पूरे देश को अपना समझ जिसने सरहद पर लड़ी लड़ाई.. आज उसे ही बता दिया बेगाना..!

राजिम संगम बचाओ अभियान अब एक नई दिशा में जा रहा है.. नदी बचाने का बीड़ा उठाये रिटायर्ड ब्रिगेडियर जो गैर राजनैतिक ढंग से मांग कर रहे थे, और उनकी सोच को अलग अलग क्षेत्र के लोगो का समर्थन भी मिल रहा था लेकिन ब्रिगेडियर के बढ़ते कद से शायद उन लोगो को भविष्य का ख़तरा दिखने लगा जिन्हें अक्सर लोकप्रियता की खातिर आन्दोलन करते देखा जाता है.. क्योकी राजिम में अब एक नया समीकरण बन रहा है.. बा हरी आदमी का सीधे तौर पर तो नहीं लेकिन बाहरी आदमी कही प्रदीप यदु तो नहीं क्योकीं इस काम का बीड़ा वही उठाये हुए है.. अब तक क्षेत्र के जन प्रतिनिधियों को राजिम और संगम की चिंता नहीं थी लेकिन ब्रिगेडियर के आन्दोलन के कारण बढ़ रहे जन समर्थन ने इन लोगो को भी सोचने पर मजबूर कर दिया और अब स्थानीय विधायक भी संगम बचाने कूद पड़े है.. लेकीन इसी बीच अप्रत्यक्ष रूप से ब्रिगेडियर को आन्दोलन से हटाने का सिगूफा भी छोड़ा जा रहा है.. कुछ लोग कह रहे है की राजिम की बात वो आपस में बैठकर कर लेंगे किसी बाहर के व्यक्ति की जरूरत नही है..

लेकिन समझ से परे तो यह है की एक देश एक प्रदेश में रहने वाले लोग भला अलग अलग कैसे हो गए क्या प्रदेश के दुसरे जिले में रहने वाला इंसान बाहरी आदमी होता है.. लिहाजा यह एक राजनैतिक स्टंट के सिवा और कुछ नहीं है..

बड़ी बात तो यह है की बाहरी की संज्ञा उस व्यक्ति को दी गई है जो कभी देश के करोडो लोगो की रक्षा के लिए बाहरी देश के दुश्मनों से लड़ाई लड़ता था उसने पूरे देश को अपना समझा लेकिन आज एक ही प्रदेश में उसे सौतेला बताने का प्रयास किया जा रहा है..

वही फैलाए जा रहे इस भ्रम के लिए ब्रिगेडियर प्रदीप यदु सोशल साइट्स के जरिये लोगो तक अपनी बात पहुंचा रहे है.. और यह बताने का प्रयास कर रहे है की उनका मकसद सिर्फ संगम को बचाना है और कुछ नहीं.

