चीन के बाद भारत दूसरा बड़ा देश, जहां बांस का उत्पादन होता है अधिक

जशपुर. Bamboo production: छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले में कुनकुरी विकासखंड के खंडसा ग्राम में कैम्पा योजना अंतर्गत बम्बू सेटम की स्थापना किया गया। इस दौरान जिला पंचायत अध्यक्ष शांति भगत, भारत सिंग, सहाय, डीडीसी अनिता सिंग और  जिला पंचायत उपाध्यक्ष उपेंद्र यादव उपस्थित थे।

खंडसा में वर्तमान में 32 प्रजाति के बांस पौधों का रोपण किया गया। इस बांस वाटिका से न केवल स्थानीय लोग बांस के विभिन्न प्रजातियों से परिचित होंगे बल्कि उसके उपयोग को भी जानेंगे साथ ही ईको टूरिज्म को बढ़ावा भी मिलेगा। इस वाटिका में कृष्ण बांस, जाएगसिया, 30 मीटर के बांस आदि विशिष्ट बांस प्रजाति का प्रदर्शन है।

चीन के बाद भारत दूसरा बड़ा देश है जहां बांस का उत्पादन अधिक होता है। बांस एक महत्वपूर्ण पौधा। जिसका उपयोग औषधि के रूप में भी होता है और इसके गुणों के कारण इसे प्राकृति वायु शोधक भी माना गया है।

बैंबू सिटम का उद्देश्य देश भर में बांस की जितनी भी प्रजातियां पाई जाती हैं उनका एक स्थान पर संरक्षण करना है। इस उद्देश्य की पूर्ति करते हुए अभी तक देश भर में पाई जाने वाले 32 तरह के बांस के पौधे यहां मायली नेचर पार्क में लगाये गए  हैं। ऐसे ही बहुउपयोगी बांस की विभिन्न प्रजातियों के संरक्षण का कार्य मायली नेचर पार्क  में किया जा रहा है। जहां 2 हेक्टेयर के क्षेत्र में बैंबू सिटम यानी जहां बांस की विभिन्न प्रजातियों को एकत्रित करके रोपा गया है।

बैंबू सिटम के  द्वारा स्व सहायता समूहों के सदस्यों को बांस के विभिन्‍न सजावटी उत्पादों को बनाने का प्रशिक्षण भी दिया जावेगा। जिससे लोग बांस की कलाकृतियों को बनाना सीखें और स्वरोजगार से जुड़ सकें। वर्तमान में शासन द्वारा भी बांस को संरक्षित करने व इससे बनने वाले उत्पादों को बढ़ावा देने का प्रयास हो रहा है। इस बैंबू सिटम में असम, मेघालय, ओडिशा, महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्यप्रदेश के विभिन्न स्थानों से लाई गई बांस की अलग-अलग प्रजातियों को रोपा गया है। इसके अलावा भी लोकल प्रजाति को भी परिसर में अधिकांश तौर पर लगाकर इसका संरक्षण किया जा रहा है।

मालूम हो कि बैंबू सिटम में भालूका बांस, कटंग बांस, बर्मा, इंडियन टिंबर, टालन, थाई सिल्क, माल, नारंगी, देव, जाटी,  कामन बांस, पीला, लोटा, बालन, जायंट, वेलवेट लीफ, टामा, भालू, लांग शीथ, लाठी, अंडमान बेल बांस, स्वीट बैंबू, कोलंबियन टिंबर, बैरी, हाथी, क्लंपिंग, इंग्लिश, असमी, काला, बिजली, तीर, मरिहल, सफेद, गैंबल, एवरग्रीन बांसों की प्रजातियों को लगाया गया है। भविष्य में लगभग 100 प्रजाति के बांस का रोपण किया जावेगा।

इस प्रकार से मायली नेचर पार्क को एक नई पहचान मिलेगी और पर्यटन का विकास भी होगा। खांडसा ग्राम को बांस ग्राम के रूप में पहचाना जावेगा। सरकार की वृक्ष मित्र योजना के तहत खांडसा ग्राम वासी बांस के पौधो को अपने खेतों में लगाकर योजना लाभ लेने के लिए भी तत्पर दिखे।