चिरमिरी
गंगा की महत्ता के समान अपनी पहचान बनाने वाले निर्मल जल छ0ग0 के एक गांव में प्रकृति के गोद से उत्पन्व होता है ,लेकिन कुछ ही दूरी में ये जल फिर प्रकृति के गोद में समा जाता है ,, जैसे इस निर्मल जल की यात्रा महज लोकल्याण के लिएं ही हुआ है। कोरिया जिले से महज 15 किमी दूर स्थित मनसुख गांव में प्राकृतिक स्त्रोत से निकलने वाली इस निर्मल जल का केन्द्र बिन्दु रहा है गंगा की तर्ज पर इस जल की महत्ता को गांव के लोग पहचानते है यही नही चर्म रोग पीने और नहाने से ही समाप्त हो जाता है । घने जंगलों के बीच पहाड़ों की कंदराओं से पतली धार के रूप में निगलते जल की महिमा मनसुख के लोगों से बंहतर कौन जान सकता है क्षेत्रीय भाषाओं में तुर्रा के नाम से पहचान हासिल करने वाली इस जल को गंगा के समकक्ष गांव के लोगों ने रखा है और यही कारण है कि गांव के लोगों ने गंगा मां की आस्था की तर्ज पर पूजा अर्चना करते हैं।
गौरतलब है कि कोरिया जिले में एैसे प्राकृतिक स्त्रोत बहुतायत की संख्या में है लेकिन लोगों के दैनिक जीवन में होने वाली बीमारियों को भी जल के माध्यम से दूर किया जा सके एैसा कही प्रमाण दिखाई नही देता है, कितु मनसुख गांव की यह ममतामई जल गांव में रहने वाले लोगों को पेट से जुड़ी सभी बीमारियों की अचूक दवा है। बात यही खतम नही होता है चर्म रोग से जुड़ी बीमारियां पानी को पीने और उपयोग करने मात्र से ही समाप्त हो जाती है। हालाकि लोककल्याण दायिनी तुर्रे के स्वरूप का अद्गम स्थल का अभी तक कोई प्रमाण नही मिल सका है और ना ही गांव के लोगों ने कभी भी प्रमाण जानने का प्रयास किया। बस आस्था और जीवन दायिनी जल की महिमा की छाव में जीवन को सदैव सदैव के लिएं समर्पित कर प्रसन्न रहना चाहते है। गांव के बड़े बुजुर्गो का मानना है कि लगातार 08 दिन तक इस तुर्रे के पानी का उपयोग करने और आस्था से जुड़कर पूजा अर्चना करने मात्र से ही शरीर की बड़ी बीमारियों से मुक्ति पाया जा सकता है चाहे वह चर्म रोग से ही क्यू ना जुड़ी हो।
विदित हो कि मनसुख स्थित एक पहाड़ी के बीच से निर्मल जल का यह स्त्रोत तुर्रा ग्रामीणों के लिएं वरदान बनकर उभरा है जहां इस तुर्रे से निकलने वाला पानी लोगों को जीवन देता है। गांव के लोग इस निर्मल जल से दैनिक उपयोग की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करते है। कपड़े धोने का काम हो या खेतों में पानी देने की बात हो या फिर निस्तार की आवश्यकता हो सभी आवश्यकताओं की पूर्ति इस जल से की जाती है। कभी गांव तक सिमटी जल की महत्ता आज दूर – दूर तक फैल चुकी है। चर्म रोग से ग्रसित मानव जाति प्रकुति की गोद में रहकर अपना ईलाज करने यहा पहुंचते रहते है। ना झाड़ – फूक, ना कोई दवा वस पानी का उपयोग और लगभग बीमारियों का ईलाज यही है इस जल की तुर्रे को पूजते है यही है उनकी गंगा जो उनके जीवन को तारने के लिएं उनके गांव में पधारी है। धार्मिक लहजे से देखे तो प्राकृतिक स्त्रोत के समीप नाग देव की सालों पुरानी दुर्लभ मुर्ति है जिसके पीछे भी ग्रामीणों की अपनी अलग ही राय है।
चर्म रोग से बचने लोगो की आस्था बरबस ही यहा खीच लाती है । यहा आने वाला प्रत्येक सख्स नहाने के बाद नाग देव की पूजा और प्रकृति की गोद में एक अद्भुत ही आनंद की प्राप्ति होता है। यह सिलसिला लगातार जारी है, पर एक बड़ा सवाल यह है कि इस निर्मल जल में कौन सी खूबी है जिसके कारण लोगों को चर्म रोग से राहत मिलती है। वैज्ञानिक रिसर्च के बाद पानी में मिले गुणों की पहचान कर निर्मल पानी का लाभ दूरस्थ लोगों को दिया जा सकता है।
इस स्थान के बारे मे ग्रामीणो की मान्यता….
1. – प्रेमसाय
चर्म रोग से ईलाज के लिएं आये त्रत्रत्रत्रत्रत्र ने बताया कि मैने अपने ईलाज के लिएं कई जगह गया कितु अभी तक चर्म रोग से निजात नही मिल पाया है और जैसे ही यहा के बारे में सुना ऐ बार यहा आकर भी देखना चाह रहा था और इसी के लिएं यहा आया हू और बीते तीन दिनों से पानी का सेवन कर रहा हू।
2. – दलप्रताप
हम तो कई साल से इस पानी का उपयोग कर रहे है और दैनिक उपयोग में आने वाली सभी जरूरतों के लिएं इस पानी का उपयोग करते है और लोगों का कथन भी ठीे है कि यह पानी जीवन दायिनी ही नही रोग नाशक भी है यही कारण है कि हमारे गांव में किसी को भी चर्म रोग की बीमारी नही है।
3. – सुखमन
मुझे नही मालूम है कि पानी की गुणवत्ता क्या है कितु अपने बड़े बुजुर्गो से पानी की खूबी के बारे में सुनता आ रहा हू । पानी की अपनी कुछ तो विशेषता जरूर है तभी तो लोग दूर दूर से यहंा आते है।
4. – हीरालाल
हां यह सच है कि चर्म रोग से यहा आने के बाद मुक्ति मिलती है और एैसा कहतें और सुनते मैने देखा है अईश्वर की कृपा है कि एैसा जल सिर्फ हमारे गांव में ही है वरना तुर्रा तो कई जगह है।
5. – डां0 नासिर अली
चिकित्सक गांव के लोगों की आस्था को भ्रम का रूप मान रहे है क्योकि उनका कहना है कि किसी पानी में एैसी खासियत नही है कि चर्म रोग को दूर कर सके।