पढ़िए ब्रिगेडियर का दर्द क्या कहना चाह रहे है वो राजिम के लोगो से 

“त्रिवेणी संगम बचाओ अभियान में बाहरी व्यक्ति का हस्तक्षेप बर्दाश्त नही ” यह बाहरी व्यक्ति कौन है ? अगर इशारा मेरी ओर है तो बिना किसी पूर्वाग्रह के आप सबको चन्द एक बातें बताना चाहूंगा।।
1.  आज से पचपन वर्ष पहले सन 1963 में मैंने अपने स्वर्गीय पिताजी के साथ अपने दादा जी की अस्थियां राजिम संगम में विसर्जित की थीं।दादा जी का देहांत भोपाल में हुआ था पर उनकी अंतिम इक्षानुसार हमने उनकी अस्थियां राजिम संगम में विसर्जित कीं। आज अगर उस पवित्र स्थान का दमन किया जा रहा है तो क्या इसके विरुद्ध आवाज उठाना मेरा कर्तव्य नही है ?
2.  मुझे सेना में 5 लड़ाइयों में हिस्सा लेने का गौरव है, अपने शहीद सैनिकों के पार्थिव शरीर को अपने कंधों में उठाया है, वो लड़ाइयां मैंने अपने परिवार या रायपुर या राजिम या नवापारा या छत्तीसगढ़ के लिये नही लड़ी थी – लड़ी थी देश और 130 करोड़ देशवासियों के लिये ताकि उनके अमन चैन में कोई बाधा ना आये । इस देश के,इस प्रदेश के हर उस स्थान पर मुझे जाने का पूर्ण अधिकार है जहाँ कुछ गलत काम हो रहा है।संगम बचाओ अभियान के पहले कितने प्रदेश वासियों को ये पता था कि उनके बीच एक ऐसा व्यक्ति भी है जो सैनिक है और इसी प्रदेश का है और उसने सेना में क्या किया है- इसकी कोई जरूरत भी नही थी कि अपनी उपलब्धियों को सबको बताया जाय क्योंकि हमने सिर्फ अपना कर्म किया था और ना कि श्रेय की चाहत की थी।एक सैनिक को उद्देश्य की सफलता की चाहत होती है ना कि श्रेय की लालसा ।
3.  जो भाई बहन राजिम वाचनालय तथा नेहरु उद्यान नवापारा की मीटिंग में उपस्थित थे उनके सामने इस अभियान की रूप रेखा पर सबने मिलकर विचार विमर्श किया था और सबने सहयोग व सहमति दी थी,10 जनवरी को भी आप सबने मुझे नेतृत्व दिया था – क्या यह सच नही है ? उस समय ” बाहरी व्यक्ति” का जुमला तो नही आया था पर 10 जनवरी के बाद दी गई  इस “बाहरी वयक्ति” की उपाधि आश्चर्यजनक व हास्यास्पद  निष्कर्ष ? क्यों और किन कारणों से – ये सोचना अब आपका धर्म और कर्म है।
4.  ये अभियान किसी भी प्रकार का राजनैतिक मुद्दा नही है, ये एक सम्वेदनशील सामाजिक मुद्दा है,लोंगो की आस्था का मुद्दा है,एक धामिर्क स्थल की जर्जरता का मुद्दा है,ये हर आम नागरिक का मुद्दा है।हर नदी पर हर देशवासी का समान अधिकार है। हर प्रदेशवासी के ऊपर महानदी का कर्ज है और हर नागरिक का कर्तव्य है कि इस”कर्ज को अपने फर्ज” से उतारे चाहे वो व्यक्ति “अंदर का हो या बाहर का”।
5.   10 जनवरी से पहले मैंने प्रत्यक्ष रूप से पूरी पारदर्शिता के साथ सभी लोंगों को जोड़ने का प्रयास किया जिसमें सफलता भी मिली पर इससे ज्यादा मुझे अब प्रसन्नता हो रही है कि मेरे प्रयास से 10 जनवरी के बाद राजिम-नवापारा के लोग अपने स्थानीय जन नेता के ऊपर इस अभियान की सफलता हेतु पूरा विश्वास  प्रकट कर रहें हैं – और ऐसा होना भी चाहिए यही सच्चे लोकतंत्र की कार्यप्रणाली भी है – अगर ऐसा पिछले 10 वर्षोँ से होता तो आज किसी भी ” बाहरी वयक्ति ” को संगम बचाओ अभियान को प्रारंभ करने की आवश्यकता ही नही होती।
6.  एक “बाहरी व्यक्ति ” के नाते ही हमारा ये अभियान जारी रहेगा जब तक संगम उस स्थिति में नहीं आ जाता जिस रूप में ये 13 वर्ष पूर्व था ।
7. अंत में आप सबके सहयोग की आशा रखता हूँ ,साथ ही आप सबको मकरसंक्रांति की शुभ कामनाएं देता हूँ। एक चेतावनी या यह कह लें कि एक स्पष्ट आग्रह कि इस अभियान को अगर कोई भी राजनैतिक रंग से रँगना चाहता है तो हम इसे स्वीकार नही कर सकेंगे।मैं हर राजनैतिक पार्टी का, हर पार्टी के नेताओं का, हर संस्था का, हर विचारधारा का तथा हर सोच का समान आदर व सम्मान करता हूँ तथा मुझे राजनीति से कोई सरोकार नही है। सरोकार है तो हर सामाजिक बुराइयों से।