मुक्तिधाम में भी अव्यवस्थाओ से मुक्ति नही….

गंदगी के आगोस में समाया शहर का मुक्तिधाम

चिरमिरी से (रवि कुमार सावरे)

कहने को चिरमिरी नगर निगम है किन्तु यहाँ बदहाली का आलम है। चिरमिरी में तीन  श्मशान घाट हैं और तीनों ही भारी उपेक्षा के शिकार हैं। यहाँ अंतिम संस्कार कार्यक्रम में काफी जद्दोजहद का सामना करना पड़ता है, अंतिम यात्रा में शामिल लोगों को यहाँ जबर्दस्त परेशानियों से जूझने को मजबूर होना पड़ता है। दाह संस्कार के लिए लकड़ियाँ बड़ी मुश्किल से मिलती हैं। श्मशान घाट पर न तो छायादार स्थान है और है न ही पर्याप्त पानी की व्यवस्था। तपती धूप में तो यहाँ मुश्किलें और बढ़ जाती हैं।

बदहाल स्थिति के लिए शासन-प्रशासन तो जवाबदार है ही, जनता में जागरूकता की कमी और सहन करते जाने की आदत भी बड़ी कमजोरी बनकर उभरी है। डोमनहील सेन्ट्रल के सामने एवं बड़ा बजार के पीछे स्थित मुक्तिधामों दोनों ही घोर दुर्दशा के शिकार हो रहे हैं।

डोमनहील सेन्ट्रल स्कुल के सामने  स्थित मुक्तिधाम पर जहाँ गंदगी का अंबार है तो बैठने, श्रद्धांजलि सभा के लिए कोई स्थान नहीं है। पानी की भी कमी हमेशा बनी रहती है। इसी तरह से प्रमुख रूप से उपयोग में आने वाले बड़ा बजार बस्ती के पीछे स्थित मुक्तिधाम के भी हाल बेहाल हैं। शवयात्रा में जाने वाले लोगों को बड़ी दिक्कत होती है। मुक्तिधाम मानो लावारिस हैं, कोई व्यवस्था देखने वाला ही नहीं है।

घटिया निर्माण धराशायीchirmiri muktidham 2
दो-तीन वर्ष पूर्व स्थानीय प्रशासन ने 50 लाख रुपए से अधिक राशि डोमनहील सेन्ट्रल स्कुल के समाने वाले मुक्तिधाम पर निर्माण कार्य पर खर्च की थी पर निर्माण की गुणवत्ता उजागर हो रही है कि शवदाह के  शेड के मारर्बल गिरने लगे है। तथा  जगह-जगह से क्षतिग्रस्त हो चुकी है।

ढूँढना पड़ता है स्थान
मुक्तिधाम पर जहाँ-तहाँ झाड़-झाड़ियाँ होने से लोगों को दाह संस्कार करने के लिए ठीकठाक स्थान ढूँढना पड़ता है। नगर प्रषासन की लापरवाही के कारण पर्याप्त साफ-सफाई का अभाव है झाड़-झाड़ियाँ लगातार बढ़ती जा रही हैं। बाउंड्रीवाल क्षतिग्रस्त होने से आवारा मवेशी विचरण करते रहते हैं और कई बार अंतिम क्रिया के दौरान उत्पात मचाकर भारी परेशानी खड़ी कर देते हैं। लोगों को राख एकत्र करने व अस्थियँ बीनने तक में परेशानी आती है।

छाँवदार स्थान नहीं
नगर के दोनों ही मुक्तिधामों पर छायादार स्थान का अभाव बना हुआ है। अंतिम संस्कार में करीब तीन घंटे का समय लग जाता है और गर्मी के दिनों में तपती धूम में छाया की कमी लोगों को खूब खलती है। नदी के पानी में भी गंदगी और बड़ी मात्रा में कंजी जमा है। फरवरी-मार्च के बाद तो नहाने का पानी मिलना मुहाल हो जाता है।
मुक्तिधाम पहुंचने वाले लोगों को बैठने के न छांव की व्यवस्था कराई गई है थोडी सी है भी तो वह गंदगी के ढेर में इस कदर समाई हुई है कि वहां जाने कि किसी की हिम्मत नही हेाती।

लकड़ियों की परेशानी
चिरमिरी में जलाऊ लकड़ी सिर्फ एक स्थान पर मिलती है। डिपो से लकडियाँ मिल जाती थी किन्तु डिपो में भी लकड़ी की समस्या हमेषा बनी रहती है।  अंतिम संस्कार हेतु लकड़ियाँ मिलती हैं वह भी महँगे भाव पर। गरीब तबके के लोगों के लिए लकड़ियों का खर्च उठाना मुश्किल है। शासन-प्रशासन द्वारा जलाऊ लकड़ियों की उपलब्धता की ओर कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है। लोगों का कहना है कि ऐसी ही स्थिति रही तो आगामी समय में दाह संस्कार मुश्किल हो जाएगा।

इस पानी से होती है अंतिम संस्कार की प्रकिया
इस पानी से होती है अंतिम संस्कार की प्रकिया

बाजार से लाना पड़ता है पानी
मुक्तिधामों पर पेयजल की कोई व्यवस्था नहीं है और लोगों को पीने के पानी के लिए तरसना पड़ता है। मजबूरन मिनरल वाटर बॉटल व पाउच मँगवाए जाते हैं लेकिन गरीब लोगों की मुसीबत है।

स्थानीय नागरिक महेन्द्र ने कहा कि श्मशान घाट की दुर्दशा पर किसी भी दल, जनप्रतिनिधि, संगठन का ध्यान नहीं है, समस्याओं की अनदेखी हो रही है। जनजागृति नितांत अभाव है। सामान चोरी होने की भी यहाँ बड़ी समस्या है। नगर निगम को  को सुध लेना चाहिए।

दिक्कतें ही दिक्कतें
नागरिक सतेन्द्र  का कहना है तमाम सुविधाओं की कमी के साथ सुरक्षा का भी अभाव है। मुक्तिधाम पर लोग दिक्कतें ही दिक्कतें महसूस करते हैं लेकिन घर आने के बाद श्मशान वैराग्य खत्म हो जाता है।

दिखवाएँगे
चिरमिरी  नगर निगम के आयुक्त हिमांष तिवारी का कहना है कि इस मामले में उन्हें ज्यादा जानकारी नहीं है फिर भी वे मामले को दिखवा लेंगे।