बिहार में बाढ़ का ऐसा कहर..की लोग चूहा खाने मजबूर…

सुबह नौ बजे गोरी देवी को इन्तजार रहता है की उनका 15 साल के बीटा कब चूहे केकर आएगा।चारो तरफ बाढ़ का पानी भर जाने बाद उनके परिवार को जिन्दा रहने के लिए केवल एक ही भोजन ही बचा है।सहरसा से पच्चास किलोमीटर दूर बनाही गाँव के सैकड़ो लोगो को प्रकृति के प्रकोप की वजह से चूहों का शिकार करना पड़ रहा है।उनके पास कोई दुश्र भोजन नहीं है।

गौरी देवी ने बताया हम कोस नदी के पानी से घिर चुके है मुख्य बजार से आने वाली सड़क कई दिनों से पानी में डूबी हुई है हमारे पास अनाज का एक दान नहीं बचा है।इसलिए चूहों को ही पकड़ना पद रहा है।गौरी और गाँव के अन्य लोग दलित मुसहर समाज के है और बेहद गरीब है सरकार की तरफ उन्हें कोई सुविधा और राहत नहीं मिल रही है चारो तरफ केवल पानी ही पानी है।उनका गाँव कोसी नदी के बिच इक द्वीप की तरह हो गया है।झा चूहों के अलावा कोई दूसरा भोजन उपलब्ध नहीं है इस क्षेत्र के अधिकतर लोग चूहे ही पकड़ते है।कई ग्रामीण चूहे पकड़ने में माहिर है और वे दुश्रो को भी चूहे बेचते है।बेचन सादा भी इसी तरह के शिकारी है।वह रोज 12 किलोग्राम चूहे पकड़ते है।और 40 रुपए प्रति कोलो की दर से पिते है।उन्होंने कहा मानसून के समय जन चूहे मैदान से भाग कर गाँव में आ जाते है तब हम उन शिकार करते है।

मानसून के समय बनाही टोला राज्य से पूरी तरह से अलग हो जात है।यह पहुचने के लिए कई दलदल पार करने पड़ते है।राधनपुर बांध से 12 किलोमीटर दूर इस गाँव तक पहुचने के लिए नाव का सहारा लेना पड़ता है।यह दूरी तय करने में पांच घंटे लगते है।यहा गाँव में कोई शौचालय नहीं है।लोग खुले में ही शौच करते है।अधिकतर हैंडपंप भी खरा है।इसलिए पिने के पानी का भी कोई स्रोत नहीं है।

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