सारासोर का प्राकृतिक सौंदर्य झेल रहा है,प्रशासनिक उपेक्षा का दंश…!

सूरजपुर
प्रतापपुर से “राजेश गर्ग”
शासन प्रशासन की उपेक्षा से जिले के पर्यटक स्थल में सुविधाओं का विस्तार नहीं कराने के कारण पर्यटक स्थलों की खूबसूरती राष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप नहीं छोड़ पा रही है। सूरजपुर को जिले का दर्जा मिले दो वर्ष से ज्यादा का समय हो गया है। वहीं जिले के कई पर्यटक स्थल अपनी उपेक्षा का दंश झेलने को मजबूर हैं। विकासखण्ड भैयाथान के सारासोर का नजारा ऐसा है कि मानो नजरें थम जाएं। कल-कल करती बहती महान नदी ने पत्थरों को इतनी नजाकत से तराशा है कि इनकी सुन्दरता देखते ही बनती है। वहीं ग्रामीणों का मानना है कि इस जगह पर रामायण काल में भगवान श्रीराम ने वनवास के दौरान कुछ दिन यहां गुजारे थे। इस आधार पर इस स्थान का पुरातात्विक एवं धार्मिक महत्व भी बढ़ जाता है।
जिले के भैयाथान-प्रतापपुर मार्ग पर स्थित सारासोर नामक जगह को प्रषासन ने पर्यटक स्थल तो घोषित कर दिया है। वहीं शासन-प्रशासन द्वारा सारासोर में पर्यटकों के लिए सुविधाओ का विस्तार नहीं करने से यहां आने वाले पर्यटकों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। रेलिंग के अभाव में यहां अक्सर दुर्घटनाएं घटती हैं। मंदिर के नीचे महान नदी की गहराई इतनी अधिक है कि उसे अब तक नापा नहीं जा सका है। यहां कि परिस्थितियों से अनभिज्ञ लोग नदी में प्रवेश तो कर जाते हैं लेकिन नदी में रेत के दलदल फंसकर अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं। अब तक यहां कई लोगों की जान भी जा चुकी है। वहीं प्रशासन की उदासीनता इस बात से ही परिलक्षित होती है कि भैयाथान-प्रतापपुर मार्ग पर से सारासोरो मार्ग का प्रवेश द्वार का निर्माण कार्य ही अधूरा है। आश्रम की स्थिती भी बदहाल है। सन् 2003 में तत्कालीन कृषि एवं सहकारिता मंत्री डाॅ प्रेमसाय सिंह ने मंगल भवन का शिलान्यास किया था। जिसका लोकार्पण सन् 2007 में तात्कालिक संसदीय सचिव एवं प्रतापपुर विधायक रामसेवक पैकरा ने किया था। वर्तमान में मंगल भवन की देखरेख के अभाव में पर्यटकों को कोई लाभ मिलता नजर नहीं आ रहा है। भैयाथान की जनपद अध्यक्ष रामबाई पैकरा ने सरगुजा विकास प्राधिकरण से आश्रम से मंदिर तक सीसी सड़क का निर्माण तो कराया है। वहीं सीढ़ीयों से लगे पहाड़ियों में काउंटर वाॅल न होने से बारिश के दौरान मिट्टी और पत्थर के टुकड़े गिरने से पर्यटकों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। यहां के ग्रामीणों की ऐसी मान्यता है कि त्रेता युग में भगवान श्रीराम अपनी भार्या सीता एवं अनुज लक्ष्मण के साथ पधारे थे। विभिन्न स्थलों पर भगवान लक्ष्मण के पंजे के निशान यहां देखे जा सकते हैं। इस तथ्य के आधार पर इस स्थल का पौराणिक महत्व के साथ-साथ धार्मिक एवं पर्यटन महत्व भी बढ़ जाता है।
इस स्थल की सुंदरता ऐसी है कि कोई भी देखे तो देखता रह जाए। प्रकृति की सुंदरता का अनुपम नजारा यहां देखने को मिलता है। महान नदी के पानी ने यहां के पत्थरों को इतनी खूबसूरती से तराशा है कि इनकी सुन्दरता देखते ही बनती है। हरे-भरे वृक्षों एवं झाड़ियों के बीच उड़ती रंग-बिरंगी तितलियां यहां के नजारे को और भी आकर्षक बनाती हैं। शिव मंदिर से महान नदी का नजारा बेहद आकर्षक दिखाई पड़ता है। सन् 2007 में ग्राम कैलाशपुर निवासी एवं पेशे से पटवारी नवल साय राजवाड़े एवं उनकी पत्नी कुंती देवी द्वारा महान नदी के तट पर स्थित पत्थरों पर शिव मंदिर का निर्माण कराया गया था। महाशिवरात्रि के अवसर पर यहां विशाल मेला लगता है। पहाड़ के उपर भगवान श्रीराम का भव्य मंदिर है। यहां रामचरित मानस संकीर्तन का आयोजन लगातार जारी है।