अव्यवस्था: जिला चिकित्सालय में भीषण गर्मी में भर्ती होने की नौबत आ जाए तब घर से पंखा लेकर भी आना होगा…..

– गर्मी मे मरीजो का हाल बेहाल,कुलर,पंखा का पर्याप्त व्यवस्था नही
जांजगीर-चांपा।(sanjay yadav) जिला अस्पताल के वार्डों में इस भीषण गर्मी में भर्ती होने की नौबत आ जाए तब घर से पंखा लेकर भी आना होगा। तब कुछ राहत मिलेगी। अन्यथा गर्मी में झूलस कर रह जाएगें। शासन की ओर से अस्पताल का भव्य इमारत बनाकर मरीजों के लिए लगभग सभी सुविधाएं मुहैय्या कराई गई है। बावजूद इसके अव्यवस्था का आलम बरकरार है। सिलिंग फेन नहीं चलने से मरीज जहां बिस्तर छोड़ की दूसरे स्थल का सहारा ले रहे हैं। वहीं कुछ मरीज अपने घर से पंखा मंगाकर किसी तरह राहत पा रहे हैं। वहीं भीषण गर्मी में कूलरों में पानी तक नहीं डाला जा रहा है। अव्यवस्था का शिकार अस्पताल का निरीक्षण भी प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा नहीं किया जा रहा है। नतीजतन मरीजों को बदहाली झेलनी पड़ रही है। मई माह में इस भीषण गर्मी में जहां लोग एक मिनट बिना कूलर व पंखे का गुजारने की सोचते ही परेशान हो जाते हैं। ऐसे में बिना पंखा व कूलरों का गुजारना पड़े तो लोगों को क्या हाल होगा इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। इन दिनों जिला अस्पताल में भर्ती मरीजों को पंखा व कूलरों के होते हुए भी गर्मी में दिन काटना पड़ रहा है। वैसे तो यहां के सभी वार्डों पंखों के अलावा कूलरों की व्यवस्था किया गया है। बावजूद इसके मरीजों व परिजनों को भीषण गर्मी में गर्मी से निजात नहीं मिल रही है। वार्डों में लगे कूलरों में नियमित व समय में पानी नहीं भरने से बाहर का गर्म हवा अंदर आने लगता हैं। ऐसे में गर्म हवा से बचने के लिए मरीज व परिजनों को मजबूरन कूलर बंद कर पंखे के सहारे ही दोपहर गुजारने की मजबूरी होती है। वार्डों में भर्ती मरीज इस भीषण गर्मी में गर्म हवा व उमस से खासे परेशान है। गर्मी अपने चरम पर है। जिला अस्पताल में भर्ती मरीज बीमारी के साथ-साथ गर्म हवाओं से खासे परेशान है। यहां के पुरुष व महिला वार्ड में लगा कूलर शोभा का वस्तु बना हुआ है। वहीं अस्पताल के दोनों मेल वार्डों में एक-एक पंखा खराब होने से मरीज अपने घर से टेबल पंखा लाकर गर्मी से निजात पाने की कोशिश कर रहे हैं। वहीं दूसरे मेल वार्ड के पंखा के खराब होने व चलने पर हवा कम और अधिक आवाज से परेशान हैं। पंखा के बजने से बचने के लिए मजबूरन पंखा बंद करना होता है, और गर्मी से बचने के लिए मरीज को बिस्तर छोड़ अन्यत्र दोपहर गुजारने को मजबूर होना पड़ रहा है।