पिंजरे में बैठे रहे.. अदानी के अधिकारी और जनसुनवाई में होता रहा विरोध…

  • धन बल से जनसुनवाई को प्रभावित करने के आरोप
  • पर्यावरण विभाग को दी गई ईआईए रिपोर्ट फर्जी : आलोक 
  • ग्रामीणों को आगाह करने कोरबा से पंहुचा युवक           
  • अंबिकापुर  रविवार की सुबह से देर शाम तक चली राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड की जनसुवाई पिंजरे मे बैठे प्रशासन औऱ कंपनी के कर्मचारियो की उपस्थिति मे संपन्न हो गई.. सुबह 11 बजे से शुरु इस लोकसुनवाई मे समर्थन करने वाले तो एक लाईन मे समर्थन करके चलते बने.. लेकिन जिसने विरोध किया, उनका दर्द ए दास्तान सुनने लायक था.

सरगुजा जिले के उदयपुर ब्लाक मे पिछले 6 वर्षो से राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड कंपनी, अदानी प्रायवेट लिमिटेड की मदद से कोयला का उत्खन्न कर रही है, 6 सालो मे मनमाने तरीके से कोल उत्खन्न करने वाली ये कंपनी अब आस पास के अन्य इलाको को भी अधिग्रहण करने की फिराक मे है, जिसको लेकर हुई लोक सुनावाई मे संबधित क्षेत्र के सैकडो ग्रामीणो ने हिस्सा लिया,, और इस दौरान जिस तरह की बाते सामने आई , उससे कंपनी की कथनी औऱ करनी मे साफ अंतर पता चला.

जानकारी के मुताबिक 2011 मे जब इस कंपनी ने यहां कोयला उत्खनन शुरु किया था, उस वक्त ये इलाका जंगली हाथी , भालू और हिरण प्रजाति के कोटरी जैसे वन्य प्राणी का विचरण क्षेत्र था,, और इलाके के लगभग सभी प्रभावित गांव साल ,सरई औऱ सागौन जैसे बेशकीमती पेडो से अच्छादित था,, लिहाजा इस मसले मे कई कोल ब्लाक और परियोजना की गहरी जानकारी रखने वाले छत्तीसगढ बचाओ मंच के संयोजक ने इस बार भी कुछ तकनीकी बातो को लेकर लोकसुनवाई मे अपनी आपत्ति दर्ज कराई.

छत्तीसगढ बचाओ मंच के संयोजक आलोक शुक्ला ने कहा ईआईए रिपोर्ट फर्जी है तथा परसा ईस्ट एवं केते बासेन और तारा परियोजना के लिए बनाई गयी पुराने ई आई रिपोर्ट में तीन चार लाईन जोड़कर कांपी पेस्ट कर पुरानी प्रोस्पेक्टिव के आधार पर रिपोर्ट तैयार किया गया है जो गलत है। 1250 हे. से भी अधिक क्षेत्र में प्रस्तावित खदान क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले जैव विविधता के बहुत से तथ्यों को इस रिपोर्ट में छुपाया गया है। ईआईए रिपोर्ट में यदि कोई झुठी जानकारी दी जाती है सा तथ्यों को छिपाया जाता है तो कानून के आधार पर परियोजना प्रस्ताव के विरूद्ध एफ आई आर होनी चाहिए तथा पर्यावरणीय स्वीकृति प्रस्ताव को तत्काल निरस्त कर दिया जाना चाहिए। उन्होने तथ्यों के अधार पर बताया इससे पूर्व जब यह खदान छ.ग. पावर जनरेशन कंपनी के पास थी तब तब खनन योग्य कोयले की मात्रा 189 मिलियन टन आंकी गयी थी अब जबकि यह खदान राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड के पास है तक कोल की कुल मात्रा 200 मिलियन टन आंकी गई है जो भ्रम पैदा करता है। खदान में प्रति सप्ताह 185 टन विस्फोटक का उपयोग किया जाना प्रस्तावित है इतनी भारी मात्रा में विस्फोटकों के उपयोग से आसपास के घर ही नही दूर दराज जंगलों में रहने वाले वन्य जीवों के लिए भी घातक साबित होगा क्योंकि विस्फोट के कंपन को काफी दूर से महसूस कर लेते है ऐसी स्थिति में जंगलों से वन्य जीव स्वाभाविक रूप से विलुप्त होते चले जाएंगे। वन्य जीव प्रबंधन के बारे में बताया कि यह क्षेत्र हाथियों एवं भालुओं का विचरण क्षेत्र है। इस खदान के खुलने की अनुमति मिलने से इस क्षेत्र ही नहीं बल्कि पूरे हसदेव अरण्य वन्य क्षेत्र पर गंभीर संकट पैदा हो जाएगा।

