कचरे के ढे़र में रोजी रोटी तलाशता बचपन

तमाम शासकीय योजनाओं और शिक्षा से दूर -दूर तक इनका नाता नहीं

नगर निगम क्षेत्र के डंपिंग यार्ड से लगे चमारपारा का मामला

अम्बिकापुर ( दीपक सराठे की रिपोर्ट)

कहते है बच्चे देश का भविष्य होते है, पर शायद इन बच्चों के लिए उनका आज और कल ये कचरे का ढ़ेर ही है। बीमारियों और संक्रमण के बीच कचरें के ढेर में हर रोज अपने और अपने परिवार के लिए रोज की रोटी तलाशते ये बच्चे व उनका परिवार तमाम शासकीय योजनाओं व शिक्षा से पूरी तरह कटा हुआ है। यह कहीं और नहीं नगर निगम क्षेत्र के अंदर शहर के डंपिंग यार्ड से लगे चमारपारा के बच्चों की रोज की दिनचर्या है। सुबह होते ही हाथ में बोर लेकर 1 दर्जन से अधिक बच्चे कचरे से कबाड़ का समान उठाकर उसे मोहल्ले के ही एक कबाड़ दुकान में बेच कर पेट की भूख मिटाते है। इनके लिए क्या ठंड़, क्या बरसात और क्या गर्मी । मौसम कैसा भी हो , गंदे व फटे पुराने कपडों में लिपटे इन बच्चों ने स्कूल का मूंह तक नहीं देखा है। Ambikapur Corporation trash

बच्चों को शिक्षा से जोडने के लिए शासन प्रशासन की ओर से कई प्रकार की कवायद की जा रही है। शहर में ऐसे बच्चों के माता पिता को समझाईश देने के साथ साथ उनके बच्चों को शिक्षा से जोड़ने महिला बाल विकास सहित चाइल्ड लाइन जैसी संस्थाएं काम करने का कई दावा करती है ।परन्तु नगर के चमारपारा में 1 दर्जन से अधिक बच्चे अभी भी इन संस्थाओं व विभाग के तमाम दावों व पंहुच से दूर है। शहर के घुमंतू और शाला त्यागी बच्चों को स्कूल तक लाने शिक्षा विभाग ने एक टोल फ्री नम्बर जारी किया है लेकिन इस अच्छी पहल को शहर में किसी ने न समझा और न ही किसी ने रिस्पांस दिया ।नतीजा यह हुआ कि छह महीने पहले जारी किया गया टोल फ्री नम्बर भी सर्विस से बाहर हो गया । हालांकि इस नम्बर के बारे में बकायदा अधिकारियों द्वारा पत्र लिखकर बाल संरक्षण आयोग को जानकारी दी गई थी ।विभाग का कहना है कि यह नम्बर बच्चों की मदद के लिए ही जारी किया गया था लेकिन इसमे सिर्फ शिक्षा विभाग के अधिकारी- कर्मचारी ही जानकारी दे रहे है। आम नागरिक इस नम्बर पर कोई जानकारी नहीं दे रहे है। दूसरी ओर शहर के हर गली चौक चैराहों में पेट की आग बुझाने बच्चे कचरो के ढे़र में अपना बचपन खो रहे है।