15 नहीं..16 अगस्त को नेहरू ने फहराया था लाल किले से झंडा.. भूल गए बिस्मिल्ला ख़ान को बुलाना…

200 साल के बाद बहुत मुश्किल से हमें आज़ादी मिली थी. दरअसल, वो आज़ादी आम जनता की थी, जिनकी आवाज़ों को हमेशा दबाया जाता था. 15 अगस्त की आधी रात को जब नेहरू जी का भाषण आकाशवाणी से प्रसारित हुआ था, तब देश की जनता में काफ़ी उत्साह देखने को मिला था. देश के सभी हिस्सों में आज़ादी का जश्न मनाया जा रहा था. पूरे देश में हरे और केसरिया रंग की लाइटें लगाई जा रही थीं.

आज़ादी का जश्न ऐसा था कि सड़कों पर ख़ुशियां मनाने वालो में से ना तो कोई अमीर था और ना ही कोई ग़रीब. क्या राजा और क्या रंक, सभी एक ही रंग में सराबोर थे. दरअसल, हिन्दुस्तान की जनता के लिए यह ना सिर्फ़ आज़ादी थी, बल्कि एक नई ज़िंदगी थी.जनता गुलामी की जंजीरों से इतनी त्रस्त हो चुकी थी कि वो हर हाल में आज़ादी चाहती थी. वो अपनी सरकार चाहती थी. वो सरकार, जो जनता के द्वारा और जनता पर शासन करने के लिए ही बनी हो.

देश की पहली सरकार बनी, जिसमें सभी पार्टियों के 14 लोगों को नेहरू सरकार में मंत्री भी बनाया गया. धर्म, जाति-पात से अलग एक ऐसी सरकार, जो 36 करोड़ जनता के हित के लिए उत्तरदायी थी.

वैसे तो देश के प्रधानमंत्री 15 अगस्त के मौके पर लाल किले की प्राचीर से झंडा फहराते हैं. लेकिन देश के पहले प्रधानमंत्री को यह सौभाग्य नहीं मिला. उन्होंने 16 अगस्त 1947 को लाल किले की प्राचीर से तिरंगा फहराया और राष्ट्र को संबोधित भी किया.

16 अगस्त को लाल किले से तिरंगा फहराने के बाद नेहरू को बिस्मिल्ला ख़ान का ख़्याल आया. वे उन्हें बुलाना ही भूल गए थे. ऐसे में अपनी ग़लती को सुधारने के लिए उन्होंने दूसरे दिन बुलावा भेजा.