आस्था और विश्वास का प्रतीक भगवान जगन्नाथ स्वामी

कोरिया  [चिरिमिरी जगजीत सिंह]

 

  • 110 फीट उचा मंदिर भारत का दूसरा सबसे बड़ा जगन्नाथ मंदिर
  • महंत कलपतरू जी महाराज का साकार होता सपना
  • पिछले 34 सालों से मंदिर निर्माण अनवरत जारी
  • अद्भुत कलाकृतियों ने मंदिर में फुंकी जान
  • महाशिवरात्री में विशाल मेला का आयोजन12
आस्था और विश्वास का प्रतीक भगवान जगन्नाथ स्वामी, पालन हार विष्णु के दस अवतारों में से एक है जिनके दर्शन मात्र से ही भक्त तृप्त हो जाता है इसी आस्था और विश्वास को सजोये कोरिया जिले के पोड़ी में स्थित विशाल जगन्नाथ स्वामी जी का मंदिर भक्तो को अपनी ओर आकर्षित करता है। 110 फीट उचा यह मंदिर भारत का दूसरा सबसे बड़ा जगन्नाथ स्वामी का मंदिर है जिसकी गाथा उड़ीसा से आये महंत कलपतरू जी महाराज के इच्छाशक्ति और दृढ़ संकल्प की परिकल्पना है जो आज धरातल में दिखाई दे रहा है। विश्वास की डोर से बधा यह मंदिर हजारों उत्कल समाज को अपने छत्र छाया में सुख समृद्धि प्रदान करने का आर्शिवाद देता है एैसा उत्कलवासियों का मानना है।
कोरिया जिले के कोयलांचल चिरमिरी की धरती में स्थित यह मंदिर उड़ीसा के पुरी की याद दिलाता है उड़ीसी कारीगरों की अद्भुत कलाकृति उत्कल संस्कृति को परिलक्षित करती है। जगन्नाथ स्वामी के प्राण पतिष्ठा उपरांत महाशिवरात्रि में चलने वाला तीन दिवसीय विशाल कार्यक्रम भक्तो के लिहाज से सबसे अहम माना जाता है। हूबहू पुरी के मंदिर की तरह प्रतीत होने वाले इस विशाल मंदिर के सभी धार्मिक कार्य उड़ीसा के पुरी जैसा ही संपन्न कराया जाता है। बहरहाल इस विशाल मंदिर की पहचान उत्कल समाज के श्रंद्धालुओं की आस्था से बनी है कितु जैसे – जैसे मंदिर का निर्माण कार्य संपन्न होता जा रहा है हिन्दू धर्म को मानने वाले विष्णु जी के दसवे अवतार का साक्षात दर्शन लाभ लेने के लिएं यहा पहुंच रहे है। कीर्ति और यश फैलने का सबसे प्रमुख कारण यह भी रहा है कि भारत का यह दूसरा सबसे विशाल मंदिर है जिसकी पूजा अर्चना पुरी के तर्ज पर की जाती है और जो लोग पुरी जाने से वंचित रह जाते है वो इस कोयलांचल में स्वामी जी का दर्शन लाभ लेकर पुरी जैसा अनुभव व पुष्य प्राप्ति करते है, मंदिर की एक और खास बात है की जगरन्नाथ पुरी के जगन्नाथ स्वामी जी के मंदिर की उचाई 165 फीट यानि 16 काठी और इस मंदिर की उचाई 110 फीट यानि 11 काठी है दोनों मंदिर की तुलना की जाय तो लगभग समकक्ष कहा जा सकता है। 
कैसे रखा गया नींव  15
उत्कलवासियों की माने तो सनृ 1980 के दरम्यान महंत कलपतरू जी महाराज उड़ीसा से यहा पधारे थे जिन्होने इस पर्वत में झोपड़ी बनाकर कुछ दिनों तक निवास करने का फैसला किया परंतु कुछ दिनों के बाद पर्वत में उन्हे दिव्य शक्ति की अनुभूति हुई उसके बाद कोयलांचल में रह रहे उत्कल वासियों को कथा का सार बताया और जल्द से जल्द स्वामी जगन्नाथ जी के भव्य मंदिर बनाये जाने के लिएं सबसे सहयोग की अपेक्षा की। बाबा कलपतरू के इच्छानुसार लगभग 1982 में मंदिर की नीव रखी गयी और सन् 1984 से निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ जो आज 34 सालों बाद भी अनवरत जारी है। बाबा कलपतरू ने प्रतिज्ञा की थी की जब तक स्वामी जी का प्राण प्रतिष्ठा नही करा दिया जाता तब तक वो मंदिर परिसर और दुनिया छोड़कर जाने वाले नही है। भक्तो की एकता और उत्कल समाज के लोगों का दृढ़ निश्चय पुरी के तर्ज में मंदिर निर्माण का सपना साकार हुआ कितु अभी भी शेष कार्यो में मंदिर का मुखशाला निर्माण शेष है। जिसका कार्य प्रगति पर है, सन् 2006 में बाबा कलपतरू के इच्छानुसार स्वामी जी का प्राण पतिष्ठा कराया गया और तब से लेकर आज तक निर्माण कार्य और भक्तो का स्वामी जी के प्रति आस्था दोनों का जुड़ाव लगातार जारी है। 
 
