छत्तीसगढ़ में ’बाड़ी के डीजल’ के लिए फिर नये उत्साह के साथ काम शुरू

रायपुर

रतनजोत की खेती से हकीकत में बदली ’आम के आम-गुठली के दाम’ कहावत
बीज से बायोडीजल-खली से जैविक खाद

बायोडीजल बनाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले रतनजोत की खेती छत्तीसगढ़ में लोगों के लिए ’आम के आम-गुठली के दाम’ कहावत को हकीकत में बदल रही है। एक तरफ जहां रतनजोत से बायोडीजल बनाया जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ इसकी खली को तुलनात्मक रूप से सस्ते जैविक खाद के रूप में भी काफी उपयोगी पाया गया है, जिसका परीक्षण इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर द्वारा किया जा चुका है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार रतनजोत की खली को फसलों के लिए हानिरहित कीटनाशक के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

राज्य सरकार के ऊर्जा विभाग के उपक्रम छत्तीसगढ़ बायोफ्यूल विकास प्राधिकरण के अधिकारियों ने आज यहां बताया कि रतनजोत के बीजों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य दस रूपए प्रतिकिलो निर्धारित किया गया है, जबकि प्राधिकरण स्वयं इसकी उच्च गुणवत्ता वाले बीजों को प्राधिकरण 15 रूपए प्रतिकिलो की दर से खरीद रहा है। प्राधिकरण द्वारा राजधानी रायपुर के माना विमानतल मार्ग स्थित अपने बायोडीजल संयंत्र में रतनजोत से ’डीजल’ उत्पादन किया जा रहा है। साथ ही उसकी खली से जैविक खाद बनाकर  बाजार में भी उतारा गया है। 5558 B ccइसे ’रतनजोत जैविक खाद’ का नाम दिया गया है। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के ’ड्रीम प्रोजेक्ट’ के रूप में छत्तीसगढ़ की बायोडीजल परियोजना पर एक बार फिर नये उत्साह के साथ काम शुरू हो गया है। ज्ञातव्य है कि डॉ. रमन सिंह ने वर्ष 2005-06 में राज्य में बायोडीजल परियोजना की शुरूआत के समय ’डीजल नहीं अब खाड़ी से-डीजल मिलेगा बाड़ी से’ का जो उत्साहजनक नारा दिया था, वह राज्य में बड़ी खामोशी से लेकिन बड़ी तेजी के साथ साकार हो रहा है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने इस महीने की छह तारीख को नई दिल्ली में आयोजित एक सम्मेलन में घोषणा की है कि केन्द्र सरकार ने वर्ष 2022 तक पेट्रोलियम तेल पर निर्भरता दस प्रतिशत कम करने का लक्ष्य निर्धारित किया है और खाड़ी तथा झाड़ी के तेल को मिलाने का लक्ष्य रखा है। प्रधानमंत्री की मंशा को साकार करने के लिए छत्तीसगढ़ बायोफ्यूल विकास प्राधिकरण ने मुख्यमंत्री के मार्गदर्शन में नये सिरे से काम शुरू कर दिया है।

