्तमान में उनके घर की तस्वीर ने एक वाटिका की शक्ल अखितयार कर ली है। घर की सीढियों से लेकर बालकनी पूरी छत कमरे के अंदर व दीवारे भी अनेक प्रकार के पौधो से लबरेज है। गुलाब के साथ, चंपा, सेवंती, रजनीगंधा, गुड़हल की गई प्रजाति, फूलों, नीबू, अमरूद, स्ट्राबेरी, साग-सब्जियों को उगाकर उन्होंने साबित कर दिया कि किसी भी क्षेत्र में मन लगाकर काम किया जाये तो हर किसी के लिये कुछ भी संभव है। श्रीमती मुखर्जी की हरियाली का जूनून यही आकर खत्म नहीं होता, छतो पर स्थान नहीं बचा तो छत की दीवारों में अलग से ईंट जुड़वाकर पत्तागोभी, फूलगोभी, टमाटर, बैगन, करेला, लौकी, भिंडी, बरबट्टी सहित कई प्रकार की सब्जियां भी वे उगा रही है।

[highlight color=”green”]खास मौको पर पौधे गिफ्ट[/highlight]
हरियाली का सपना ही नहीं जूनून साथ में लिये श्रीमती मुखर्जी दूसरो को भी जन्मदिन या अन्य खास अवसरों पर फूल, पौधे ही बतौर उपहार देती है ताकि और लोगों को भी फूल, पौधो से प्यार हो सके। उनका मानना है कि फूल-पौधो की सेवा से आंतरिक खुशी मिलती है। उनकी सेवा से ऐसा महसूस होता है कि वे पौधे उनसे बाते करते हैं।

[highlight color=”green”]सहेज ले अमृत कलश[/highlight]
घटते जल स्तर पर चिंता जताते हुये श्रीमती मुखर्जी का मानना है कि हमें अभी से इसे सहेजने कमर कस लेनी होगी। आसमान से बरसने वाला अमृत कहीं व्यर्थ ही नालो में, नदियों में से होते समुद्र में न चला जाये। कैसे ज्यादा से ज्यादा जल सहेज सके। इसके लिये प्रयास सभी को मिलकर करना होगा।  इसके लिये उन्होंने औरो को पौधारोपण करने की बात कही है, ताकि मानसून आता रहे और पर्यावरण शुद्ध बना रहे।

 

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