संरक्षण के आभाव में दरकती जा रही छठी शताब्दी की विरासत

harchoka mawai nadi

जमीदोज हो रहा जिले का इतिहास

ऐसे ही चलता रहा तो इतिहास में नही मिल पाएगी जगह

mawai nadi ka tatकोरिया (सोनहत से राजन पाण्डेय की रिपोर्ट )
सोनहत । सोनहत भरत पुर विधान सभा अतर्गत कई स्थलों को पर्यटन नक्शे पर वह स्थान नही मिल सका जिसकी जरूरत थी प्राचीन समय से अपने में विभिन्न सांस्कृतिक एतिहासिक पुरातत्व तथा नैसर्गिक सुन्दरता को समेटे हुये इस क्षेत्र की पहचान आज भी प्रदेश के पर्यटन क्षेत्रों में नही हो पाती है इस दिशा में अब तक किये गये राजनैतिक व प्रशासनिक प्रयास नकाफी रहे है। आलम है की संरक्षण के आभाव में क्षेत्र की पुरातात्विक विरसत जमीदोज हो रही है यदि समय रहते इन समस्त स्थलों को संरक्षण प्रदान नही किया गया तो शायद आने वाले समय में इन्हे इतिहास में भी जगह न मिले। आज भी सोनहत भरत पुर विधान सभा अतर्गत  वभिन्न क्षेत्रों में जहाँ नैसर्गिक छटाये बिखरी हुई है वही एतिहासिक व पुरातत्व महत्व के स्थानो से भी यह क्षेत्र  अछुता नही  है इस क्षेत्र में विभिन्न  नदियों का उद्गम स्थान भी है जो जीवन दायनी नदियां है साथ ही सोनहत क्षेत्र में पर्यटन की बेहतर संभावनाएं भी है इसलिए सोनहत भरत पुर विधान सभा क्षेंत्र को पर्यटन की दिशा में प्रदेश स्तर पर पहचान बनाने के लिए सार्थक प्रशासनिक व राजनैतिक पहल की जरूरत है।

उपेक्षित है गंगी रानी मंदिर
विकाशखंड सोनहत मुख्यालय से लगभग 40 किमी दूर रामगढ़ के निकट गांगीरानी एक ऐतिहासिक मंदिर है बताया जाता है कि यह मंदिर 6 वी 7 वी शताब्दी में चट्टानों को काटकर बनाया गया था जिसमें विभिन्न देवी देवताओं की मूर्ति उकेरी गई है मंदिर के बीच आंगन है और दूसरी ओर पत्थर के खंभों से टिकी दालान है मंदिर के उपरी हिस्से में बजरंगबली की प्रतिमा भी है मंदिर से लगा हुआ 10 एकड रेत का मैदान है कहा जाता है कि 6 वी 7 वी शाताब्दी में यहां एक बडा तालाब था कालांतर में पटता चला गया आज भी रामनवमीं में प्रति वर्ष यहाँ तीन दिनों तक मेला लगता है इस मंदिर में कोरिया जिले के ही नही वरन मध्यप्रदेश के सीधी जिले के ग्रामीणों की भी आस्था जुडी  हुई है गुरूघासीदास उद्यान की सीमा में बसे गांगीरानी मंदिर के चारों तरफ का प्राकृतिक दृश्य सहज ही अपनी ओर लोगों को खीच लेता है इस मंदिर में गाँव के बैगा अपनी पारंपरिक रीति रिवाज से देवी देवताओं को प्रसन्न करने का प्रयास करते है गांव के बडे बुजुर्ग बताते है कि गांगीरानी माई की आरती भी श्रद्धालु वनवासी गाते थे जो अब किसी को पता नही हैं।seeta madhi gufa

खत्म हो रहा जोगी मठ का अस्तित्व
जोगी मठ सेानहत जनपद पंचायत अंर्तगत ग्राम कैलासपुर के निकट पत्थर से गना एक विशाल मूर्तिरूप स्थान है यहां बलुआ पत्थर से महावीर स्वामी की एक प्राचीन प्रतिमा बैठी हुई मुद्रा में देखी जा सकती है संभवना बुद्ध की इस प्रतिमा पर किसी समय एक मंदिर रहा होगा आज इस एतिहासिक व प्रचीन स्थल पर जिले के पुरातत्व महत्व की इन मूर्तियों को सहेजने का प्रयास नही किया जा रहा हैं। साथ ही प्रशासन की उदासीनता के कारण अब ये पुरातात्विक स्थल गुमनामी के दौर से गुजर रहे है। इनकी पहचान प्रदेश स्तरीय तो दूर वरन जिला स्तरीय भी नहीं हो पायी है इतिहास कारो की माने तो यह छठवी शाताब्दी  से भी पुराना है आज भी काभी कभार बहुत दूर दराज से इस स्थान में लोग महावीर स्वामी के दर्शन के लिये आते है परन्तु सुविधाओं के अभाव में लोगों को बहुत परेसानीयों का सामना करना पड़ता है। क्योकि जोगी मठ पुरातकत्विक स्थल तक पंहुचने के लिए पंहुच मार्ग नहीं है, जिससे वाहन चालकों के दुर्घटना वाहन चालक का डर बना रहता है।