प्राधिकरण के अधिकारियों ने बताया कि राज्य के दूर-दराज ग्रामीण इलाकों और आदिवासी बहुल क्षेत्रों में लगभग दस वर्ष पहले बंजर भूमि, पड़त भूमि, वन भूमि और खेतों की मेड़ों तथा सड़कों के किनारे लगाए गए रतनजोत के पौधे अब फलदार विशाल झाड़ियों में तब्दील हो चुके हैं और फल देने लगे हैं। प्राधिकरण की ओर से अधिकृत एजेंसियों द्वारा इन इलाकों में निर्धारित समर्थन मूल्य पर ग्रामीणों से रतनजोत के बीज संग्रहित किए जा रहे हैं। इससे ग्रामीणों को अतिरिक्त आमदनी भी हो रही है। प्राधिकरण द्वारा रतनजोत के अलावा अन्य कई अखाद्य तैलीय बीज जैसे करंज, नीम और महुआ आदि की खरीदी भी उचित मूल्य पर की जा रही है। बायोफ्यूल विकास प्राधिकरण द्वारा अक्टूबर 2015 से जनवरी 2016 तक विगत चार महीने में लगभग रतनजोत के 500 मीटरिक टन बीजों की खरीदी की गई। अगले वित्तीय वर्ष 2016-17 में प्राधिकरण द्वारा तीन हजार मीटरिक टन बीज खरीदने का लक्ष्य तय किया गया है।
राजधानी रायपुर के माना विमानतल मार्ग स्थित बायोफ्यूल विकास प्राधिकरण के बायोडीजल संयंत्र में वर्तमान में तीन मीटरिक टन की दैनिक उत्पादन क्षमता का बायोडीजल संयंत्र वर्ष 2006-07 से कार्यरत है, जिसकी क्षमता आगामी वर्षों में दस मीटरिक टन तक बढ़ाने का लक्ष्य है। प्राधिकरण द्वारा केन्द्र सरकार को नये ऑटोमेटिक बायोडीजल संयंत्र का भी प्रस्ताव भेजा गया है। प्रदेश के जिन गांवों में इसे देखा जा सकता है, उनमें बिलासपुर जिले में पेण्ड्रा-मरवाही क्षेत्र के ग्राम पनखोटा, दमदम, गोढ़ा, केसला, सिलपहरी, डोंगरिया, बम्हनी, गुदुमदेवरी, जिला जांजगीर-चाम्पा के ग्राम हथनेवारा, रैनखोल, हरदी, टुण्डरी, झरा, जिला बस्तर (जगदलपुर) के ग्राम नैननार, टंगियाझोरी, जामगांव, जिला कोरिया के अमृतधारा, बड़ेरा और आमाडांड, जिला कोरबा में ग्राम परसदा, शिवपुर, सिरकीकला और तनेरा, जिला कबीरधाम के ग्राम राजानवागांव और रेंगाखार आदि शामिल हैं। जिला धमतरी में नगरी-सिहावा क्षेत्र के कई गांवों में भी रतनजोत के पौधे लहलहाने लगे हैं और उनसे बड़ी मात्रा में बीज मिलने लगे हैं।

राज्य के स्थानीय बाजारों में भी रतनजोत के बीजों की अच्छी मांग देखी जा रही है। स्थानीय व्यापारियों के द्वारा बड़ी तादात में इन बीजों का निर्यात प्रदेश के बाहर अधिक मूल्य पर किया जा रहा है। अनुमान यह है कि इन पौधों से प्राप्त होने वाले बीजों का यह महज 40 प्रतिशत ही है लगभग 60 प्रतिशत बीजों का संग्रहण नही किया जा रहा है। इस दिशा में बायोफ्यूल विकास प्राधिकरण ने ध्यान केन्द्रित किया है। प्राधिकरण के अधिकारियों का कहना है कि यदि स्थानीय ग्रामीण चाहंे तो वह इन बीजों का अधिक से अधिक संग्रहण कर प्राधिकरण से संपर्क कर उचित मूल्य प्राप्त कर सकते है। प्रदेश के बाहर की निजी कंम्पनियों द्वारा बायोफ्यूल विकास प्राधिकरण के संयंत्र में उत्पादित शुद्ध रतनजोत के तेल को अच्छी कीमतों में खरीदा जा रहा है यह तेल विभिन्न उद्योगों जैसे- ऑटोमोबाईल इंडस्ट्री में ल्युब्रीकेंटस् बनाने हेतु, टेक्सटाईल इंडस्ट्री में रंग हेतु, फार्मा इंडस्ट्री,  चमड़ा उद्योग आदि में प्रयुक्त होता है। प्राधिकरण द्वारा वर्तमान में बायोडीजल केवल मांग अनुसार ही निर्माण किया जा रहा है।

अधिकारियों ने बताया कि रतनजोत की खली एक उन्नत प्रकार की जैविक खाद है, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर द्वारा इस खाद का परीक्षण किया गया है। इसमें पाया गया कि रतनजोत की खली में नाइट्रोजन तीन प्रतिशत, फास्फोरस 0.023 प्रतिशत और पोटाश 0.14 प्रतिशत है, जो अन्य किसी भी रासायनिक अथवा जैविक खाद के मुकाबले कई गुना अधिक है। रतनजोत जैविक खाद में इसके अलावा सूक्ष्म पोषक तत्व एवं कीटनाशक के गुण भी पाये जाते हैं। देश के प्रतिष्ठित अनुसंधान संस्थान जैसे सी.एस.आई.आर., भावनगर द्वारा भी इस जैविक खाद की गुणवत्ता की पुष्टि की गई है। फसलों पर अन्य खाद की तुलना में यह जैविक खाद कम मात्रा में प्रयुक्त कर अच्छी पैदावार प्राप्त करने का कारगर तरीका है। लगभग डेढ़ महीने पहले दिसम्बर माह के अंतिम सप्ताह में राजधानी रायपुर में आयोजित राष्ट्रीय कृषि मेले में रतनजोत की खली से निर्मित जैविक खाद के प्रति किसानों में काफी दिलचस्पी देखी गई।