थल से भी व्यापक फैली हैं समुद्र और आकाश की सीमाएं : राज्यपाल श्री दत्त

सामुद्रिक दृष्टि से कमाडिंग पोजिशन में है भारत : वाईस एडमिरल (से.नि.) प्रदीप कॉशिवा
‘भारत की सामुद्रिक चुनौतियां’ विषय पर व्याख्यान

रायपुर, 11 जनवरी 2014

राज्यपाल श्री शेखर दत्त ने आज यहां कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय में ‘भारत की सामुद्रिक चुनौतियां’ विषय पर आयोजित व्याख्यानमाला को संबोधित करते हुए कहा कि इतिहास इस बात का साक्षी है कि किसी भी देश का विकास तब तक नहीं हुआ जब तक उसने सामुद्रिक संसाधनों का उपयोग या दोहन नहीं किया। 3329cccजमीन की सीमाएं हैं लेकिन समुद्र और आकाश की सीमाएं उससे काफी विस्तृत और व्यापक है। समुद्र अपने आप में बहुत बड़ा संसाधन है और ऐसे संसाधनों पर अन्वेषण करने और उनके दोहन करने की जरूरत है। छत्तीसगढ़ में इस विषय पर आयोजित संभवतः पहली व्याख्यानमाला को नेशनल मेरीटाईम फाउंडेशन के निदेशक तथा भारतीय नौसेना के सेवानिवृत्त वाईस एडमिरल प्रदीप कॉशिवा ने विशेष रूप से संबोधित किया।
राज्यपाल श्री दत्त ने कहा कि छत्तीसगढ़ संभावनाओं से भरा राज्य है, क्योेंकि यहां विकास संबंधी बहुत से संसाधन उपलब्ध हैं, लेकिन हम केवल इन संसाधनों के आधार पर विकास की योजनाएं नहीं बना सकते, अगर हमें यहां की संभावनाओं को मूर्तरूप देकर व्यावहारिक स्तर पर लाना है तो हमें क्षेत्रीय स्तर, देश और अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए बेहतर चीजों को आत्मसात करना होगा। समुद्र जैसा विषय भी छत्तीसगढ़ के लिए आप्रसांगिक नहीं है। चारों ओर जमीन से घिरा होने के बावजूद भी छत्तीसगढ़ समुद्र से बहुत ज्यादा दूर नहीं है। छत्तीसगढ़ के नागरिकों को समुद्र से संबंधित विविध विषयों के प्रति अपने जानकारी और ज्ञान का दायरा बढ़ाना होगा। राजस्थान जैसे राज्य जहां समुद्र नहीं है उसने देश को भारतीय नौसेना के दो सर्वोच्च अधिकारी एडमिरल शेखावत और एडमिरल माधवेन्द्र सिंह दिये हैं। उन्होंने कहा रायपुर के बुढ़ातालाब मैं शौकिया रूप से नौकाचालन किया जा सकता है। छत्तीसगढ़ में ऐसे हजारों तालाब है। विदेशों में समुद्री क्रियाकल्पों, नौकाचालन और तैराकी के प्रति एक आकर्षण होता है। खाली समय होने पर वे अपनी छोटी नाव ’मैरीना’ लेकर नौकाचालन के लिए निकल जाते हैं। छत्तीसगढ़ के युवाओं को चाहिए कि न केवल वे तैराकी और नौकाचालन सीखें बल्कि समुद्र संबंधी जानकारी बढ़ाएं तथा नौसेना में भर्ती होने के लिए भी आगे आए।
