कोरोना की दूसरी लहर को रोकने में कारगर हथियार नहीं होगा लॉकडाउन? जानें वजह

नई दिल्ली। मार्च महीने में कोरोना के चिंताजनक रूप से बढ़े मामलों के साथ एक बार फिर लॉकडाउन की आहट सुनाई देने लगी। देश में कोरोना से सर्वाधिक प्रभावित महाराष्ट्र के कई जिलों में हल्का लॉकडाउन लगाया भी जा चुका है। शुक्रवार को कोरोना के बेकाबू होते हालातों के बीच मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने कहा कि अगर कोरोना की ऐसी ही स्थिति बनी रहती है तो मैं लॉकडाउन लगाने से इंकार नहीं कर सकता। हालांकि लॉकडाउन की प्रभावशीलता को लेकर पहले भी आंकलन किए जा चुके हैं। अब जब एक बार फिर लॉकडाउन की आहट सुनाई दे रही है तो समझना होगा कि ये कितने प्रभावी हैं?

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक बीते साल भी जब लॉकडाउन कोरोना मामलों को रोकने की बजाए महामारी के पीक को टालने के लिए लगाया गया था। आंकड़ों में भी यह बात सामने आ चुकी है कि बीते मार्च में लॉकडाउन लगाने के बाद भी कोरोना मामले बेहद तेजी के साथ बढ़े थे। सरकार की ही रिपोर्ट में बताया गया कि अगर लॉकडाउन नहीं लगाया गया होता तो संक्रमितों की संख्या कहीं ज्यादा होती। यानी महामारी का जो पीक सितंबर महीने में आया वो पहले ही आ गया होता, जिसके लिए स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह से तैयार नहीं थी। यानी लॉकडाउन ने हमें समय दे दिया।

एक्सपर्ट्स के मुताबिक लॉकडाउन महामारी रोकने का प्रभावी तरीका तो है लेकिन शुरुआती चरण में. यानी कि जैसा पिछले साल किया गया था. उस समय महामारी के पीक को टालने के सरकारी प्रयास सफल रहे थे. लेकिन अब हालात बिल्कुल उलट हैं. जहां पिछली बार केस की संख्या 10000 से 80000 पहुंचने में तीन महीने का वक्त लगा था. वहीं इस बार ये समय करीब एक महीने दस दिन का रहा. एक्सपर्ट्स हल्के लॉकडाउन के साथ टेस्टिंग, ट्रेसिंग और आइसोलेशन के फॉर्मूले को महामारी रोकने के लिए ज्यादा कारगर हथियार मानते रहे हैं. यही कारण है कि दुनियाभर की सरकारों ने इस तरीके को अपनाया भी है.

महाराष्ट्र पर मंडरा रहा है लॉकडाउन का खतरा

भारत में इस वक्त महाराष्ट्र ऐसा राज्य है जहां पर लॉकडाउन की आहट सुनाई दे रही है। सरकार द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने के बावजूद भी तेजी के साथ मामले बढ़ रहे हैं। राज्य में कोरोना वैक्सीनेशन की रफ्तार को भी बढ़ाया गया है। ऐसे में अगर सख्त लॉकडाउन के बजाए अगर टेस्टिंग, ट्रेसिंग और आइसोलेशन के फॉर्मूले पर काम किया जाए तो वो ज्यादा कारगर साबित हो सकता है।

SBI की रिसर्च भी लॉकडाउन के बजाए वैक्सीन को मान चुकी है कारगर उपाय

इससे पहले भारतीय स्टेट बैंक के इकोनॉमिक रिसर्च डिपार्टमेंट ने भी कहा था कि लॉकडाउन के बजाए वैक्सीनेशन के जरिए कोरोना की दूसरी लहर को रोका जा सकता है। ‘Second wave of infections: The beginning of the end?’ नाम की इस रिपोर्ट को ग्रुप के चीफ इकोनॉमिक एडवाइजर सौम्य कांति घोष ने लिखा है। रिपोर्ट में सलाह दी गई है कि लॉकडाउन और प्रतिबंध अब तक कोरोना के प्रसार को रोकने में प्रभावी नहीं दिखे हैं। इस वजह से वैक्सीन के जरिए ही इस पर नियंत्रण पाया जा सकता है।

महाराष्ट्र, पंजाब का दिया गया था हवाला

रिपोर्ट में कहा गया है कि महाराष्ट्र और पंजाब जैसे राज्यों को देखकर समझा जा सकता है कि प्रतिबंधों के बावजूद कोरोना केस बढ़ रहे हैं। रिपोर्ट ने इशारा किया है कि कोरोना को रोकने के लिए अब वैक्सीनेशन ही एक मात्रा आशा है। कहा गया है कि अगर लोग और बड़ी संख्या में वैक्सीनेशन में दिलचस्पी दिखाएंगे तो अगले चार-पांच महीनों में 45 के ऊपर की पूरी आबादी को टीका दिया जा सकेगा।