इस पहाड पर लक्ष्मण ने सीता माता को पढना लिखना सिखाया था….

[highlight color=”black”]सूरजपुर[/highlight][highlight color=”red”] प्रतापपुर से “राजेश गर्ग”[/highlight]

सूरजपुर जिला मुख्यालय से लगभग 75 कि0मी0 की दूरी पर ओड़गी तहसील मुख्यालय से यह लगभग 32 कि0मी0 की दूरी पर बिहारपुर-चांदनी मार्ग पर जेलहा (भूष्की) पहाड के मध्य ”सीतालेखनी “ पहाड़ है। इस पहाड़ के पत्थर पर कुछ प्राचीन शिलालेख देखने को मिलते है। यह शिला लेख शंख लिपि के लगते है। ग्रामीण लोगों की मान्यता है कि वनवास काल के समय भगवान श्रीराम, सीता एवं लक्ष्मण जी वनदेवी की पूजा करने कुदरगढ़ में पहुॅचे थे ,उसी दौरान लक्ष्मण जी माता सीता को यहीं के पत्थरों में पढना लिखना सिखलाये थे। इसलिए पहाड़ का नाम ”सीतालेखनी “ पहाड़ पड़ा। इस पहाडी के पत्थर पर कुछ गोल- गोल आकृतियां बनी हैं। इसे ग्रामीण लोग ”सीतालेखनी “ के नाम से जानते हैं। ओड़गी विकासखण्ड अंतर्गत बिहारपुर चांदनी मार्ग पर बसे ग्राम जेल्हा (भूषकी) के घने जंगलों के बीच सीतालेखनी पहाड़ है। सीता लेखनी से आधा कि.मी. पहले एक पत्थर में पंजा के निषान आज भी परिलक्षित होते हैं। अंचल वासी इसे लक्ष्मण पंजा कहते है। इन दोनों स्थलों पर रामवन गमन मार्ग शोध दल के द्वारा रामवन गमन मार्ग का नक्षा लगाया गया है। आज भी सुहागिनों के द्वारा यहां के सिन्दुर पत्थरों को घिसकर मांग में लगाकर अपने सुहाग को अमर किया जाता है।

मान्यता चाहे जो भी हो किन्तु यहां के षिलालेख सूरजपुर के इतिहास को मजबूत करते हैं।सूरजपुर वनमण्डल प्राचीन काल से ऋषियों की तपस्थली रही है। जहाॅ आज भी वन खण्डों मे जगह-जगह उनके तपष्चर्या के अवषेष बिखरे पडे़ है। सूरजपुर जिले के पुरातात्विक अवषेष इस बात की साक्षी है कि सूरजपुर का वर्तमान चाहे जैसा भी हो पर इसका अतीत अपनी समृद्धि से परिपूर्ण था। जब हम सूरजपुर के पुरातात्विक परिदृष्यों का अवलोकन करते हैं तो सूरजपुर का भू-भाग अपने असाधारण वैभव का साक्ष्य प्रस्तुत करता है। सूरजपुर जिले में पूर्व तीसरी शताब्दी से लेकर आठवीं नवमी, दषवी और परिवर्तित काल की भी कलाकृतियां किलो का खण्डहर, मूर्तिया और इनके भग्नावषेष देखने को मिलते हंै।इन पहाड़ियों के आस-पास पत्थर से बने ढे़की, मुसल, बहना आज भी यत्र-तत्र बिखरे पडे़ हैं जिनका भी अध्ययन किया जाना नितान्त आवष्यक है।

सीतालेखनी पहाड़ के शोधकर्ता अजय चतुर्वेदी सदस्य जिला पुरातत्व संघ सूरजपुर ने बताया की यहां की बिखरी पुरातात्विक अवषेष अपना ईतिहास स्वमेव बखान करेगे जब इस क्षेत्र में शासन स्तर पर शोध कार्य एवं खुदाइ कराया जाएगा। यहां की एतिहासिकता को भले ही ख्याति नही मिल पायी है किन्तु धर्मिकता छत्तीसगढ़ सहित आस-पास के राज्यों तक फैली हुई है। जब यहां के वास्तविक इतिहास का पर्दा फास होगा तो यह निष्चित है कि भारत के इतिहास में एक स्वर्णिम ऐतिहीसिक अध्याय जोडेगा सुरजपुर जिले का सीतालेखनी