राज्यपाल ने कहा आजादी की रक्षा, लोगों की स्वतंत्रता और विकास संबंधी परिस्थितियों को बनाएं रखने के लिए यह जरूरी है कि रक्षा पर प्राथमिकता से ध्यान दिया जाए। जब मानव का रूपातंरण होमोेसेपियन के रूप में हुआ तो उसने सामाजिक व्यवस्था बनाएं रखने के लिए अपने कुछ अधिकारों को समाज को सौंपा नहीं तो समाज में केवल बलशालियों की ही बातें अंतिम एवं सही मानी जाती। उन्होंने कहा हमारे देश में सात हजार पांच सौ किलोमीटर लंबी सामुद्रिक सीमा है। देश के भू-भाग का 80 प्रतिशत भाग जो लगभग ढाई मिलियन वर्ग किलोमीटर क्षेत्र है, समुद्र के विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (ई.ई.जेड.) के अंतर्गत है। इस क्षेत्र के और विस्तार होने की संभावना है। हमारे देश का 90 प्रतिशत व्यापार समुद्र के रास्ते से होता है। 1970 और 80 के दशक में बम्बई हाई बनाकर समुद्र के नीचे पेट्रोलियम के दोेहन का कार्य प्रारंभ किया गया लेकिन अभी भी इसमें काफी व्यापक संभावनाएं छिपी हैं। हमारे देश हिन्दुस्तान को अगले कुछ सौ वर्षो ही नहीं बल्कि हजारों-हजारों साल तक राज करना है और इसके लिए जरूरी है कि हम जल, थल और नभ में महारत हासिल करें। उन्होंने कहा हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत में गुलामी समुद्र के रास्ते से ही आई थी। हमें देश के इतिहास और भूगोल से सीख लेनी चाहिए। उन्होंने कहा कि सिंधिया और आंग्रे ने सामुद्रिक शक्तियां हासिल की थी। चोल राजाओं का साम्रराज्य समुद्र के रास्ते ही व्यापक हुआ था और इससे चीन और जापान जैसे देशों में भारत के वास्तुकला का प्रभाव पड़ा, किसी भी देश का इतिहास उसके समुद्र के इतिहास के बिना पूरा नहीं हो सकता। उन्होंने बताया कि किसी तरह भारत के दक्षिण अंटाकर्टिका में दक्षिण गंगोत्री नाम से स्टेशन स्थापित करने पर इसकी पहुंच पांचों महासागरों तक व्यापक हुई तथा भारत को लॉ ऑफ सीस के ड्राफ्ंिटग कमेटी का सदस्य बनने का सौभाग्य मिला।
मुख्य वक्ता के रूप में सेवानिवृत्त वाईस एडमिरल प्रदीप कॉशिवा ने ‘भारत की सामुद्रिक चुनौतियां’ विषय पर आडियो-वीडियो प्रेजेन्टेशन दिया। उन्होंने कहा कि विश्व के तीन चौथाई हिस्से में जल है। समुद्र के रास्ते से भारतीय संस्कृति बाहर फैली और बौद्धधर्म के माध्यम से जापान, चीन जैसे देशों में पहुंची। उन्होंने विश्व के समुद्रिक मानचित्र विशेषकर एशिया, अफ्रीका और आस्ट्रेलिया जैसे महाद्वीपों के समुद्रों के महत्वपूर्ण स्थानों और सी लाईनों (काल्पनिक समुद्री पगडंडियां) को रेखांकित किया तथा बताया कि किसी तरह भारत प्रायद्वीप, हिन्द महासागर, मल्लका स्ट्रेट, हारमुत्र स्ट्रेट, लाल महासागर, स्वेज नहर, केप ऑफ गुड होप, सोमालिया, आस्ट्रेलिया आदि की महत्वपूर्ण स्थिति है। उन्होंने बताया कि सामुद्रिक दृष्टि से हिन्द महासागर की विश्व में अहम भूमिका है। यह एक ऐसा महासागर है जिसका नाम किसी देश अर्थात हिन्दुस्तान के आधार पर पड़ा है। इसका विस्तार 37 देशों तक विस्तृत है जिस पर विश्व की एक तिहाई जनसंख्या रहती है। उन्होंने इन क्षेत्रों की सामाजिक एवं व्यापारिक स्थितियों की भी जानकारी दी और बताया कि यहां कुशल मानव ससांधनों के माईग्रेशन होने, शहरी क्षेत्रों में माईग्रेशन होने तथा असामनता जैसी समस्याएं भी हैं। यहां बड़ी संख्या में पेट्रोलियम, खनिज, मसाले तथा कच्चा माल जैसे संसाधन उपलब्ध है। समुद्री व्यापार एवं यातायात की दृष्टि से इसका विश्व में विशेष महत्व है। हिन्द महासागार में हर साल एक लाख शिप यात्राएं करते हैं। भारत इस क्षेत्र में कमाडिंग पोजिशन में है और भौगोलिक दृष्टिकोण से भारत का प्रभावशाली स्थान है।