जनपद सदस्य बाल साय कोर्राम ने लोक सुनवाई को रद्द करे की मांग करते हुए कहा कि यह क्षेत्र पांचवी अनुसूची क्षेत्र है। इस क्षेत्र में पेसा एक्ट लागू है उसका भी पालन नही किया जा रहा है। कंपनी द्वारा तैयार ईआईए रिपोर्ट इस क्षेत्र में निवासरत अधिकतर लोगों की समझ से बाहर है क्योंकि 70 पेज की जानकारी अंग्रेजी में लिखी हुई। रिपोर्ट में पौराणिक स्थल का जिक्र नही है, क्षेत्र में पाए जाने वाले विभिन्न प्रजाति के पेड़ों सहित लोक संस्कृति करमा जो कि यहां का सबसे प्रमुख त्यौहार में पूजे जाने वाले करमी प्रजाति के पेड़ का भी जिक्र नहीं किया गया है। छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध जिवतिया त्यौहार में पूजे जाने वाले जींवटी मछली का भी जिक्र तक इस रिपोर्ट में नही है। उन्होने यह भी कहा कि राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड का आॅफिस खोलने का वादा किए थे यह आॅफिस कहा है तथा कानून की हत्या करने वाले अधिकारियों के खिलाफ एफ.आई.आर. की मांग की । विकास का ढिंढोरा पीटने वाले लोग आज कईलान मझवार के घर जाकर देखें जो परसा ईस्ट एवं केते बासेन परियोजना का प्रभावित है उसे एक रोड़ बाईस लाख रूपये मुआवजा मिला था आज वह लकड़ी बेचकर जीवन यापन करने को मजबूर है। गिरीश कुमार ने कहा कि पांचवी अनुसूची क्षेत्र में ग्राम सभा सर्वाेपरि है परंतु ग्राम सभा को प्राप्त संवैधानिकों अधिकारों की धज्जियां उडायी जा रही है। शासन और प्रशासन की यह जिम्मेदारी है इसकी रक्षा करें कंपनी के हित में काम न करें। नदियों का उद्गम पहाड़ी क्षेत्रों से ही होता है और नदियों के आसपास ही मानव सभ्यता पनपती आई है। अंसतुलित विकास से आज पूरी मानव सभ्यता संकट में है तथा धान का कटोरा भी संकट में है। अदानी के पेड वर्करों द्वारा समर्थन दिया जा रहा है। पतुरियाडांड के उमेश्वर सिंह आर्माे ने विरोध करते हुए कहा कि यह क्षेत्र नो गो क्षेत्र है और जैव विविधता से परिपूर्ण है। आदिवासी संस्कृति के बिना पर्यावरण अधूरा है प्रकृति और आदिवासी एक दूसरे से जुड़े हुए है। साल वृक्ष के नीचे बड़ादेव की पूजा की जाती हैइन तथ्यों को ईआईए रिपोर्ट में क्यों छुपाया गया है। इस स्थिति में पर्यावरणीय स्वीकृति रद्द करते हुए दोषियों पर कानूनी कार्यवाही की मांग की है। साल्ही की नानकुंवर बोली की जमीन चल जाही तो रूपिया ला का करबो जमीन रही तो कमा के खा लेबो।

इतना ही नहीं जो लोग एक दिन पहले कंपनी का विरोध करने के मूड में थे अचानक रातो रात उनकी भाषा ही बदल गई वो लोग लोकसुनवाई में अदानी की प्रशंसा करते नजर आये.. इस सम्बन्ध में कुछ ग्रामीणों ने बताया की कंपनी के लोगो के द्वारा पैसा बांटा गया है दो-तीन सौ रुपये में लोगो को अपने पक्ष में किया गया है.. इसके अलावा गाँव गाँव से लोगो के आने के लिए वाहन भी कंपनी ने उपलब्ध कराई थी.. लिहाजा ग्रामीणों का आरोप है की धन बल के बूते लोकसुनवाई को प्रभावित किया गया है..
औद्द्योगिक आतंक का मारा कोरबा से आया सरगुजा

इस पूरे मामले में बड़ी बात यह सामने आई जब एक युवक ऐसा मिला जो कोरबा जिले से लोक सुनवाई में आया था.. भला इस लोक सुनवाई में उसका क्या काम. दरअसल वो इंसानियत का फर्ज निभाने आया था वो अपने भोले भाले ग्रामीण भाइयो को यह बताने आया था की ये लोग किसी का भला नहीं करने वाले है सिर्फ कोरा अस्वासन ही देंगे.. युवक ने बताया की ऐसा ही कोरबा जिले में भी उत्खनन कम्पनी के द्वारा ग्रामीणों को छला गया है.. ये बोलते कुछ और है और करते कुछ और है.. युवक ने बताया की खदान की ब्लास्टिंग से निकलने वाला कोयला उसके घर के ऊपर गिरता है लेकिन कोई सुननें वाला नहीं है.. लिहाजा सरगुजा के लोगो को यह युवक प्राइवेट कंपनियों की मनमानी बताने आया था..