उड़ीसी कारीगरों की छाप
चिरमिरी के जगन्नाथ स्वामी के मंदिर निर्माण के लिएं अद्भुत कलाकृतियों में महारत उड़ीसा के कारीगरों को बुलाया गया जिनके शिल्पों में उड़ीसी संस्कुति की झलक देखने को मिलती है यही नही मंदिर के चारों तरफ छोटी – छोटी प्रतिमाओं को स्थापित कराया गया जो किसी ना किसी मान्यताओं पर आधारित प्रतीक चिन्ह माना जाता है उत्कल वासियों का मानना है कि यह छोटी – छोटी मुर्तियों के विना जगन्नाथ स्वामी जी के मंदिर का निर्माण अधूरा है। मंदिर परिसर में लगे विभिन्न मुर्तिया उड़ीसा से ही मगायी गई है ताकि पुरी और यहा स्थित स्वामी जी के मंदिर में किसी प्रकार का अंतर स्पष्ट ना किया जा सके। कोने कोने में लगी मूर्तियां किसी ना किसी कथा की आधारशिला है जिनकी मान्यताएं विरासत में मिली बुजुर्गो की कहानी और उनके विश्वास का प्रतीक है। 
 
सब का सहयोग मिला14
मंदिर परिसर में लगे लोहे के चार बोर्ड उन दानकर्ताओं के है जिन्होने मंदिर निर्माण में अपना सहयोग प्रदान किया। समिति के अनुसार 365 एैसे दानदाताओं को शामिल किया गया है जिनको साल में एक दिन अन्न भोग आजीवन क्रमानंसार चलते रहने की अनुमति समिति द्वारा प्रदान की जाती है। बोर्ड में अभी तक 158 लोग ही इस दानकर्ता के रूप में अपना नाम दर्ज करा सके है शेष नाम और भी दर्ज होना बाकी है। इसके साथ ही जब भी समिति ने मंदिर निर्माण की बात आम जनता या शासन प्रशासन से की है सभी ने एक स्वर से मंदिर निर्माण में अपना योगदान दिया है स्थानीय सस्था एस0ई0सीएल0, स्थानीय विधायक – सांसद ने भी स्वामी जी के मंदिर निर्माण में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया, शेष बचे निर्माण कार्य को कुछ माह के भीतर ही पूरा करा लिया जायेगा जिसके बाद भारत के बाहर भी मंदिर की कीर्ति और ख्याति दिन दूना रात चैगुना भक्तो के माध्यम से फैलेगी और पर्यटन के क्षेत्र में विस्तार होने की उम्मीद जताई जा सकेगी।
 
विधी-विधान से होती है पूजा-अर्चना –    
 स्वामी जगन्नाथ जी के प्राण प्रतिष्ठा हाने के बाद से भव्य पूर्जा अर्चना और विभिन्न आयोजनों का कार्यक्रम आरंभ हुआ इस दौरान प्राण प्रतिष्ठा में भाग लेने के लिएं विशेष तौर पर सन् 2006 में राजघराने के राजा सम्मिलत हुएं और उन्ही मार्ग दर्शन में विधि विधान के साथ आज भी पूजा अर्चना का कार्य किया जाता है। वैसे तो सुबह मंदिर का द्वार खुलते ही स्वामी जी की मंगला आरती आरंभ होती है तदउपरात बाल भोग लगाया जाता है बाल भोग के बाद अन्य भोग लगता है पूर्जा अर्चना के इस कड़ी में भोग प्रसाद को भक्तो में वितरण किया जाता है और फिर मंदिर का द्वार बंद कर दिया जाता है  3.30 बजे फिर से मंदिर का द्वार खोला जाता है और शाम को मंगला आरती कर भगवान जगन्नाथ स्वामी को भोग लगाया जाता है। 
 
महाशिवरात्री मेला का आयोजन
महाशिवरात्री के समय तीनो दिवस उड़ीसा से आये हुये महंत द्वारा मंदिर में रूद्रमहा यज्ञ और अखण्ड किर्तन के साथ येगा्रेती यज्ञ भी संपन्न कराया जाता है। लगातार 03 दिवस तक चलने वाले इस रूद्रमहा यज्ञ के दौरान विशाल भण्डारे का आनंद प्रत्येक भक्त लेते है एैसा मानना है कि जिसने भी इन दिवस के भीतर स्वामी जी का प्रसाद ग्रहण किया है उसके समस्त इच्छाओं की पूर्ति और मुक्ति का रास्ता सुलभ हो जाता है इस कारण से भी लगातार चलने वाले भण्डारे को लोग बैठ कर कतारबद्ध तरीके से ग्रहण करते है। इन तीन दिनों तक आकर्षक का एक और केन्द्र बिन्दु मीना बाजार और मेले के आयोजन से पूरा कोयलांचल हर्षित और प्रफुल्लित रहता है।