वाईस एडमिरल कॉशिवा ने बताया कि भारत का क्षेत्रफल 3.2 मिलियन वर्ग मिलोमीटर है। भारत में 12 विशाल और 187 बंदरगाह हैं। देश में लगभग दो लाख फिशिंग बोट है। समुद्र का एक्सटेंशिव इकानॉमिक जोन (ई.ई.जेड.) दो सौ किलोमीटर तक होता है जिसमें संसाधनों के दोहन का कार्य किया जा सकता है। अंडबार निकोबार के भौगोलिक स्थिति के कारण भारत का ई.ई.जेड. एरिया काफी व्यापक है। देश का यह एरिया लगभग 2.5 मिलियन वर्ग किलोमीटर है। उन्होंने कहा कि युद्ध की स्थिति में जहां नौसेना द्वारा सीधा ऑपरेशन किया जाता है, लड़ाईयां लड़ी जाती हैं वहीं अप्रत्यक्ष रूप से दुश्मन के यातायात आदि को रोकने की भी रणनीति अपनाई जाती है। उन्होंने कहा कि भले ही छत्तीसगढ़ समुद्र से कुछ सौ किलोमीटर की दुरी पर हो पर उसके लिए भी समुद्र की शक्तियों, व्यापार और संभावनाओं को समझना जरूरी है। उन्होंने यह भी बताया कि ग्लोबल वार्मिंग भी समुद्र को प्रभावित कर रहा है जिससे पिछले 40 वषों में समुद्र का जलस्तर 1.00 से 1.75 एम.एम. प्रति वर्ष की दर से ऊंचा उठ रहा है। इससे बंगला देश, मालद्वीप और माले जैसे देश प्रभावित हो रहे हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण प्राकृतिक आपदाओं की प्रवृत्ति बढ़ी है।
कार्यक्रम के प्रारंभ में विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने स्वागत उद्बोधन दिया और कहा कि छत्तीसगढ़ चारों ओर से जमीन से घिरा है। शायद यही कारण है कि हमें समुद्र के संबंध में अल्प जानकारी है। उन्होंने कहा कि एक शांत, सुरक्षित और स्वतंत्र स्थान होने के कारण भी हम समुद्र की हलचलों और शक्तियों को समझ नहीं पाते हैं। हमारे प्रदेश के राज्यपाल श्री शेखर दत्त ने वर्षो देश की सेना को अपनी सेवाएं दी हैं। उन्होंने भारतीय नौसेना के संचालक तथा रक्षा उपकरणों के उत्पादन जैसे क्षेत्रों में भी अपनी सेवाएं दी हैं। यह आयोजन उनकी पहल से ही संभव हो पाया है। उन्होंने बताया कि नेशनल मेरीटाईम फाउंडेशन की स्थापना सन् 2005 में तत्कालीन रक्षा मंत्री श्री प्रणव मुखर्जी के करकमलों से हुई थी।
व्याख्यानमाला में छत्तीसगढ़-ओडिशा सब एरिया (कोसा) के कमाण्डर ब्रिगेडियर बलराज मेहता, छत्तीसगढ़ एन.सी.सी. के प्रमुख कर्नल कोचर, पूर्व राज्य निर्वाचन आयुक्त डॉ. सुशील त्रिवेदी, वरिष्ठ पत्रकार श्री रमेश नैयर, वरिष्ठ अधिवक्ता श्री कनक तिवारी सहित बड़ी संख्या में विश्वविद्यालय के विद्यार्थीगण उपस्थित थे। इस अवसर पर विद्यार्थियों ने सेवानिवृत्त वाईस एडमिरल प्रदीप कॉशिवा से संवाद स्थापित कर अपनी शंकाओं का समाधान भी किया।