किराए के मकान-दुकान पर लगेगा 12% GST?… सोशल मीडिया पर किए गए दावे की सरकार ने बताई सच्चाई, जानें पूरी खबर

सोशल मीडिया पर एक दावा किया गया है कि किराये के मकान और दुकान पर सरकार 12 फीसदी जीएसटी (GST) लगाने जा रही है। दावे में कहा गया है कि जीएसटी काउंसिल की अगली मीटिंग में 12 फीसदी जीएसटी टैक्स का नियम लागू कर दिया जाएगा। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे इस दावे में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की तस्वीर लगी है। हालांकि सरकार ने इस दावे को गलत बताया है और इस पर भरोसा नहीं करने की अपील की है। सरकारी प्रेस एजेंसी प्रेस इनफॉरमेशन ब्यूरो (PIB) ने इस वायरल मैसेज की सच्चाई बताई है। पीआईबी ने अपने फैक्ट चेक में कहा है कि जीएसटी को लेकर वित्त मंत्री ने ऐसा कोई निर्णय नहीं लिया है।

ये बात सही है कि जीएसटी काउंसिल की बैठक समय-समय पर होती रहती है जिसमें जीएसटी से जुड़े मुद्दों पर राय-विचार होता है। लेकिन अभी ऐसे कोई संकेत नहीं हैं कि सरकार किराये के मकान और दुकान पर 12 परसेंट जीएसटी लगाने के बारे में सोच रही है। जीएसटी की बैठक में कई बार जीएसटी की दरों में बदलाव का फैसला लिया जाता है। कई मौकों पर ऐसा देखा भी गया है, लेकिन इन सबके बीच कभी-कभी फर्जी मैसेज भी प्रसारित होते हैं। 12 परसेंट जीएसटी वाला मैसेज भी उसी श्रेणी का है।

क्या कहा सरकार ने

वायरल मैसेज में किराये के मकान और दुकान पर 12 परसेंट जीएसटी लगाने की बात कही है जिससे मकान मालिकों में चिंता बढ़ गई है। इस चिंता को दूर करते हुए सरकार ने साफ किया है कि 12 परसेंट जीएसटी लगाने की कोई योजना नहीं है और सरकारी स्तर पर ऐसी कोई तैयारी भी नहीं है। सरकार की तरफ से पीआईबी ने अपने फैक्टचेक के ट्वीट में लिखा है कि यह मैसेज पूरी तरह से गलत और फर्जी है। पीआईबी फैक्ट चेक टीम के मुताबिक, जीएसटी काउंसिल की होने वाली बैठक को लेकर वित्त मंत्री ने ऐसा कोई निर्णय नहीं लिया है।

क्या है वायरल मैसेज में

पीआईबी ने लोगों को इस तरह की भ्रामक और अफवाह फैलाने वाली पोस्ट से बचने की सलाह दी है। पीआईबी ने कहा कि लोगों को ऐसी पोस्ट शेयर करने से बचना चाहिए।

क्या है जीएसटी का नियम

मकान पर जीएसटी तभी लगता है जब उसे कॉमर्शियल काम के लिए किराये पर लगाया जाता है। जो भी कॉमर्शिलय स्पेस जो कि किराये पर दिए गए हैं, उन पर 18 परसेंट के हिसाब से जीएसटी लगता है। टैक्सेबल वैल्यू पर 18 परसेंट का टैक्स लगता है और इसे टैक्सेबल सप्लाई ऑफ सर्विस की तरह माना जाता है।