पटवारी, ए.ई के यहां करोड़ो की संपत्ति भाजपा के जीरो टाॅलरेंस की कलई खुल गई – कांग्रेस

व्यापारियों को सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ मार्मिक अपील जारी करनी पड़ रही

रायपुर 1 अक्टूबर 2014

पटवारी के घर से 6 करोड़ विद्युत मंडल के सहायक यंत्री के यहां 5 करोड़ से अधिक की संपत्ति का खुलासे से भाजपा सरकार के भ्रष्टाचार पर जीरो टाॅलरेंस के दावों की कलई खोल कर सामने रख दिया है। प्रदेष कांग्रेस प्रवक्ता सुषील आनंद शुक्ला ने कहा कि मुख्यमंत्री रमन सिंह की भ्रष्टाचार पर सख्त रवैय्या अख्तियार करने की बाते सिर्फ कोरी वाहवाही लेने वाली मात्र है, हकीकत में प्रदेष सरकार ने भ्रष्टाचार को हतोत्साहित करने तथा भ्रष्टाचारियों पर कड़ी कार्यवाही करने के लिये कोई कदम नहीं उठाया। उल्टे भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देने वर्षो से बने कानूनों को हटाने विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1947 को निरसित कर दिया गया। यह अधिनियम भ्रष्ट लोकसेवकों के विरुद्ध कार्रवाई करने के लिए लागू था। छत्तीसगढ़ लोकायुक्त अधिनियम,1989 को निरसित करके छत्तीसगढ़ लोक आयोग अधिनियम,2003 लागू किया गया। जिसके कारण लोकायुक्त बिना दांत, नाखून वाला शेर हो गया। छत्तीसगढ़  पुलिस अधिनियम, 2007 तो कागजी तौर पर लागू है किंतु सात साल में इसके नियम नहीं बनाए जा सके हैं जिससे यह निष्प्रभावी ही है। आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो और लोक आयोग में 80 प्रतिषत पद रिक्त ही रहते हैं। म्व्ॅ 13 वर्ष में 13 मामले भी न्यायालय में पेश नहीं कर सका है और एक भी प्रकरण में सजा नहीं हुई है। किसी भी सरकार के लिये इससे ज्यादा शर्म की बात और क्या होगी उसका भ्रष्टाचार सड़कों पर उछल रहा है। परिवहन विभाग के भ्रष्टाचार से परेषान राज्य परिवहन व्यवसायी अखबारों में मार्मिक अपील जारी कर भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष करने की दुहाई दे रहे है। इससे राज्य की हालत को बेहतर तरीके से समझा जा सकता है। भाजपा सरकार ने अपने 11 वर्षो के कार्यकाल में सिर्फ भ्रष्टाचार करना और भ्रष्टाचार को संरक्षण देने के अलावा कुछ किया ही नहीं है, इक्का दुक्का छापेमार कर खानापूर्ति की जाती है। छापे के लिये टार्गेट उन्हीं लोगो को किया जाता है जो अपनी काली कमाई का हिस्सा ऊपर तक नहीं पहुंचाते नतीजन उनके यहां छापा मार कर बाकी भ्रष्ट अधिकारियों को काली कमाई में हिस्सा देने का संदेष दिया जाता है। राज्य सरकार भ्रष्टाचार को किस तरह संरक्षण दे रही है, इसका प्रभाव राज्य लोक आयोग के वार्षिक प्रतिवेदनों को देखकर समझ जा सकता है। गले तक भ्रष्टाचार में डूबे आला अफसरों के खिलाफ सरकार कार्रवाई की अनुमति देने को तैयार नहीं है। सरकार को भय है कि ऐसे अफसरों के खिलाफ कार्रवाई की अनुमति देने से मंत्रियों के भ्रष्टाचार की पोल खुल सकती है।