विकलांगता अभिशाप नही वरदान… सहत राम एक मिशाल

कोरिया 
unnamed 91J.S.ग्रेवाल की रिपोर्ट
इन मूर्तियों कि सुन्दरता एक बारगी तो देखते ही बनती है. लेकिन इसे बनाने वाले कलाकार को देखकर या उससे मिलकर आप हैरत में पड़ जायेंगे. कि आखिर इसने इन हालातों में इतनी सुन्दर मूर्ति कैसे बनाई पर यह सच है. शत प्रतिशत विकलांग सहत राम कि उंगलिया जब मिटटी पर चलती है तो बनती है भव्य, आकर्षक और सुंदर मुर्तियाँ, देवी देवताओं की ये मुर्तिया सहत राम कि जिंदगी का गुजारा चलता है. फिलहाल आज गणेश चतुर्थी है और सहत राम जुटा है गणपति बप्पा की मूर्तियो को मूर्त रूप देने में. कोरिया जिले के खडगंवा ब्लाक के चिरमी गांव में अपने हिम्मत और हौसले के दम पर सहत राम तंगहाली के बावजूद एक बेहतर इंसान और काबिल मूर्तिकार के रूप में अपनी पहचान रखते है … जानिए इस कलाकार की कुछ खास विशेषता..
 
एक हाँथ और दोनों पैर से है पूरी तरह विकलांग
सहत राम का दाहिना हाँथ और कमर से नीचे का पूरा हिस्सा बेजान है. शरीर का दाहिना हिस्सा पूरी तरह काम नही करता है. पीठ पर उसके कूबड़ भी निकला हुआ है. इनसब के बावजूद हालात से सहत राम ने हार नहीं मानी. जन्मजात विकलांगता कि चुनौती को ही सहत राम ने अपने मजबूत इरादों कि बदौलत अपनी ताकत बना ली. ट्राई-सायकल के जरिए वह अपने सारे कामकाज निपटा लेता है.
 
गणेश पूजा को देखकर मिली मूर्ति बनाने कि प्रेरणा unnamed 89
गाँव में आयोजित गणेशोत्सव में गणेश प्रतिमा को देखकर सहत राम के जेहन में मुर्तिया बनाने कि सोच ने जन्म लिया. वह गांव और आसपास के इलाकों में मूर्ति बनाने वालों के पास जाकर घंटो बैठा रहता था और बन रही मूर्तियों की बारीकियों को बड़े गौर देखते देखते मूर्तियाँ बनाना सीख गया.
 
झोपड़ी में चलाता है किराना दुकान
सरकारी तौर पर सहत राम को कोई आर्थिक  मदद नहीं मिली तो उसने मूर्ति बिक्री के पैसों से गांव में ही घर पर एक छोटी सी किराना दुकान खोल ली. तीज त्योहारों के सीजन में मुर्तिया बनाने  के बाद बाकि का समय वह किराना दुकान में देता है, सहत राम आज भले ही तंगहाली में जिंदगी गुजार रहा है लेकिन फिर भी वह अपने परिवार के  साथ खुश है की वह आत्म निर्भर है और उसे भरण पोषण के लिए दूसरे पर मोहताज होना नहीं पडा और वह अपनी पत्नी और बच्चे के साथ सुकून कि जिंदगी जी रहा है.
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