घाघरा मंदिर ने भी खोइ पहचान
सोनहत भरत पुर विधान सभा अतर्गत मख्यालय जनकपुर से लगभग 20 किमी दूर घाघरा का मंदिर प्राचीन ऐंतीहासिक सांस्कृतिक एवं वास्तुकला की मिशाल है उल्लेखनीय है कि इस मंदिर में कोई मूर्ति नही है लेकिन कहा जाता है कि बौद्ध कालीन इस मंदिर में कोई मूर्ति प्राचीन समय में हुआ करती थी तराशे गये नक्काशीदार पत्थरों केा जोडने में गारे या अन्य पदार्थ का उपयोग नही हुआ है इस मंदिर के बारे में यह भी एक किवंदती है कि प्राचीन काल में आये भूकंप के कारण इसका कुछ हिस्सा क्षतिग्रस्त हो कर एक ओर झुक गया है यदि इसके आस पास खुदाई की जाए तो प्राचीन काल के कुछ रहस्यों से परदा उठ सकता है

हरचौका मे पडे थे श्री राम के चरण
रामचंद्र जी के वनवास काल का छत्तीसगढ में पहला पडाव भरतपुर के पास सीतामढी हरचैका को कहा जाता है। सीतामढी हरचौका में मवाई नदी के तट पर बनी प्राकृतिक गुफा को काटकर छोटे-छोटे कई कक्ष बनाये गये थें जिसमें द्वादश शिवलिंग अलग-अलग कक्ष में स्थापित हैं। वर्तमान में यह गुफा मंदिर नदी के तट के समतल करीब 20 फीट रेत पट जाने के कारण हो गया है। यहाँ रामचंद्र जी ने वनवास काल में पहुँचकर विश्राम किया। इस स्थान का नाम हरचैका अर्थात् हरि का चैका अर्थात् रसोई के नाम से प्रसिद्ध है। रामचंद्रजी ने यहाँ शिवलिंग की पूजा अर्चना कर कुछ समय व्यतीत किया था लेकिन आज यह स्थान भी अपनी पहचान की मुहताज बनी हुई है ।

गुमनाम हो गया राजाओं का इतिहासghaghra mandir
सोनहत जो कभी चौहान राजाओं की रियासत में फला फूला था, आज उसी सोनहत में उनका नाम गुमनाम हो गया है । इतिहास में नजर डाले तो कोरिया का इतिहास लगभग 1600ई. के आसपास शुरू हुआ जब कोरिया की राजधानी सीधी में थी , आज भी वहां उनके अवशेष देखे जा सकते है , परन्तु 1650 से 1660ई के लगभग में कोरिया के चैहान राजाओं को कोल राजाओं के हाथों पराजय का मूह देखना पडा । परन्तु पुनः 1700 के पहले दशक में चौहान बंधू दलतभान साही और धारामलसाही ने विश्रामपुर के राजा से मंत्री संबंध स्थापित कर विश्रामपुर की रानी से बहन का रिश्ता बनाया तथा झिलमिली क्षेत्र के राजा बालंद राजा को हराकर अपना अधीपत्य जमाया बाद मे भाई बहन के रिस्ते की याद में झिलमिली का नाम भैयाथान रखा गया । कालचंद्र की गति में एक बार फिर धारामल साही ने कोला राजाओं को परास्त कर कोरिया पर अपना कब्जा जमाया । बीतते समय के साथ सत्ता की बागडोर राजा गरीब सिंह के हाथ लगी । उनका क्षेत्र नगर में था , तब 1765 मे मराठा शासकों ने गरीब सिंह पर आक्रमण कर गरीब सिंह को लगान देने पर मजबूर कर दिया परन्तु कुछ समय पश्चात गरीब सिंह ने लगान पटाना बंद कर दिया । जिसके कारण गरीब सिह ने अपनी राजधानी नगर से रजौली और बाद में सोनहत में स्थापित की । बाद में 24 दिसम्बर 1819 को ब्रिटिस ईस्ट इंडिया कंपनी ने सोनहत में कब्जा कर दिया और गरीबों से 400रूपये सालाना कर देने का इकरार नामा बनवाया । राजा गरीब सिंह के बाद , राजा अमोल सिंह का शासन था , पर राजा अमोल सिंह के कमजोर शासक होने के वजह से उनकी पत्नी रानी कदमकुंवर ने शासन किया । राजा अमोल सिंह की मृत्यू पश्चात 1864 में उनके पूत्र राजा प्राणसिंह को सत्ता की बागडोर मिली । राजाप्राण सिंह के कोई संतान नही थी अतः सत्ता बागडोर राजा शिवमंगल सिंह देव को मिली उन्होने अपनी राजधानी 1900 में सोनहत से बैकुण्ठपुर स्थापित की उनकी विरासत दो तोपे आज भी कोरिया के पैलेश के पास भंडार में है । राजा शिवमंगल सिंह देव के पश्चात 1925 में विरासत राजा रामानुजप्रताप सिंह देव के हाथ में आई । उनके शासनकाल में राज्य की आय 2.25 लाख के करीब 44 लाख तक बढी उस दौरान राजकोश में लगभग 1.25 करोड़ का धन था , उसी काल में 1928 में बिजूरी चिरमिरी रेललाईन चिरमिरी कालरी ,खूरसिया कालरी 1929 में झगराखांड कालरी 1930 में मनेन्द्रगढ रेल्वे स्टेशन का शुभारंभ किया । 1935 मे रामानुज हाई स्कूल खोला गया 15 दिसम्बर 1947 को राजारामानुज प्रताप सिंह देव ने भारत सरकार के इच्छानुसार इकरार नामे में हस्ताक्षर कर कोरिया को अखंड भारत का हिस्सा बना दिया ।