डेढ़ साल मे हुई एफआईआर लेकिन न्याय अभी भी दूर

डेढ़ साल बाद एच सी के निर्देश पर  एफआईआर

अवैधानिक वसूली व गुण्डागर्दी के विरूद्ध उठाई थी आवाज

अम्बिकापुर (दीपक सराठे)

अपने क्षेत्र में चंद दबंगों द्वारा लोगों को डरा धमका कर साप्ताहिक बाजार में अवैधानिक वसूली सहित इंदिरा आवास, शासकीय योजनाओं का पैसा षड़यंत्र पूर्वक हजम करने जैसे मनामाने रवैये के विरूद्ध आवाज उठाने वाले एक कृषक व सामाजिक कार्यकर्ता  को उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने के लिए डेढ़ साल तक चक्कर लगाना पड़ा। डेढ़ साल में उस सामाजिक कार्यकर्ता ने इसके लिए आईजी, डीआईजी, कलेक्टर, एसडीएम सहित न जाने कहां-कहां गुहार लगाई परन्तु कुछ सुनवाई नहीं होंने पर हाई कोर्ट की शरण ली। अततः डेढ़ साल बाद हाईकोर्ट के निर्देश पर पुलिस को सभी आरोपियों के विरूद्ध अपराध दर्ज करना पड़ा।

यह मामला बलरामपुर जिले के विकासखण्ड वाड्रफनगर थाना चलगली के ग्राम पंचायत उदारी का है। एफआईआर के एक माह से उपर होने जाने के बाद भी चलगली थाने का सिस्टम नहीं सुधर सका है। हाई कोर्ट के निर्देश पर मजबूरी में दोषियों पर अपराध दर्ज कर पुलिस ने अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली। आरोपी खुलेआम न सिर्फ घूम रहे है, बल्कि थाने में उनका उठना बैठना आम है। सारे सिस्टम का मजाक बना चुकी चलगली पुलिस ने इस रवैये को देखकर अवैधानिक वसूली करने वालों का काम बदस्तूर जारी है, और इसके विरूद्ध आवाज उठाने वाला न्याय का भरोसा खो चुका है।

ग्राम पंचायत उदारी निवासी कृषक व सामाजिक कार्यकर्ता प्रफुल पटेल पिता जर्नादन प्रसाद पटेल 38 वर्ष ने क्षेत्र में अवैधानिक वसूली सहित पंचायत कराकर दोनो पक्षों से जबरन पैसा लेने सहित अन्य अवैध कामों को करने वाले क्षेत्र के पूर्व सरपंच रामविलास प्रजापति, माधव गोविन्द पटेल, ओम प्रकाश पटेल, बालचंद्र की शिकायत चलगली थाने में 30 मई 2014 को की थी। उस वसूली चलगली थाना प्रभारी लक्ष्मण प्रसाद पटेल थे। आरोपियों के साथ पुलिस की सांठगांठ होने पर पुलिस ने मामला दर्ज करने से मना कर दिया। यहीं नही आरोपियों ने षड़यत्र रचकर प्रफुल पटेल को एक्ट्रोसिटी एक्ट में फंसा दिया। इसकी सूचना प्रफुल को गांव वालों ने पहले ही देकर आगाह कर दिया था। मामले की जांच एडिशनल एसपी बलरामपुर आर पी भैय्या ने की तो जांच में प्रफुल के खिलाफ लगाये आरोप गलत निकले। आरोपियों के विरूद्ध अपराध दर्ज कराने के लिए गांव वालों के साथ प्रफुल ने आईजी, कलेक्टर, एसपी सहित डीआईजी तक गुहार लगाई। गांव वालों के बयान के आधार पर आरोपियों की करतूत भी जांच में सही पाई गई। इन सब के बावजूद एफआईआर दर्ज नहीं हो सका।

पुलिस की इस तरतूत से हार कर सामाजिक कार्यकर्ता ने एक याचिका हाईकोर्ट में लगाई थी। 5 जनवरी 2016 को हाईकोर्ट के निर्देश पर चलगली थाने में आरोपियों के विरूद्ध धारा 120बी, 383, 384, 385, 503, 504 के तहत अपराध तो दर्ज कर लिया परंतु आरोपियों की गिरफ्तारी आज तक नहीं हो सकी है। यही नहीं आरोपीगण बयान देने वाले ग्रामीणों को धमकाने का सिलसिला प्रारंभ कर दिये है। सारे सिस्टम को मजाक बनाकर काम कर रही चलगली पुलिस की इस कार्यप्रणाली ने कानून व्यवस्था पर कई सवाल खड़े कर दिये है।